Friday, February 27, 2009

किसका दोष ?

आज जो मै लिखने जा रही हूँ , मुझे नही पता ,कि वो लिखना चाहिए या नही ,मगर मैंने ये देखा है ,और मनकह रहा है कि लिख दूँ| मै किसी की भावना को आहत नही करना चाहती, लेकिन एक तत्थ्य है जो सबकेसामने लाना चाहती हूँ --------
ये कहानी है "विनी" नाम की एक प्यारी -सी बच्ची की | बात उतनी पुरानी है , जब विनी के माता -पिता काजन्म भी नही हुआ था | पहले पिता से शुरू करें ----
दो बहनों के बाद जन्म हुआ था , विनी के पिता का | सब बहुत खुश थे| भरे -पूरे परिवार और बड़े ही खुशनुमा माहौल में उनका लालन -पालन हुआ | विनी के दादा-दादी अपने बेटे की हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करते , जैसा कि अमूमन हर माता -पिता करते हैं | दोनों बहनें भाई को बहुत प्यार करती | धीरे -धीरे समय बीता , जवान हुए और पढ़लिख कर समझदार भी |
इसी तरह विनी की माँ का जन्म पहली संतान के रूप में हुआ, बेटी पाकर उसके माता -पिता भी बहुत खुश हुए| समय बीतने पर विनी की माँ को एक छोटे भाई का साथ भी मिला | किशोरावस्था में कदम रखते ही विनी कीमाँ बहुत खुबसूरत लगने लगी| पढ़ाई ख़त्म हुई |
यहाँ ये बता दूँ कि जितने प्यार से विनी के पिता का लालन -पालन हुआ , उतने ही प्यार से विनी की माँ का भी
|
फ़िर एक दिन विनी के दादा-दादी , बुआ , नाना-नानी , मामा , की मर्जी से विनी के पिता माँ की शादी हो गई
सब बहुत ही खुश थे ----परिवार , रिश्तेदार , समाज | थोड़े समय बाद सबकी खुशी दुगनी हो गई , जब "विनी" का जन्म हुआ | परिवार के सब लोग बहुत ही खुश थे ,विनी है ही इतनी प्यारी बच्ची | विनी थोडी बड़ी हुई , नर्सरी में उसका एडमिशन करवा दिया गया ,वो स्कूल जाने लगी |
समय अपनी गति से बीत रहा था , कि तभी एक घटना घटी , जिसके बारे में किसी ने सपनें में भी नही सोचाथा-- ------
| ---विनी के पिता ऑफिस के काम से एक हफ्ते के लिए बाहर गए, बहुत सारे वादे विनी और उसकीमाँ से करके | वहाँ सकुशल पहुँच कर उन्होंने , विनी , उसकी माँ , विनी के दादा-दादी , मामा आदि लोगो सेफोन पर बात भी की | सब बहुत खुश थे | अभी एक दिन ही बीता था | दूसरे ही दिन वहाँ से विनी के पिता केसाथियों का फोन , विनी के पिता के नजदीकी रिश्तेदार के पास आया | सूचना मिली कि विनी के पिता केसाथ एक दुर्घटना घट गई है , जिसमें उन्हें बचाया नही जा सका | जिसने भी सुना उसके होश उड़ गए |
परिवार में हुई इस असामयिक मौत ने सबको विचारशून्य कर दिया | किसी के समझ में नहीं रहा था किकिसे धीरज दें , और कैसे ? उस दिन मै भी वहाँ थी| घर में इतने सारे लोगों , जिनमें से कई चेहरे अनजान थे , के अचानक जाने से विनी को कुछ समझ नही रहा था कि क्या हो रहा है| कुछ जाने -पहचाने चेहरे उसेगोदी में उठाते, कोई चोकलेट दे रहा था , तो कोई खाने कि अन्य चीज | किसी को वो हां कहती तो किसी को नाउसकी आँखे अजनबियों कि भीड़ में अपनी माँ को खोज रही थी , उसे नहीं पता था कि उसकी माँ कोअस्पताल ले जाया गया है , ताकि वो इस सदमे को सह सके | आख़िर आंसुओं कि अनगिनत धाराओं औररुदन कि असह्य वेदना के साथ , विनी के पिता का अन्तिम संस्कार कर दिया गया |
