Sunday, December 24, 2023

देहांत जिसमें सिर्फ देह का अंत हुआ

2 दिसंबर 1996
इन सत्ताईस सालों में एक पल भी ये दिन और  समय भूल नहीं पाई ....
हादसों के घाव भरते नहीं कभी ....

कितने ही मित्र बने ,अपने मिले, सबका एक ही सवाल आपके हसबेंड?
बहुत भारी मन से अनगिनत बार बताना पड़ता है ....नहीं रहे।

फिर सवालों का सिलसिला चल पड़ता है और जवाब में वही क्या क्यों कैसे और अब फिर बात आती है अंत में आपने जॉब नहीं लिया और इसके जवाब में जब नहीं बताया तो चल पड़ती है अनवरत कहानी .....जिसमें अंतिम विदा की ये रात सबसे कठिन गुजरती है। .....

अनवरत कहानी का कभी न भूलने वाला हिस्सा...

Thursday, March 23, 2023

डॉक्टर बहना

आलोकिता मेरी छोटी बहन के साथ पढ़ती थी।खूब ज्ञानी और पढ़ने में अव्वल आलोकिता का एक ही लक्ष्य था डॉक्टर बनना तब उसकी एक और बहन अनामिका उससे एक वर्ष आगे थी, पढ़ने में वो भी बहुत तेज थी। उसे इंजीनियरिंग करनी थी , एक अटेम्प्ट में उसका चयन नहीं होने पर उसने एक वर्ष और तैयारी की और अब दोनों साथ थी।
अगले ही वर्ष दोनों का चयन अपने अपने विषय के लिए अच्छे कॉलेजों में हो गया। वे उस छोटे से हमारे शहर से बाहर चली गई ।उनके पिता जज थे।कुछ ही समय बाद उनका भी ट्रांसफर दूसरे शहर में हो जाने से उन दोनों बहनों से हमारा संपर्क टूट गया।
समय समय पर उनकी खबर मिलती रहती कि पढ़ाई पूरी हो गई,शादी हो गई,बच्चों के साथ सुखी हैं। आलोकिता का ससुराल भी बहुत अच्छा,अच्छे लोग मिले,वहीं अनामिका का परिवार संकुचित विचारों वाला मिला।
उनका एक भाई भी था ।उसने भी कई प्रयास किए थे इंजीनियरिंग में प्रवेश लेने के मगर हमेशा असफलता ही हाथ लगी बाद में उसने बी एस सी और एम एस सी करके अध्यापन का कार्य चुन लिया ,उसकी भी शादी हो गई ,पत्नी भी अध्यापिका ही मिली उसको, कई साल बीत गए आठ साल बाद उसे बच्चा हुआ बेटा।
हम लगभग उन सबको भूल चुके थे,लेकिन दो साल पहले पता चला था कि उनके भाई के साथ अच्छे संबंध नहीं रहे क्यों कि उसकी असफलता से वो डिप्रेस हो गया था उसे बहनों से लगाव नहीं रहा,माता पिता से अलग हो गया।
 बाद में पता चला कि उसकी तबियत ठीक नहीं रहती,डॉक्टर बहन ने प्रयास किए जांच करवाई तो पता चला ब्रेन ट्यूमर हुआ है ,बहन ने भी अपने संपर्कों से टाटा मेमोरियल में इलाज करवाया लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका ,बच्चा देर से हुआ तो अभी डेढ़ साल का ही है ,भाभी अपने मायके चली गई। 
डॉक्टर बहन भाई की शादी के कुछ समय बाद अपने बूढ़े माता पिता को अपने साथ ले आई थी,जबकि उसके अपने सास ससुर भी साथ ही रहते थे ।अब वे नहीं रहे। 
दो दिन पहले मेरी छोटी बहन के शहर वो आई थी,उसने बताया कि वो अपने बेटे के साथ यहां आई थी, दर असल उनकी एक छोटी बहन और है और वो मानसिक विकलांग है ,माता पिता के साथ वो भी उसी के साथ रहती थी, उनके निधन के बाद संपत्ति के विवाद में भाभी उसे अपने साथ अपनी मायके ले गई कि वे देखभाल करेंगी। वो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित थी। आलोकिता के फोन लगाने पर उससे कभी बात नहीं करवाती थी।एक बार किसी रिश्तेदार की सहायता से बात की तो छोटी बहन ने सिर्फ इतना कहा मुझे आपके पास रहना है,और वो टैक्सी करके दुसरे ही दिन उसे अपने घर ले आई थी तबसे उसके साथ ही थी,उसी ने बताया कि मुझे चाय भी नहीं देती थी भाभी और एक बार मिठाई आई तो मैं बहुत खुश हुई कि मुझे मिलेगी क्योंकि मुझे बहुत पसंद है मगर एक भी नहीं दी खाने को  ।अपने घर लाकर आलोकिता ने उसे सात दिन तक अलग अलग तरह की मिठाइयां खिलाई।पैसे की किसी के यहां कोई कमी नहीं है बस देखभाल और बात करने को कोई नहीं उसके लिए।
लेकिन यहां बेटा बारहवीं में है ।सास ससुर की भी देखभाल करनी होती है, वो अपने अस्पताल ड्यूटी पर चली जाती है तो वो दिन भर अकेली महसूस करती है,इसके ड्यूटी से आते ही उसे खूब बातें करनी होती वो उसे छोड़ती नहीं थी और अब वो खुद बहुत थक जाती थी।इसलिए यहां एक आश्रम में उसे रखा है, अभी उसका पचासवां जन्मदिन गया तो उससे मिलने आई, उसे यहां अच्छा लगने लगा है ।डांस, गायन और अन्य अपने जैसे दोस्तों से मिलकर खुश है।
मेरी बहन के शहर में होने की जानकारी थी उसे लेकिन वो उसे आश्रम से लेकर दो दिन उसके साथ रहना चाहती थी तो होटल में रुकी और लौटने वाले दिन बहन के घर चार पांच घंटे बिताए , अनुरिता को नए कपड़े,मैचिंग शू, नेल पॉलिश सब कुछ उसकी पसंद की शॉपिंग करवाई आलोकिता ने, खूब खुश थी अनुरिता।
चूंकि भाभी के साथ कुछ समय बिताया था उसने तो उन्हे बहुत याद करती रही आलोकिता ने बहुत प्रयास किया कि एक बार भाभी से उसकी बात करवा दे,मगर भाभी ने फोन नहीं उठाया।
 मेरी बहन से अनुरिता की पहचान इसलिए बढ़ गई क्योंकि मेरी बहन आलोकिता की अनुपस्थिति में उससे मिलने आश्रम जाती रहती है,बहन से उसने कहा दीदी आप बहुत अच्छी हो, मैने भाभी के घर जाकर बहुत बड़ी गलती कर दी ।
शाम को वापस आश्रम में अनुरिता को छोड़ने के बाद वो अपने शहर लौट गई। अब अनुरिता भी आश्रम में ही रहना चाहती है,बहन से मिलने चार छः महीने में आलोकिता आती रहती है।
सब जानकर मैं सोचती रह गई ,ईश्वर को सबकी चिंता है और सबकी देखभाल का जिम्मा भी उसने किसी न किसी को दे रखा है, हम सिर्फ उसकी कठपुतलियां भर हैं।
डॉक्टर बहना ने अपने समर्पण से और सकारात्मक ऊर्जा भर दी मुझमें ,जिसकी मुझे इन दिनों बहुत जरूरत थी।