बहुत दिनों से ब्लॉग पर कुछ नहीं लिखा....
ऐसा नहीं है कि लिखने को कुछ नहीं बल्कि लिखने को बहुत कुछ ऐसा है कि हाथ कलम तो उठाते हैं पर मन का नरम कोना जाने दो यार कहके रोक देता है ....कुछ कड़वी बातें बाहर न आये और लेखनी अपने सरल रास्ते से न भटके इसलिए ठहराव जरूरी लगता है मेरे लिए मुझे लेकिन आप सबको आज से फिर ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग लेखन की ओर ले जाने के लिए प्रयासरत हुआ है,तो सोचिए मत आईए और लिखिए ब्लॉग पर अपने और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए ....
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Monday, June 24, 2019
आईये मेहरबान ...
Thursday, September 13, 2018
भगवान जी से प्रेयर मायरा की
मायरा -मम्मी आज मेरी मेडम ने कुछ लिख के दिया है, मेरे स्कूल में ग्रेंड पेरेंट्स डे है (चहकते हुए) सब बच्चों को अपने दादा,दादी,नाना,नानी के ही साथ स्कूल में आना है,पापा-मम्मी नहीं आ सकते उस दिन...
मायरा की माँ-अच्छा! मैं मेडम से बात कर लूँगी (ये सोचते हुए कि मायरा को क्या समझाना है)
अगले दिन टीचर से बात करने पर पता चला कि हां,सिर्फ दादा-दादी या नाना -नानी ही आ सकते हैं। ये बताने पर कि उसकी नानी अभी यहां नहीं है,टीचर कहती है-एक दिन के लिए बुला लीजिये (जो पॉसिबल नहीं है अभी)
इन दिनों मैं यहाँ परियों की देखभाल में व्यस्त हूँ...
दूसरे दिन मायरा की मम्मी मायरा को समझाते हुए-बेटा देखो !आपके साथ न मौसी दादी और मौसा दादाजी आएंगे स्कूल में,आपको कोई पूछे तो कहना कि आपके दादा-दादी और नानू आपको ऊपर से देख रहे हैं ,भगवान जी के पास से,और आपकी नानी आपकी दो-दो छोटी सिस्टर्स के पास उनको संभालने के लिए गई है ,अभी आ नहीं सकती ...
मायरा-मम्मी अपन भगवान जी से बोल देते हैं कि थोड़ी देर के लिए दादा-दादी को भेज देंगे, अपन प्रेयर करते हैं,मैं तो उनसे मिली भी नहीं हूँ😢
माँ के साथ पापा की आँखें भी नम हो आई😢...
अगले दिन मौसी दादी और मौसा दादा सारे काम कैंसल कर मायरा के स्कूल में थे ,मायरा ने पुराने गीतों पर परफॉर्मेंस दिया ...
मायरा प्यारी बच्ची ,बहुत समझदार दीदी बन गई हो,जब बड़ी हो जाओगी तो जानोगी तुम्हारे साथ सबसे ज्यादा दादा-दादी और नाना-नानी हैं और सबकी शुभकामनाएं भी ढेर सारी और सबके स्नेह भरे आशीष भी ढेर सारे ..
तो आओ मायरा पर स्नेहाशीष की बौछार कर बताएँ जरा 👍
Wednesday, August 29, 2018
बुआ ने किया ऐलान
दादी से आगे भी एक पायदान होती है उसी पर चढ़ी बैठी हूँ-दादी माँ की 😂
दोनों परियों को नाम मिल गया अपना ,बड़ी है- "यज्ञा" और छोटी है-"यशी" ..बुआ ने ऐलान किया -
बड़ी एक मिनिट बड़ी,और छोटी एक मिनिट छोटी ...
एक साथ उठना, सोना,खाना चलता है,एक माँ की गोद में होती है एक दादी माँ की 😂
अभी तो पहचानने के लिए एक धागा बाँधना पड़ा है बड़ी को 😂😂
मायरा को एक दिखती है तो तुरंत कहती है दूसरी दिखाओ 😂
#नयाअध्यायअनवरतचलनेवालीकहानीका
और नाम पसंद आये ,तो आशीष देना न भूलें हमको कहने को कहा है -यज्ञा,यशी ने 💃💃
बुआ का ऐलान-
I am more than happy to announce the names by which both our little angels will be called for their coming bright life. "यज्ञा" (बड़ी) 👼🏻"यशी" ( छुटकी)👼🏻 We wish for your bright future, lots of tantrums and happiness always.. Love you💞
Tuesday, July 24, 2018
Monday, July 16, 2018
पटना यात्रा - एक याद
इस शहर में सुबह जल्दी हो जाती है, 5 बजे ही बहुत उजाला हो जाता है ..पास ही धोबी घाट है, 5-6 भाइयों के परिवार इस काम को मिलकर करते हैं, सुबह 6 बजते ही सब अपना काम शुरू कर देते हैं, अलग-अलग टंकियां बनी हुई है और हर टंकी के पास एक तिरछा पत्थर लगा हुआ है-
सारे पुरुष अलग-अलग कपड़े धोते हैं,किसी के पास चादरों का ढेर होता है तो किसी के पास साड़ियों का,कोई छोटे कपड़े धोता है तो कोई नाजुक ....बुजुर्ग महिलाएं कपड़े सूखने डालने का काम करती हैं ,बाकि कम उम्र की महिलाएं,जो बहू,बेटियां हो सकती हैं,कपड़े भिगोने और पानी इधर-उधर करते दिखती हैं।


इनके घर वैसे ही हैं अब तक जबकि आसपास मल्टियाँ बन गईं... मैं जिस बिल्डिंग से इन्हें देख रही हूँ वही 30 साल की हो चुकी है ....
