Wednesday, July 29, 2015

सॉरी पापा ! ...दोषी कौन ?सजा किसको?

कुछ दिन पहले ही ये लिखा था फ़ेसबुक पर-

इस बार उसे माँ छोड़ने आई स्कूल...और स्कूल में हिदायत दे गई कि- अगर उसके पापा स्कूल में आएं तो मिलने देना ,मगर साथ नहीं ले जाने देना ..... कारण कि वे अलग हो गए हैं और दो बच्चों में से छोटा वे ले गए और बड़ा मेरे पास है .....
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जैसे कोई वस्तुएं हो और बँटवारा कर लिया मुर्खों ने .... frown emoticon
दो बच्चे हैं और दोनों लड़के .....
आगे कुछ सोच पाना ही मुश्किल है .....
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इन १७ सालों मे बहुत कडुए अनुभव हुए जिनमें मिठास भरते -भरते जीने की उम्मीद बनी रही ...
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अभी दो दिन पहले ही एक बच्चे का एडमिशन हुआ के. जी. वन में .... बेटे को पिताजी छोड़ने आए थे वो लगातार रोए जा रहा था .....बड़ी आँखें बाहर को निकली सी .... दाँत बेतरतीब और सामान्य  से बड़े आकार के चेहरे  से ही पहचाना जा सकने वाला -  मेंटली चेलेन्ज्ड  ....
..स्कूल का पहला दिन था उसका ..मैंने धीरे से उसे गोदी से उतारा और रोते हुए ही उसे उसकी क्लास तक ले जाकर छोड़ दिया ....२ मिनट बाद ही वो चुप हो गया था अपने साथी बच्चों को देखकर .....
१५ मिनट बाद उसकी टीचर ने आकर बताया -मैडम ! आईए देखिए तो सही ....इसे तो पेन्सिल पकड़ना भी नहीं आ रही .... क्लास में 4 चल रहा है ,इससे पूछा कि बेटा आपको आता है ? तो जबाब दे रहा है -नही आता यार!
टीचर परेशान हो गई थी !
मैंने पेंसिल को हाथ में लेकर पकड़ना बताया और उसे समझाया कि बड़ों को ऐसे नहीं बोलते ....
बच्चे ने तुरन्त कहा-सॉरी ! .... अब नहीं बोलूंगा !
आज के माहौल में बच्चे जैसा सुनते हैं वैसा ही बोलते हैं ,तब जबकि माता-पिता ध्यान न दे रहे हों ...वरना तो पढ़े-लिखे माता-पिता के बच्चे बोलचाल में इस तरह कम ही बोलते हैं .....
मुझे लगा समझ गया है ,धीरे-धीरे सीख जाएगा ..

मुझे फिर बुलाया गया अबकि शिकायत थी-

करीब एक घंटे के बाद से बच्चे ने सू-सू जाने के लिए कहा ....एक बार अनुमति मिलने पर ...हर २-३ मिनट में जाने को कहने लगा ....
एक- दो बार जाने दिया गया फिर थोड़ी देर के लिए मना किया ....
लेकिन अबकि तो हैरान होने वाली बात थी वो ये कि ---
 -बच्चा अपनी नेकर क्लास में ही उतार दे रहा था .... और कहता सू-सू आ रही है ....करीब हर ५ मिनट में .... टीचर भी परेशान हो गई...  बच्चा क्लास के बाकि बच्चों से बड़ा लग रहा था और उसकी इस हरकत पर सारे बच्चे उसे देखने लगते ....
मैंने उसे मना किया ...नेकर पहनवाई , कहा बच्चे चिढ़ाएंगे ...आपको शेम-शेम कहेंगे ...
ओह! कहते हुए बच्चे ने फिर कान पकड़ते हुए सॉरी कहा ....

लेकिन मेरे क्लास से बाहर आते ही फिर वही हरकत की ........मैंने  उसे अबकि डाँटा .... थोड़ा डरा ...अबकि रूक गया ....   इसी तरह पूरा स्कूल टाईम खतम होने आया ....पढ़ाई तो हुई ही नहीं .....छुट्टी हो गई.....


 ... जब प्रिंसिपल मेम को उस बच्चे के बारे में बताया तो पता चला कि ये वही अलग हुए माता-पिता का छोटा बेटा है, जो पिता के पास है ......

. इस तरह गुजरे  उस बच्चे के स्कूल के पहले दिन के बारे में   सोच -सोच मन व्यथित हो गया ....
आज दूसरा दिन था ----
आज मन में उस बच्चे के बारे में सोच ही रही थी कि उसकी टीचर ने आकर बताया कि उसकी आँख में खुद से ही पेन्सिल लग गई जो वो बेग से निकाल ही रहा था .....

