कभी जो राह तकते थे
वो अब नश्तर से चुभते हैं
किताबों में रखे हैं
फ़ूल वो अब खंजर से दिखते हैं...
हुई ये आँख भी गीली
और उदासी का समन्दर है
अगर कोई जाम भी
छलके तो आँसूओं से छलकते हैं...
कभी तुम लौट कर
आओ इसी उम्मीद में अब भी
लौटती सांस से
हरदम, बड़ी खुशियों से मिलते हैं...
न जाने कौन सा
किस्सा, किताबों सा छपा दिल में
उसी की हर इबारत
से, वो किस्मत को बदलते हैं...
-अर्चना