इस परिवार के बारे में पता चला कि पहले माता-पिता ये काम करते थे,अब सारे भाईयों का परिवार करता है, पहले साथ थे अब यहीं पास-पास घर बंट गए...अब इनके बच्चे इंजीनियर बन चुके,लेकिन ये अपना यही काम करते हैं,यहीं रहते हैं,यहां से गंगा घाट ज्यादा दूर नहीं एक-डेढ़ किलोमीटर होगा.. यानि जिस समय ये बसे होंगे गंगा का किनारा दिखता होगा ...
अब कोचिंग रूपी कुकुरमुत्तों ने सारी जगह को घेर रखा है ..
.घर से बाहर निकलें तो हर तरफ बच्चे ही बच्चे दिखते हैं....और दूर तक चारों तरफ कोचिंग क्लास के विज्ञापन .... इतनी बहुतायत में मैंने अब तक नहीं देखे ...
कोचिंग के बारे में कहते हैं-यहां हर भाव में शिक्षक उपलब्ध हैं,बिजनेस है कोचिंग क्लासेस ....
जूस पीने एक जगह रूके तो वो बच्चा था 12 वीं में सुबह कोचिंग जाता है,शाम को जूस बेचता है....
ड्राईवर भैया गोप जी के बेटे ने इसी वर्ष बारहवीं दी,वे बताते हैं - 11 वीं से पटना ले आये गांव से ,कोचिंग डलवाये ,पहली ही बार में जे ई ई एडवांस निकाल लिया,और स्टेट रैंकिंग 3 हजार से कम है,अच्छा कॉलेज मिल जाएगा,लेकिन बेटा को डिफेंस में जाना है ,तो यहां उसकी कोचिंग लेगा अब ... 6 महीने में परीक्षा देगा ...फिट रहने को पास के पार्क में दौड़ता है सुबह...
सुनकर पिता की आंखों में तैरते सपने को देख सकते हैं हम...वे कहते हैं-बेटी दसवीं में है,गांव में है अभी ....वो भी टॉप करेगी ..
इससे पहले हरमंदिर साहिब गए थे वहां से यहां का रास्ता बहुत भीड़ भरा और संकरा था ,पुराना पटना शहर है ये एरिया .--
Friday, June 29, 2018
रेलयात्रा में चोरी,दानापुर,पटना,बिहार
बहुत दुखी मन से घटना लिख रही हूं,जो हुआ वो किसी के साथ न हो, जरूर कोई पुण्य आड़े आया होगा जो जान बची वरना चलती ट्रेन से एक महिला के गिरने की खबर भर होती मैं .......इस घटना ने बिहार के प्रति मेरे विश्वास की धज्जियां उड़ा दी ....
हुआ ये की मैं,भाभी,बेटी और मायरा के साथ मुम्बई-आसनसोल के ए सी थर्ड क्लास के बी वन कोच में सफर कर रहे थे ,खंडवा से पटना तक ....
पूरा सफर अच्छा रहा,आप सबसे शेयर भी करती रही मायरा की शैतानियां...
और सबसे अहं लाइव लोकेशन शेयर करने की जानकारी भी बातचीत के दौरान दी ...कुछ दोस्तों ने सीखा भी ...
