Wednesday, May 3, 2017

अच्छे मित्रों की बात मान लेनी चाहिए !

बात किसी स्वाधीनता दिवस की है -
उस दिन मेरे स्कूल के बच्चों का ग्रुप देशभक्ति गीत प्रतियोगिता में हिस्सा लेने मेरे स्कूल के संगीत शिक्षक के साथ जाने वाला था ,एक शिक्षिका भी साथ थी पर ग्रुप  के साथ मेरी भी ड्यूटी थी। ..हम लोग पहुँचे प्रतियोगिता स्थल पर। ..
संगीत शिक्षक गाड़ी से सामान उतरवा रहे थे , शिक्षिका और मैं बच्चों को लेकर अंदर चले गए हॉल में प्रवेश करते ही बच्चों ने बताया कि स्टेज के पास टेबल लगाकर जो सर बैठे हैं , उनके पास एंट्री करवानी है

मैं फार्म लेकर चली गई , एक मोटा सा व्यक्ति आँखों पर चश्मा चढ़ाए बैठा था लिस्ट बनाने के लिए , मैंने  जाकर कहा- सर,  नाम लिख लीजिये ,उसने सर उठाकर एक नज़र भर देखा और कहा- नाम बताईये कौनसा स्कूल ?
मैंने स्कूल का नाम बताया
थोड़ा अजीब नाम था , उसने गर्दन उठाकर फिर मेरी और देखा, मैंने फिर से नाम दोहरा दिया
वे बोले- शिक्षक का नाम ?
मैनें संगीत शिक्षक का नाम बता दिया
वे फिर बोले - दो टीचर हैं क्या ?
मैनें कहा- जी, और साथ आई शिक्षिका का नाम भी बता दिया
उन्होंने फिर पूछा- आप( साथ वाली शिक्षिका का नाम लेकर) हैं ?
मैंने "ना" में जबाब दिया
वे बोले -फिर?
मैंने आगे बताया- मैं स्पोर्ट्स टीचर हूँ बच्चे ज्यादा हैं ,तो साथ आई हूँ
उन्होंने मेरा नाम पूछा ,मैंने अपना नाम बताया-अर्चना ,
 उनकी जिज्ञासा शांत होने का नाम न ले रही थी,अगला प्रश्न था- सरनेम? (वैसे भी अधिकतर गलत लिखते हैं, तो मैं बताती नहीं) मैंने "चावजी" कहा
इस पर भी वे चुप न रहे ,पूछा- आप खरगोन से हैं? , अब मैं अचरज में थी , मैंने कहा- जी, वे बोले शादी से पहले आप पाठक थी? मैंने कहा- हाँ,
उनके चहरे पर मुस्कान और आँखों में चमक आ गई , वे इसी उत्तर की तलाश में सवाल पर सवाल किए जा रहे थे |
फटाक से अपनी सीट से खड़े होते हुए बोले- मुझे पहचाना? मैं यश ,यश शर्मा ,नूतन नगर.... हम लोग एक ही क्लास में थे

......... और हाँ मुझे सब याद आ गया था , हम उसे मोटा होने से पहचानते थे , और ये वही यश था -जिसने एक बार रेडियो नाटक के लिए लड़की की आवाज देने के लिए मुझसे कहा था ,और मैंने मना कर दिया था ,खूब मनाने की कोशिश भी की थी पर मैंने साफ़ मना कर दिया था  ... बाद में मेरी सहेली ने आवाज दी थी |

कॉलेज के बाद मेरी शादी हो गई थी .. और आज  करीब २० साल बाद हम फिर आमने-सामने थे। ..उसने मुझे पहचान लिया था , इस बीच बहुत -कुछ घट गया था मेरे जीवन में। ... उसे मेरे बारे में जानकर बहुत दुख हुआ , मध्यांतर में वो पत्नी और बच्चों को मुझसे मिलवाने के लिए लेकर आया। .....

अब इस बात को भी करीब १२ साल हो चुके हैं।

..... .और आज इतने साल बाद फिर पॉडकास्ट बनाते हुए उसकी याद आ गई कि मेरी आवाज सूनी भी जा सकती है ये "यश" को सबसे पहले आभास हो गया था। ....

अच्छे मित्रों की बात मान लेनी चाहिए !

"सुबह-सबेरे"अखबार में पढ़ने के लिए लिंक - 
http://epaper.subahsavere.news/c/18776135



2 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-05-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2627 में दिया जाएगा
धन्यवाद

'एकलव्य' said...

उत्तम संस्मरण ! बहुत ही प्रभावी ,आभार