दीदी ने पानी से साफ़ भी कर दिया ...रूमाल से फ़ूँक से सेक भी दिया पर आँख नहीं खोल रहा था .... मैंने उसे देखा ....तब तक रोने लगा .... मैंने सवाल किया -ऐसे कैसे लग गई बेटा धीरे से निकालनी चाहिए न! ... जबाब मिला-
क्या बताउँ ! अर्चना मेम..... ! ....
मेरी कोशिश उसे बातॊं मे लगाकर आँख खुलवाकर देखने की थी ....जबाब सुनकर अनायास हँसी आ गई .... कहा- अरे वाह! आपको मेरा नाम मालूम है ?  
-हाँ
-किसने बताया ?
-क्लास टीचर का नाम लेकर बोला ---बहुत जल रहा है मेम...
- अच्छा! ठीक हो जाएगा अभी ,,,आप तो आज नई ड्रेस पहने हो ,नए जूते भी ....किसने तैयार किया ?
- हँसी आ गई उसके चेहरे पर ....बताया -दादू और पापा ने.....
-और दादी
-मेरी दादी फोटो में है ....दादू पूजा करते हैं रोज .....
(मन भर आया मेरा उसकी मासूमियत पर )....

चोट ज्यादा नहीं थी पर पलक खोल नहीं रहा था ,लगातार हाथ से आँंख ढँके रहा ....
...उसका रोना बढ़ता गया ....कल की घटना भी उसके पिता को बतानी थी ... जानना था कि बच्चे ने ऐसा क्यों किया होगा ......
उन्हें भी समझाना था कि उसे घर पर समझाए ....ये सोचकर पिता को बुलवा लिया ....डायरी देते हुए टीचर ने जन्मतिथि दिखाते हुए बताया- छ: साल का है मेम....
यानि उम्र में बड़ा

पिता के आने तक देखभाल का जिम्मा मेरा था ...उसे लिटाकर धीरे से पीठ पर हाथ फ़ेरा .... बोला- मेम मेरी मम्मी को भी एक मिसकॉल दे दो ..... अवाक थी! ...क्या कहती ..उसे समझाने को कहा -बेटा आपके पापा रास्ते में ही हैं ...आ ही रहे हैं ,मेरे पास आपकी मम्मी का नम्बर नहीं है ..क्यों करना है मम्मी को फोन ?
- मम्मी भोपाल गई है ....

-मेरा मन भर आया ....कहा- पापा  से लेकर लगा दूँगी फोन ....आपकी मम्मी को....
जबकि जानती थी उसकी मम्मी यहीं है और उसका भाई इसी स्कूल में पढ़ रहा है ..... :-( ...

दुखी कर दिया ऐसे माता-पिता ने उसको .....


थोड़ी देर में ही पिता आ गए ....उनसे सब बताया .... पता चला कि बच्चा स्कूल ही नहीं गया ...कारण पूछने पर बताया माँ ने भेजा ही नहीं ..... ध्यान ही नहीं दिया आपसी ....... आगे रोकते हुए मैंने कहा
खैर ये आपकी निजी परेशानी है ...जो भी कारण रहा हो ....

बच्चा अपनी उम्र से बढ़ रहा है...बातचीत जैसे बड़ों की सुनता है ,करने लगा है , ...किसी से भी हाथ बढ़ाकर हैलो कहना ...अपना नाम बताना .....अपनी गलती पर सॉरी कहना ..सब जानता है ..... सब कुछ जल्दी सीखने की ललक भी है उसमें.....

पर जिस बात ने मुझे पोस्ट लिखने पर मजबूर किया वो ये कि- जब पिता घर लेकर जाने लगे तो ....रास्ते में बोला सॉरी पापा ! ....
जब मैंने उसे कहा -पापा को क्यों सॉरी कह रहे हो ? ...बोला - मेरे लिए उन्हें आना पड़ा न ! ....
और मेरे रोंगटे खड़े हो गए ..... आँसू रूके नहीं मेरे ......

बच्चा कभी स्कूल गया ही नहीं ...इसी वजह से पेन्सिल ठीक पकड़ नहीं पाया और लिखने की कोशिश में चोट लगा बैठा ......
.घरेलू परेशानी का असर उसकी शक्ल -सूरत पर..दिमाग पर बुरी तरह पड़ा है उम्र में बढ़ा ....समझ में नहीं ..... लेकिन माता-पिता शायद उससे भी कम समझ वाले हैं ....
पंद्रह दिन बाद स्कूल से छुट्टी लेने वाली हूँ .... तब तक जितना प्यार दे सकूँ देने की कोशिश करूँगी.... ईश्वर उसकी मदद करे इसी प्रार्थना के साथ ....

Tuesday, July 28, 2015

बारिशों के मौसम में "उड़नतश्तरी" के साथ एक प्रयोग

पाँच साल पहले एक प्रयोग के तौर पर समीर लाल "समीर" जी के एक ऑडियो के साथ अपने ऑडियो को मिक्स कर ये पॉडकास्ट तैयार किया था ....
इसे उनके ब्लॉग उड़नतश्तरी पर सुना था ...
पुरानी पोस्ट पर ऑडियो प्ले नहीं हो रहा है .. इसलिए आज फिर से पोस्ट किया .. तब और अब सुनने वाले भी बदल गए हैं ..नई खेप आ गई है नेट पर ..शायद नया लगे .