दानापुर से गाड़ी धीमी हो गई,बीच में दो बार रूक भी गई पटना उतरने वाले साथ के लोग दरवाजे पर आने लगे,हमने भी पूछा-आ गया क्या?जबाब मिला जी 5 मिनिट में,चूंकि हमारे साथ कोई पुरुष नहीं था ,हम अपना सामान गेट पर ले आये ,मायरा सो रही थी ,बेटी उसे गोद में लेकर पहले कंपार्टमेंट तक आ गई,अब मैं और भाभी बाहर थे AC के अपने बेग और हैंडबैग और पर्स के साथ,तभी हमारे साथ एक हादसा हो गया ,पटना उतरने से पहले एक चोर गिरोह से सामना हुआ... जान बची लाखों पाए समझिये
[वे 7-8 लोग थे 25 से 30 उम्र के,गेट पर सामान लेकर उतारने को तैयार खड़े थे हम,तभी अचानक दानापुर से धीमी चलती ट्रेन में वे आए हमें गेट से हटने को कहा, मुझे और भाभी को लगा उन्हें यहीं उतरना होगा तो हमने रास्ता दिया उन्होंने गेट खोल दिया मुझे आगे की ओर हटाया और हमारे 3 बेग जो रास्ते में थे उठाकर टॉयलेट के पैसेज में सरका दिए,3 लोग बेग के आगे खड़े हो गए हमें बेग दिखाई नहीं दे रहे थे तभी मैंने पूछा यहीं उतरना है क्या ,वे बोले पटना ,तो मैने कहा जब हमें भी यहीं उतरना है तो क्या फर्क पड़ता है आप पहले उतरें या हम ?अगर हम ही उतर जाते तो क्या होता ,हम तो यहां के मेहमान हैं,आप तो यहीं के लोग हैं, वे पीछे हट गए...साथ की महिला को भी आगे निकाल दिया ,
इस बीच मैं भाभी से कहती रही कि हमारे बेग दिख नहीं रहे, हमारे साथ आये एक दंपत्ति भी वहीं उतरने वाले थे उनमें से पुरुष ने कहा आप टेंशन न लें मैं आपके बेग दे दूंगा ,लेकिन तब बेग उन्हें भी न दिख रहे होंगे उनका भी एक बेग सरकाया था...
. इस बीच उनमें से एक ने पूछा आप कहाँ से आये?मैंने एम.पी. बताया ,बोले यहाँ? मैंने कहा यहाँ की बेटी है हमारी बहू,बल्कि अब बेटी ही है बहू क्या?..उसने हमारा एक बेग वापस आगे की ओर करके रख दिया
पूछे -होटल वगैरह में रूकियेगा? मैंने कहा-नहीं घर है..
तभी भाभी ने कहा-अब हमारे बेग आपने पीछे किये तो आप ही मदद कीजियेगा उतारने में ...जी..जी.. जबाब मिला .. तभी अंदर की ओर से 2 लड़के आये हमें क्रॉस कर दूसरी ओर जाने को हमने उनसे कहा-आप अभी वहीं रुकिए जगह नहीं है बाद में जाईयेगा, इतनी बातचीत सुन बेटी भी मायरा को गोद में लेकर बाहर आ गई, तब इधर के वे 3 लड़के जो पीछे टॉयलेट की ओर थे आगे निकलकर AC कोच के अंदर दूसरे गेट की तरफ हमें किसी तरह क्रॉस करते चले गए ,अब इधर जगह बन जाने से आगे वाले 1 को छोड़ बाकि 2 भी AC कोच के दूसरे गेट की ओर चले गए , जैसे ही ट्रेन रूकने को हुई पहला वाला भी तेजी से अंदर चला गया, हमें आश्चर्य हुआ ,मैंने कहा -जब यहां से उतरना ही नहीं था तो बेग इधर उधर हड़बड़ी क्यों मचाई ? ट्रेन अभी भी धीमी थी तभी ये सुनकर एक अन्य लड़का जो था बिहार का था भोपाल में जॉब कर रहा था हमारा सहयात्री बोला यही होता है यहां आकर ट्रेन भी लेट होती है ...मैंने कहा यही बेसिक फर्क है,हमारे इधर अगर मदद का कहा तो बिना उतारे नहीं जाते लोग वो बोला जी बिलकुल यही अनुभव हुआ है ,साथ के दंपत्ति जो इंदौर से बाढ़ जॉब के लिए आये थे उन्होंने भी हामी भरी और इतने में ट्रेन प्लेटफार्म पर रुकी, हम उतरे जो हमारे सहयात्री थे उन्होंने हमारे बेग हाथ में पकड़ाए ..
हमें रिसीव करने आये भाई साहब सामने ही खड़े थे हालांकि पहली बार मिल रहे थे लेकिन पल्लवी को देखते हुए ही "रानू" कह आगे आ गए हम उनके साथ निकल आये बाहर ...
