Friday, October 28, 2016

एक दीप रखा है आँगन में मैंने



१)

ओ! मेरे वीर सिपाही,
सीमा के प्रहरी -रखवाले 
घर-आँगन को भूल के अपने ,
सीमा पर त्योहार मनाने वाले 


एक दीप रखा है आँगन में मैंने 
सन्देश छुपाया अनजाने 
ऋणी रहेगी सदा तुम्हारी,
हर पीढ़ी की संताने 


२)

सजाना अपने घर के आँगन में,
एक दीप उनके नाम का
जो वर्दी पहन पहरेदार बना है- 
मेरी-तुम्हारी जान का..

सजाना एक दीप उनके लिए
जो लौट कर न आ सके 
संग अपने परिवार के -
ये दीवाली न मना सके ...



9 comments:

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सच है दी ,ये सैनिक है तभी तक ये सारे पर्व हम मना पा रहे हैं ..... हर दीप की रौशनी उनको ही समर्पित ......

Madan Mohan Saxena said...

वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति

मंगलमय हो आपको दीपों का त्यौहार
जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
लक्ष्मी की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं|


ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "कुम्हार की चाक, धनतेरस और शहीदों का दीया “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

कौशल लाल said...

बहुत उम्दा.....

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुंदर , दीप पर्व मुबारक !

Onkar said...

सामयिक कविता

महेन्‍द्र वर्मा said...

प्रेरक प्रस्तुति ।
आपको दीप-पर्व की शुभकामनाएँ ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

इस दीप के समक्ष मैं सिर नवाता हूँ!

संजय भास्‍कर said...

सच