Tuesday, August 21, 2012

दौड़ते चित्र...भागती ट्रेन से

 इस बार फ़िर जाना होगा अक्टूबर में रीवा खो-खो टीम
 लेकर...
पिछले साल जब वॉलीबाल टीम लेकर गई थी तो ऐसे सफ़र तय किया था...मेरे मोबाईल केमरे ने...
गीत याद आ रहा है --
हरी-भरी वसुन्धर पे नीला-नीला ये गगन......


















13 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

ये कौन चित्रकार है!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर चित्रावली!

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर चित्र ... कुछ नये चित्रों की प्रतीक्षा रहेगी ... आपका स्‍वागत है :)

अरुण चन्द्र रॉय said...

ये कौन चित्रकार है!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत चित्र ...

प्रवीण पाण्डेय said...

किस कवि की कल्पना का चमत्कार है...

दिगम्बर नासवा said...

चित्रों का कमाल ... यानी आपके केमरे का कमाल ...

Sanju said...

nice presentation....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत खूबसूरत खूबसूरत चित्र ....!!!

Avinash Chandra said...

बहुत सुन्दर!

संगीता पुरी said...

वाह ..

Ramakant Singh said...

नारी के भी कई रूप हैं माँ ,बहन ,बेटी ,पत्नी ,दादी, नानी, शायद मन के किसी कोने में छुपे इसी भाव ने वसुधरा को भी प्रकृति के अलग अलग रूपों संग चित्रित कर दिया .खुबसूरत फोटो बधाई ...

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही उम्दा पोस्ट और सुन्दर चित्र |