हमें तो घटना का पता घर आकर लगा,बेग से सामान चोरी हो गया,
बेग बाहर से वैसे ही थे,बंद ,बल्कि मेरे बेग में ताला भी लगा था
लेकिन जब ताला खोला तो सारे कपड़े अस्त व्यस्त
ऊपर - नीचे और ढक्कन के साइड की जाली फटी हुई,उस ओर रखे गिफ्ट के खाली लिफाफे भी कपड़ों की तरफ ढूंसे हुए,कपड़े भी गोल- गोल रोल कर ढूंसे हुए
सिर्फ एक साड़ी जो मैंने नेहा के लिए गिफ्ट करने को ली ,वो गायब, जो ऊपर रखी थी, बाकी कुछ नहीं गया
,लेकिन जो सामान मेरे बेग में था वो पल्लवी के बेग से निकला
[😰😰😰 पैसे कार्ड सब हमारे साथ पर्स में थे तो बच गए ,शायद उन दो पुरुषों की वजह से हमारे पर्स छीनने की कोशिश नहीं की वरना हमें धकेलते हुए खुले गेट से बाहर फेंक देते .. बस यही हो सकता था मैं गेट पर ही थी 🙄 और अखबार की खबर आप पढ़ रहे होते अगले दिन ....😢
कहाँ और कैसे हुआ होगा सोचते ही पूरा घटनाक्रम आंखों में घूम गया उनमें से 3 के चेहरे अब भी दिख रहे हैं,स्कैच बनाने की कोशिश भी करूँगी ...😊
आप सबको बताकर हल्का हो जाऊंगी सोचकर संस्मरण लिखा ही दिया 🙌😘 कोशिश में हूँ संयत होने की.... दहशत के कारण नींद नहीं आई है,सो ... तकलीफ हो रही है,मायरा के भविष्य को लेकर भी चिंतित हूँ....
जान बची लाखों पाए ...यहां चरितार्थ हुआ ,
लौट के बुद्धू घर को आये की कहानी भी इसी यात्रा में हुई तो उसे भी लिखूंगी ....आपको पोस्ट पढ़कर दुख हुआ होगा तो खुश करने का जिम्मा भी मेरा होगा ,बताऊँगी रेलवे के कारण हद्द की हद्द की भी कहानी ....👍👍👍थ्री चियर्स फ़ॉर #स्त्रीसुरक्षा और #रेलवे #दानापुरपटना...
Sunday, April 8, 2018
लोकतांत्रिक बाबा
बच्चा छोटा हो तो सबसे पहले बोलने की कोशिश में म के बाद ब शब्द ही बोलता है,म से मां, मामा आगे बढ़ता है,और ब से बा और बाबा ... तब बाबा घरेलू न्याय किया करते थे ...
मामा से डर नहीं लगता मगर बाबा शुरू से डराने की कैटेगरी में शामिल हो जाते हैं ...
बाबा .....साधू बाबा ..को देख देख कर बड़े होते हुए हम अब ...स्वतंत्र लोकतंत्र में लोकतांत्रिक बाबा से डरने लगे हैं ...डरें भी क्यों नहीं ..बड़ी साधना करते हैं ये साधन जुटाने में ......
.इनके दिन ब दिन कारनामें,चमत्कार से कोई काम होते हैं क्या? किसी को अंदर-बाहर करते करते किसी को कब गायब कर देते हैं कोई कभी जान नहीं पाया अब तक .....इनका पावर सदा बढ़ता हुआ ही प्रतीत होता है ...जितने भी पुराने बाबा होते जाते हैं अपने चेले चपाटों को अपनी थोड़ी थोड़ी पावर बाँटते रहते हैं ,हालांकि ये भी उतना ही सच है कि यही चेले चपाटे एक दिन अपने बाबा को रौंदते हुए ऊपर कूच कर जाते हैं फिर अंत बड़ा दर्दीला हो जाता रहा है ऐसे लोकतांत्रिक बाबाओं का ....
राम भरोसे रहने वाले इन बाबाओं के नामों में कभी राम आगे तो कभी पीछे जुड़ा रहता है कभी कभी राम अपने साथी रहीम को भी जोड़ लेते हैं कभी देव को ...लोगों को ये राम राम करवाते रहते हैं जाने कितने अपनी रामरोटी इनके भरोसे सेकते हैं ....आशा रहती है राम सब भला करेंगे पर न आशा बचती न आशाराम ...रोटी सेकते हुए ....
फिर लोकतंत्र में जो जाने लोक के तंत्र का मंत्र वो बाबाओं की अलग केटेगरी को प्राप्त कर लेता है यानि मंत्री कहलाता है ...इनके दिमागी फितूर भी बाबाओं से बीसा ही होते हैं .... अब लोकतांत्रिक बाबाओं का जमाना आ गया है ....न राम रहे न रहीम न कोई साधू न बापू.....
न न्याय न न्यायपालिका,न साध्वी न साधिका ....
अब बचा है बस डर जनता के दिल में ....
लोकतंत्र भी लोकतांत्रिक बाबाओं की चपेट में हैं .....
हम भी जपें या कहें राम राम ,आप भी जपें या कहें राम-राम ....
#व्यंग्यकीजुगलबन्दी