Saturday, July 16, 2011

याद

मैं तुम्हें भूल चुकी हूँ
मगर नहीं जानती हर बार
तुम्हारी याद क्यों आती है?
वर्षों बीत गए तुम्हें भुलाए हुए
मगर अनजानों के बीच भी
तुम्हारी बात क्यों आती है?

8 comments:

केवल राम said...

वक़्त वेवक्त हो जाती हैं ऑंखें नम
क्योँकि यादों का कोई मौसम नहीं होता ......!

Archana Chaoji said...

ये याद ही तो है जो सताते रहती है
हरदम अपनोंको भी रूलाते रहती है।

vandana gupta said...

यादें ऐसी ही बिन बुलाई मेहमान सी होती हैं।

प्रवीण पाण्डेय said...

स्मृतियाँ निर्बाध बहती हैं।

विशाल सिंह (Vishaal Singh) said...

अर्चना जी, भूल जाने के बाद भी उसी से सवाल.....? यही तो होता है सभी के साथ.......आपकी कशमकश भरी कविता काफी अच्छी है!

संजय भास्‍कर said...

कविता काफी अच्छी है!......बहुत ही सुंदर ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है,

जीवन और जगत said...

यादों टीस भरी भी होती हैं और मीठी भी। अच्‍छी रचना।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

"..................."
कुछ बातों पर शायद चुप्पी ही बहुत कुछ कहती है!!