सब लोग अपने-अपने घर चले गए | अति नजदीकी रिश्तेदार उनके घर रुके | इसके बाद ठहर - सी गई जिंदगीमें एक भूचाल -सा आना बाकी था | १५ दिन बीतते -बीतते घर वालों को पता चला कि विनी के साथ खेलने केलिए , उसकी माँ एक और बेबी को लाने वाली है | विनी कि माँ कि स्थिति को बयान करने के लिए मेरे पासकोई शब्द नहीं है | हर कोई उसका भला चाहता था , हर कोई उसके दुःख को कम करना चाहता था , ऐसीविकट घड़ी में विनी के नाना-नानी को अपनी बेटी के भविष्य कि चिंता होना स्वाभाविक है , वे सोच रहे थे किइतनी कम उम्र में उनकी बेटी अकेले दो बच्चों को कैसे पालेगी , उन्होंने एक बहुत ही कठोर निर्णय सुनायाविनी की माँ नए बच्चे को जन्म दे , ( वे यह भी सोच रहे थे कि भविष्य में हम अपनी बेटी कीदूसरी शादी करवा देंगे ) अब दादा-दादी की बारी थी - निर्णय देने की , वे अपने बेटे की आखरी निशानी कोदुनिया में लाना चाहते थे , उन्हें एक आशा भी थी, कि शायद विनी को भाई मिल जाए ( अपनी बहू को बेटीबनाकर वे भी भविष्य में उसकी शादी करने से इंकार नही कर रहे थे ) आख़िर विनी की नानी , विनी की माँ कोअपने साथ ले गई और नए बच्चे को इस दुनिया में आने से रोक दिया गया | मीठे और मधुर रिश्तों में कड़वाहट गई |
| -------- इसमें किसी को भी दोषी ठहराना ठीक नही होगा लेकिन " सही निर्णय का सही समय " पर लिया जाना जरुरी है , भावुकता या जल्दबाजी में लिए गए एक ग़लत निर्णय से संबंधो में दरार आना स्वाभाविक है , वैसे भी ये ऐसा संवेदनशील क्षण होता है , जहां व्यक्ति अपने -आप को सबसे अधिक लाचार पाता है | अब विनी के बारे में निर्णय होना बाकी था इस बार दादी की बात मानी गई - विनीअपने दादा-दादी के पास रह गई , और विनी की माँ को उसकी नानी अपने घर ले गई |
इस हादसे ने विनी को उसके पापा के साथ ही माँ से भी अलग कर दिया | उसके चेहरे कि मुस्कराहट कहीं खोगई| इस बीच एक बार विनी की दादी की ख़बर आई की वे विनी को मेरे शहर में लेकर आई है तो अपने आप कोरोक सकी मै | विनी , जिनके यहाँ रुकी थी, मै वहाँ गई उसकी दादी से इजाजत लेकर उससे घूमने चलने कोपूछा ,मेरे पास स्कूटर देखकर (शायद वो बहुत दिनों से उस पर बैठकर घूमने नही जा पाई थी )अपने आप कोरोक नही पाई ,मुझसे अनजान होते हुए भी ,मेरे साथ चलने को राजी हो गई सबसे पहले झूला,फ़िर बुढीया केबाल ,फ़िर फुग्गा ,फ़िर आइसक्रीम ,खिलौने, कपडे सब कुछ करते-करते घंटे कहाँ बीत गए पता ही नही चलामगर थोडी -थोडी देर में मुझसे पूछती रहती थी कि- अपने वापस पहुँचने तक दादी रुकेगी ? मै उसके डर कोसमझ रही थी |
आज इस हादसे को साल होने को आए है ,विनी कि माँ कभी-कभी विनी के पास आने लगी है , शायद समयसब जख्मो को भर देता है फ़िर भी एक डर बना हुआ है कि जब विनी बड़ी होगी ,रिश्तो कि अहमियत कोसमझेगी तब कितने सवाल उसके जेहन में उठेंगे और क्या कभी कोई उसके सवालो के जबाब उसे दे पायेगा ? दादा पहले ही रिटायर हो चुके थे , आजीविका के लिए घर में ही किराना दुकान चलाते है , विनी से मै बहुतदिनों से नही मिली हूँ ,पर चाहती हूँ , जब भी मिलूँ वो सिर्फ़ मुस्कराए बल्कि खिलखिलाते हुए मुझसे मिले |
मुद्दे की बात ---एक बात जो आमतौर पर देखी जाती है कि ,ऐसे मौकों पर ( जब किसी परिवार में किसी कीअसमय म्रत्यु हो जाती है , या कोई परिजन किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाता है |) मुफ्त की सलाह देनेवालो की भरमार हो जाती है , जो सिर्फ़ शोक जताने आते है और अपनी राय सौप जाते है |
और दूसरी अहम् बात--- ऐसे मौकों पर ही घर के बुजुर्गो के धैर्य ,और अनुभव की परीक्षा होती है |


