Saturday, December 28, 2013

नया साल ...

भटकता है मन
छिटकती हूं मैं
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

तुम्हारे बिना
अकेले चलना 
कठिन है बहुत
साल दर साल....
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

उम्र का एक और पड़ाव
नन्हा सा  एक जुड़ाव,
और बदल देगा फ़िर से 
विधाता मेरी चाल 
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

जितने करीब आना चाहूँ
रिश्तों को झुठलाना चाहूं
बन्धन उतना ही कसता जाता
खतम न होता मेरा काल 
देखो- 
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

कुछ काम अभी और हैं बाकी
तुम बिन अकेले करना साथी
न जाने कब होगा खतम ये 
जीवन के नाटक का अन्तराल....
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...

भटकता है मन
छिटकती हूं मैं
देखो-
फ़िर चला आया है 
एक और नया साल...


 


5 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

नया साल जब भी आए, एक नया सन्देश लेकर आता है.. वैसे मेरा तो ये मानना है कि हर दिन नया दिन है और नये साल का शुभारम्भ.. फिर इतनी उदासी ठीक नहीं.

इस शुभारम्भ पर कुछ मीठा हो जाये!!! देखो प्रकृति ने भी धरती के ब्रेड पर सूरज का सुनहरा शहद स्प्रेड कर दिया है... अब कहीं से भी काटो, ये दिन मीठा ही लगने वाला है!!
शुभ दिन!!

कालीपद "प्रसाद" said...

सुन्दर प्रस्तुति !
नई पोस्ट मेरे सपनो के रामराज्य (भाग तीन -अन्तिम भाग)
नई पोस्ट ईशु का जन्म !

Onkar said...

सुन्दर कविता

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर रचना ...

कौशल लाल said...

बहुत सुन्दर.......नववर्ष मंगलमय हो.