Friday, July 24, 2015

असित कुमार मिश्र की कहानी -व्यंजन संधि

एक कहानी असित कुमार मिश्र जी की शीर्षक - व्यंजन संधि







Sunday, July 19, 2015

पूर्वाभासी सपना

जब भी जुलाई का महीना आता है तारीखें सामने आती है और उनसे जुडी घटनाएं भी ..सबसे पहले सुनिल का जन्मदिन 13 को फिर 20 को पल्लवी का ....कितना सुखद संयोग बेटी और पिता का जन्मदिन जुलाई में और माँ और बेटे का अक्तूबर में.......
खुशी के साथ ही ये महीना दुःख भी ले आता है .....सब कुछ आँखों के सामने आ जाता है बिलकुल किसी फ़िल्म की कहानी की तरह ......
बाकि सब तो समय के साथ स्वीकार कर लिया ....लेकिन एक बात मुझे आज भी अचंभित करती है.....

ये तब की बात है 1993 के जुलाई माह से कुछ पहले की शायद 1 महीने पहले से कई बार एक सपना आता जिसमें मुझे लगता की मैं नीचे की और सीढियाँ उतर रही हूँ..सीढ़ियों पर पानी बहते  जा रहा है,फिसलन है,बहुत भीड़ है बहुत लोग धक्का देते हुए उतर रहे हैं....मेरे साथ बच्चे हैं मैं उनको सम्भालते हुए उतरती  जा रही हूँ ..और बहुत  नीचे एक मंदिर है जहाँ दर्शन होते है ...सुनिल  पर गुस्सा भी करती जाती हूँ कि आप तो नीचे नहीं उतरे ऊपर से हाथ जोड़ दिए मुझे दोनों बच्चों को लेकर उतरना कितना कठिन हो रहा है ......भगवान कौनसे हैं ये दिखने से पहले सपना टूट जाता और मैं याद करती तो लगता बड़वानी के गणेश मंदिर जैसा जो कुँए के पास था....और आधे कुँए में उतरकर दर्शन करते थे ....सोचती ये तो वही मंदिर है जो भाभी के घर वाला है ...ननिहाल जाने पर बचपन से देखते रही हूँ...
लगता देखा हुआ है इसलिए सपने में दिखता होगा ...

लेकिन जब सुनील के शिलाँग के पास  24 जुलाई को हुए  एक्सीडेंट की खबर 25 जुलाई को रांची में  मिली और बच्चों को छोड़  गौहाटी जाना पड़ा ....तब सुनिल 2 महीने कोमा में थे ...कोई चारा नहीं था सिवा प्रार्थना के ...वहाँ किसी ने बताया  कामाख्या मंदिर में जाओ.....तो मैं पहली बार गई उनके  लिए प्रार्थना करने ..जैसे ही मंदिर में प्रवेश किया ....हूबहू सपने वाली जगह लगी...और जब माताजी का दर्शन किया तो लगा  मुझे सपने में यही बहता पानी ....दिखता था .....2 महीने में बहुत बार गई....हर बार सपना सच्चा ही साबित हुआ ...बिलकुल वही मंदिर .....और एक बात कि उसके बाद कभी वो सपना नहीं देखा ....

उनको  तो बचाकर लौटा नहीं पाई मैं ...लेकिन उसी शक्ति ने ...साहस भरा यहाँ तक आने का ....
हर जुलाई में ये घटना ताज़ी होकर याद आ जाती है ...

क्या ये पूर्वाभास था ?छठी इंद्रीय द्वारा ......

Monday, July 13, 2015

लेफ़्ट - राईट - लेफ़्ट

1-
ऊँचा हो गर
मेरे देश का सर 
मेरे कारण
करूँ जाँ न्यौछावर
मेरे हर जनम....

2-
किस्मत मेरी
बदले जो हालात
वक्त के साथ
बदल के रख दूँ
देश की तकदीर.....

3-
जन्म पाया है
इस धरती पर
एक माँ से ही 
तूने,मैंने,हमने 
   मिलके रहें हम.....

-अर्चना चावजी

Wednesday, July 8, 2015

मेरी अपनी दुनिया

न समझे नज़र की भाषा को - एक ग़ज़ल

आँखों ही आँखों में ..

उस दिन बंद किया था तुम्हें

अपनी दो आँखों में

और तुम दिल में उतर गए 

छोटे से सफर में

आमने -सामने बैठे थे

मंजिल पर बिछड़ गए

आज तक भूली नहीं

उन नज़रों की शैतानी

जब आँख मारकर भी मुकर गए

समय बीता ....बदल गए रास्ते

आज 12 लाइनें लिखने की बारी आई

तो जाने क्यों वो पल अक्षरों में सँवर गए.....



Sunday, July 5, 2015

परिचय

जब किसी से भी
नया परिचय होता है,
पूछता है वो, तुम्हारे बारे में
और बस !
ये पलकें ऐन वक्त पर धोखा दे जाती है...
टपका देती है
आँसुओं की बूँदों को
जिन्हें आँखे
जाने कब से सुखाने की कोशिश कर रही हैं...
देख लेता है वो
इन बूँदों को
और जान लेता है
तुम्हारे बारे में .....
मेरे बताने से भी पहले ...
और लगता है
उससे पुराना परिचय है मेरा....
-अर्चना