सितारे भी सो गये चांद के संग में
अंतर की चाँदनी टिमटिमाए अंग में
चलो छुप जाएं हम मूँद के पलकें
देख लें सपनों को जो होंगे कल के
खोलेंगे जब पलकों को भोर में हलके
उनींदी आँखों से तुम्हें विदा देंगे चलके
फिर उदासी का वही अन्धड़ आयेगा
चूर होगा गोरा बदन धूल में सन के
दिन के उजाले में दर्द को सह के
सोचेंगे-पलकों से कहीं बूँदें न छलके
याद कर लेंगें तुम्हें हर हिस्से में पल के
देख लेंगे छवि बन्द आँखों में जो झलके....
-अर्चना
7 comments:
प्रतीकों को देख कर मन बह चले तो यही कह उठेगा।
हमें लग रहा है इस रचना को देख के पक्का
आप हैं होने वाले मशहूर कवि कल के।
आपकी यह प्रस्तुति 26-09-2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
धन्यवाद
चलो छुप जाएं हम मूँद के पलकें
देख लें सपनों को जो होंगे कल के
खोलेंगे जब पलकों को भोर में हलके
उनींदी आँखों से तुम्हें विदा देंगे चलके
बहुत सुन्दर---
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दिन के उजाले में दर्द को सह के
सोचेंगे-पलकों से कहीं बूँदें न छलके
:)
kitna pyara sa likha hai
याद कर लेंगें तुम्हें हर हिस्से में पल के
देख लेंगे छवि बन्द आँखों में जो झलके...
............बहुत ही बेहतरीन रचना
:-)
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