आज आशीष राय जी के ब्लॉग "युग दृष्टि" से एक कविता -- शाश्वत प्रेम
आशीष जी अपनी कविता के बारें में कहते हैं---
"प्रेम
की परिभाषा के बारे में कुछ कहना मेरे जिह्वा के वश की बात नहीं है ,.
सांसारिक प्रेम से इतर शाश्वत प्रेम की परिकल्पना, जो शायद सृष्टि के संचालक
की प्रकृति के प्रति प्रेम की द्योतक है । ये कविता इसी शाश्वत प्रेम
की तरफ इंगित करने की मेरी कोशिश मात्र है"---
15 comments:
मेरी साधारण सी कविता अर्चना जी के कंठ से गुजरकर संवर सी गई है.
सुंदर गीत..सुंदर गान..वाह!
खूबसूरत! वाह!
सुंदर |
मेरी नई पोस्ट:-ख्वाब क्या अपनाओगे ?
सरिताओं के जीवन पर जब
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार!!
वाह !
कविता का भाव उसे निश्चित ही प्रभावशाली बनता है किन्तु कविता का मूल उद्देश्य ह्रदय को आल्हादित करना होता है. बस आपने कानों में मिश्री घोल दी ..
सुन्दर कविता, सुन्दर स्वर..
अति सुंदर, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
कर्णप्रिय...सुंदर रचना...शुभकामनाएँ !!
नव वर्ष पर बधाइयाँ !!
बहुत खूब! वाह!
बहुत ही सुन्दर
बहुत ही सुन्दर
sundar kavita ,sumadhur kavya path ...
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