Thursday, December 27, 2012

शाश्वत प्रेम

 आज आशीष राय जी के ब्लॉग "युग दृष्टि" से एक कविता -- शाश्वत प्रेम

आशीष जी अपनी कविता के बारें में कहते हैं---
"प्रेम की परिभाषा के बारे में कुछ कहना मेरे जिह्वा के वश की बात नहीं है ,. सांसारिक प्रेम से इतर शाश्वत प्रेम की परिकल्पना, जो शायद सृष्टि के संचालक की प्रकृति के प्रति प्रेम की द्योतक है । ये कविता  इसी शाश्वत प्रेम की तरफ इंगित करने की मेरी कोशिश मात्र है"---


15 comments:

ashish said...

मेरी साधारण सी कविता अर्चना जी के कंठ से गुजरकर संवर सी गई है.

ashish said...
This comment has been removed by the author.
देवेन्द्र पाण्डेय said...

सुंदर गीत..सुंदर गान..वाह!

Himanshu Pandey said...

खूबसूरत! वाह!

Unknown said...

सुंदर |
मेरी नई पोस्ट:-ख्वाब क्या अपनाओगे ?

वाणी गीत said...

सरिताओं के जीवन पर जब
करता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार!!

वाह !

Ramakant Singh said...

कविता का भाव उसे निश्चित ही प्रभावशाली बनता है किन्तु कविता का मूल उद्देश्य ह्रदय को आल्हादित करना होता है. बस आपने कानों में मिश्री घोल दी ..

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर कविता, सुन्दर स्वर..

ताऊ रामपुरिया said...

अति सुंदर, बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

ऋता शेखर 'मधु' said...

कर्णप्रिय...सुंदर रचना...शुभकामनाएँ !!

संजय भास्‍कर said...

नव वर्ष पर बधाइयाँ !!

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब! वाह!

Neeta Mehrotra said...

बहुत ही सुन्दर

Neeta Mehrotra said...

बहुत ही सुन्दर

Anupama Tripathi said...

sundar kavita ,sumadhur kavya path ...