अब लिखेंगे खूब बरस कर
हम बारिश पर कविताएँ
कहीं भरेंगे नाले,पोखर,
और कहीं पर सरिताएँ...
कहीं करेंगे मेंढक टर्र -टर्र
कहीं बजेगा झिंगुरी गान
बूंदों की टिप-टिप के संग में
पकौड़े होंगे ख़ास पकवान...
हल्की -हल्की बौछारों से
जब भीगेगा आँचल -तन
चुपके-चुपके भीग जाएगा
नयनों की बारिश में मन ...
झुके-झुके से पेड़ लटक कर
नन्हीं बूंदों को सहलाते हैं
उनको देख-देखकर मुझको
मेरे साजन याद आते हैं .....
ओ बरखा!तुम रोज़ ही आना
ले जाने को मेरा संदेसा
साजन को गीली पतिया से
शायद पीड़ा का हो अंदेसा !!!......
-अर्चना
4 comments:
भिगो दिया!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ओ बरखा!तुम रोज़ ही आना
ले जाने को मेरा संदेसा
साजन को गीली पतिया से
शायद पीड़ा का हो अंदेसा !!!......
............ मन को छूते शब्द
रिमझिम भाव लगा जैसे मन ठंडा हो गया !! मंगलकामनाएं आपको
Post a Comment