न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Friday, September 21, 2012
Tuesday, September 18, 2012
माँ तो बस माँ हैं ...
कुछ दिनों पूर्व माँ आई हुई थी मेरे पास.... मेरे सुबह स्कूल चले जाने के
बाद दिन में वे घर पर रहती थी, समय बिताने के लिए घर की साफ़-सफ़ाई में लगी
रहती थी ..मैं स्कूल से आकर कम्प्यूटर पर...... तो वे मेरे पास आकर बैठती
मेरे बनाए पॉडकास्ट सुनना पड़ता उन्हें ...एक दिन शिल्पा जी की पोस्ट रामायण
पढ़कर सुनाई मैंने और उन्हें कहा अक्षर बड़े कर देती हूँ आप भी कर सकती हैं
रिकार्ड ..और बस हमारी माँ भी हमारी माँ ही हैं कर दिया श्री गणेश शिल्पा मेहता जी के ब्लॉग रेत के महल से एक पॉडकास्ट तैयार....
आस्था,श्रद्धा और विश्वास...साफ़ झलकता है माँ की आवाज में ........रेत के महल से रामायण भाग -१
Sunday, September 16, 2012
ओ माय गॉड... केंगलौर
आज सुनिए अनूप शुक्ला जी के ब्लॉग "फ़ुरसतिया" से एक पोस्ट
अभी फ़ेसबुकियाने गई तो पता चला "सुकुलवा जी" का आज जन्मदिन है.....बधाई व शुभकामनाएँ देने के साथ ही लगे हाथ तोहफ़ा भी जन्मदिन का ...
Share Music - Play Audio - Daftar me angreji दफ़्...
पहला प्लेअर चल नहीं रहा -
अभी फ़ेसबुकियाने गई तो पता चला "सुकुलवा जी" का आज जन्मदिन है.....बधाई व शुभकामनाएँ देने के साथ ही लगे हाथ तोहफ़ा भी जन्मदिन का ...
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पहला प्लेअर चल नहीं रहा -
Thursday, September 13, 2012
Sunday, September 9, 2012
पलकें और आँसू
(चित्र एक ग्रुप- साहित्यिक मधुशाला की वॉल से लिया है)
वादे के बाद
मेरे जाने के बाद
रोई क्यों तुम?...
रोया ना करो
मोती गिर जाते हैं
चमकीले से...
बूँदों को मिली
पलकोंकी पालकी
मुझे क्या मिला?...
थाम लो मुझे
मेरे आँसू कहते
बरस बीते...
रूको तो साथी
तुम तो मत जाओ
साथ चलेंगे...
मोती की लड़ी
ठहर-ठहर के
आँखों से झड़ी...
किस विध से
मैं नीर नयन का
रोकूँ साजन?...
बिखरे सारे
मोती मेरे मन के
टूटी मनका...
तनहा शाम
फ़िर उदास मन
छलका जाम...
मोती क्यूँ झरे
यूँ पलकों के तले
तुम क्या जानो...
जंग अश्कों से
न जीती जाती कोई
हँस के देखो...
-अर्चना
वादे के बाद
मेरे जाने के बाद
रोई क्यों तुम?...
रोया ना करो
मोती गिर जाते हैं
चमकीले से...
बूँदों को मिली
पलकोंकी पालकी
मुझे क्या मिला?...
थाम लो मुझे
मेरे आँसू कहते
बरस बीते...
रूको तो साथी
तुम तो मत जाओ
साथ चलेंगे...
मोती की लड़ी
ठहर-ठहर के
आँखों से झड़ी...
किस विध से
मैं नीर नयन का
रोकूँ साजन?...
बिखरे सारे
मोती मेरे मन के
टूटी मनका...
तनहा शाम
फ़िर उदास मन
छलका जाम...
मोती क्यूँ झरे
यूँ पलकों के तले
तुम क्या जानो...
जंग अश्कों से
न जीती जाती कोई
हँस के देखो...
-अर्चना
Thursday, September 6, 2012
Tuesday, September 4, 2012
यादों के दीप...प्रकाश करिया
सुनिए फ़ेसबुक पर मिले मित्र प्रकाश करिया जी की एक रचना...
यादों के दीप हमने जला कर बुझाये,बुझा कर जलाये,
तुझे भूल कर भी ऐ जानेमन हम भूल ना पाए,
वो कल की ही रातें थी, चाहत की बाते थी,
हर दिन वो तेरी मेरी, हसीं मुलाकातें थी,
कैसे वो प्यार तेरा तू ही बता हम भूल जाये,
यादो के दीप......
तरस दिल की हालत पे कुछ तो खाओ,
बहुत रो चुके है हम, हमे ना रुलाओ,
सितम ना करो अब, तेरे प्यार में गम बहुत है उठाए,
यादो के दीप.....
निशा मिट गए है, कदमो के मेरे,
निकल तो आये है, महफ़िल से तेरे,
खबर क्या तुझे के कदम कैसे थक कर हमने उठाए,
यादो के दीप.....
नहीं कोई उम्मीद हमको बहारो की,
होती नहीं दुनिया दिल के मारो की,
फिरते है मरे मरे खुद को हम दीवाना बनाए,
यादो के दीप....
माना नहीं है कोई ज़िन्दगी में गम,
मगर खुशियों से है महरूम क्यों हम,
तुझ को भुलाया है, यादो को तेरी कैसे भुलाए,
यादो के दीप....
अब चाहत नहीं रंगीन नजारो की,
फूलो की, खुशबु की,कोई बहारो की,
मज़बूरी कैसी है,अरमा है सरे दिल में दबाए,
यादो के दीप....
-प्रकाश करिया
एक नई जगह हिन्दी वाणी पर
यादों के दीप हमने जला कर बुझाये,बुझा कर जलाये,
तुझे भूल कर भी ऐ जानेमन हम भूल ना पाए,
वो कल की ही रातें थी, चाहत की बाते थी,
हर दिन वो तेरी मेरी, हसीं मुलाकातें थी,
कैसे वो प्यार तेरा तू ही बता हम भूल जाये,
यादो के दीप......
तरस दिल की हालत पे कुछ तो खाओ,
बहुत रो चुके है हम, हमे ना रुलाओ,
सितम ना करो अब, तेरे प्यार में गम बहुत है उठाए,
यादो के दीप.....
निशा मिट गए है, कदमो के मेरे,
निकल तो आये है, महफ़िल से तेरे,
खबर क्या तुझे के कदम कैसे थक कर हमने उठाए,
यादो के दीप.....
नहीं कोई उम्मीद हमको बहारो की,
होती नहीं दुनिया दिल के मारो की,
फिरते है मरे मरे खुद को हम दीवाना बनाए,
यादो के दीप....
माना नहीं है कोई ज़िन्दगी में गम,
मगर खुशियों से है महरूम क्यों हम,
तुझ को भुलाया है, यादो को तेरी कैसे भुलाए,
यादो के दीप....
अब चाहत नहीं रंगीन नजारो की,
फूलो की, खुशबु की,कोई बहारो की,
मज़बूरी कैसी है,अरमा है सरे दिल में दबाए,
यादो के दीप....
-प्रकाश करिया
एक नई जगह हिन्दी वाणी पर
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