Thursday, May 26, 2011

हाथों की चंद लकीरें ........

अपने महबूब का हर लफ्ज़ याद आता है ,
याद आता है- हर पल, हर लम्हा ,
हर लम्हा वो,जो बिताया था साथ,
सिर्फ साथ ही नहीं ,थामे हाथ में हाथ,
हाथों में अब फिर से नजरें थमी हैं,
लगता है इनमें लकीरों की कमी है ...

13 comments:

रश्मि प्रभा... said...

chaah ho prabal to lakiren ubhar aayengi...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब ..रश्मि जी की बात पर गौर कीजिये ..

प्रवीण पाण्डेय said...

उम्र के साथ सारी लकीरें गायब हो जाती हैं।

Anonymous said...

वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।

vandana gupta said...

वाह ……………बहुत सुन्दर्।

संजय कुमार चौरसिया said...

बहुत खूब

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुन्दर ....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

लकीरें सिर्फ उलझाव पैदा करती हैं... तुम जैसी बहादुर औरतें लकीरों के लिखे को बदलने का जूनून रखती हैं!!

केवल राम said...

जीवन के अनुभूत सत्य को सामने लाती पंक्तियाँ ...आपका आभार

राजीव तनेजा said...

ये यादें ही तो हैं जो बची रह जाती हैं...

Anonymous said...

Today is documentation indisposed, isn't it?

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

यादें मधुर एहसासों के. सुंदर रचना.