रे !सूरज आधी सदी बीत गई...
तुम मुझे
झुलसाने की कोशिश करते रहे हो,
मैं अब तक झुलसी नहीं...
और आगे भी
तुम्हारी सारी कोशिशें बेकार जाएंगी..
शायद तुम्हें पता नहीं -
मेरा चंदा रोज रात आकर
मेरे घावों पर मरहम लगा जाता है,
लू तुम्हारे साथ है,तो बयार मेरे साथ..
पतझड़ तुम्हारे साथ है तो,बहार मेरे साथ
तुम लाख कोशिश कर लो
हारना तुम्हें ही होगा क्योंकि-
मैंने हर मौसम में
बिना पंखों के उड़ना सीख लिया है ...
16 comments:
बिन पंखों उड़ना सीखा है,
अपनो से जुड़ना सीखा है।
bahut achchha likha hai aapne
जीवट जीवट है
सूरज को तो हारना ही है...इन हौसलों से भला कौन जीतेगा....
आपने पोस्ट लिखी ,हमने पढी , हमें पसंद आई , हमने उसे सहेज़ कर कुछ और मित्र पाठकों के लिए बुलेटिन के एक पन्ने पर पिरो दिया । आप भी आइए और मिलिए कुछ और पोस्टों से , इस टिप्पणी को क्लिक करके आप वहां पहुंच सकते हैं
सकारात्मकता से भरपूर.
sundar rachna ....
शायद तुम्हें पता नहीं -
मेरा चंदा रोज रात आकर
मेरे घावों पर मरहम लगा जाता है,
बहुत सुंदर बिंबों से सजी और मन को राहत देती रचना
कविता बहुत अच्छी है। शीर्षक पहले अटपटा लगा लेकिन बाद में समझा की ठीक है। सत्य की जीत होती है धूप चाहे जितना तंग करले।
उड़ जा हंस अकेला सुनकर भी आनंद आया।
सकारात्मक सोच व्यक्त करती बहुत सुन्दर रचना..
उत्कृष्ट :-)
har ka jor banaya hai iss bhagwan ne
sukh to dukh bhi
raat to din bhi
:))
कविता बहुत अच्छी लगी बुआ!!
....मैंने जीवन को जीना सीख लिया है ......सुन्दर !
जिसने भी जीने की कला सिख ली चाहे वह किसी तरीके से हो वह तो उड़ चला पंख लगाकर .
आज की शाम सुहानी लगी ,रात नींद भी अच्छी आएगी ....
उत्कृष्ठ रचना
Post a Comment