Tuesday, February 24, 2009

समझा क्या ?????

ईश्वर ने हर किसी ,को कोई काम दिया है ,
अगर काम ठीक से किया, तो फ़िर नाम दिया है |
पेडो से कहा है -देना ,
पक्षियों से -गाना |
पर्वत को कहा- खड़े रहना,
नदियों को कहा- बहना |
चाँद को कहा- ठंडक देना ,
सूरज को - चमकना |
हवा से कहा- संभलकर चलना,
बादल से - बरसना ,
धरती से कहा -सबको समेट लेना ,
आसमान से -ढकना|
फूलो को कहा- सुगंध बिखेरना ,
बच्चों को कहा- हँसना |
नर को कहा-संभालना ,
नारी को कहा - सहना |
मैंने अब तक ऐसा समझा, है तुझे ये बताना ,
अगर तू इसे समझा हो तो ,औरो को भी बताना |
चप्पे-चप्पे पर रहने वाले का नाम लिखा है ,
और दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा है|
खुदा ने अपनी हर एक चीज पर ,
बन्दे के लिए कोई न कोई पैगाम लिखा है |

Sunday, February 22, 2009

सबकी माँ

तीन----
सबकी माँ,
हाँ भाई हाँ,
माँ तो माँ,
बोले कभी - ना,
दिल पुकारे गा-
उई-माँ,उई-माँ,
मन को गयी भा,
उनको भी दो ला,
जिनकी ना हो माँ,
खुश हों वो भी पा,
जीवन भर करे--हा,हा,हा।

Friday, February 20, 2009

सत्य है !!!!!

एक जैसा दुःख मेरा तुम्हारा ,
मैंने खोया चाँद, तुमने तारा ,
मैंने खोयी खुशी ,तुमने हँसी ,
फ़िर भी हम दोनों को जीना है,
अपने आंसुओ को अकेले पीना है ,
यहाँ पर मै तेरे साथ , तू मेरे साथ है,
बाकी सब ऊपरवाले के हाथ है ,
वहां किसी के साथ कोई दगा नही होता ,
क्योकि ,ईश्वर और मौत का कोई सगा नही होता|

अनजाने मे

अनजाने मे ही सही, मगर दो दिन पहले ही मेरे साथ ऐसा हादसा हुआ-स्कूल मे ड्राइंग कॊपी न लाने के कारणमुझे कुछ बच्चों (४थी क्लास) के घर फ़ोन करके बताना था, उनमें से एक के बारे में मुझे पहले ही बताया गयाथा कि ये अपने मामा के यहाँ रहता है,और इसके मामा कभी फ़ोन ही नही उठाते।मै फ़ोन लगाने की कोशीशकरते हुए (घंटी जा रही थी) उस बच्चे से सवाल भी करते जा रही थी वह वार्तालाप --
-मामा के यहाँ रहते हो?
-हाँ
-कहाँ?
-खजराना
-मामा क्या करते है?
-मालूम नही
-और पापा कहाँ रहते है?
-खजराना
-अरे,दोनो वहीं रहते है तो आप पापा के पास क्यो नहीं रहते?पापा का घर दूर है क्या ?(मुझे लगा था स्कूल दूरपडता होगा)
-नहीं,पास में।
-फ़िर,बोलो पापा के पास क्यो नही रहते हॊ?
इतने मे किसी बच्चे ने कहा मेडम-ये गाली भी बहुत देता है।
-क्यों, आप गाली देते हो?
-कभी-कभी
-क्यों?
बच्चा चुप रहा।
-आपके घर मे कोई गाली देता है?
बच्चे ने हाँ मे सिर हिलाया।
-कौन?
-मामा
-मै अवाक सी उसकी ओर देखती हुई बोली-किसको देते है?
-सबको
-मामा के बच्चे है?
-हाँ
-आपने बताया नही,पापा के पास क्यों नही रहते हो?
बच्चा सहमा-सा मुझे देख रहा था,थोडा रुककर बोला हमारी मम्मी को पापा ने तलाक दे दिया है।
जबाब सुनते ही मै सन्न रह गयी,उस बच्चे से कुछ न कह सकी,सिर्फ़ इतना ही कहा गाली देना बुरी बात है ना, आपको नही देना चहिये।आगे से कभी किसी को गाली मत देना और ड्राईंग कॊपी लेकर आना।फ़ोन की घंटीअब भी जा रही थी।
मुद्दे की बात--"समीर जी ने अपने ब्लोग पर लिखा है-लोग बोलने के पहले अगर वाणी नियंत्रित करें,विचारोंको यूं ही न बाहर निकाल दें,जरा अन्य पहलू पर भी नजर डालें,तो शायद ऐसी स्थितियों से बचा जा सकता हैकि कोई आहत न हो,न किसी के दिमाग पर ऐसी बात अंकित हो जाए जो जीवन भर पोछे से न पूछे।"
कितनी सही है- यहाँ बच्चे के दिमाग पर ऐसी बात अंकित है जो जीवन भर न पोछी जा सकेगी।और मेरी कहीबात से मै खुद इतनी आहत हूं कि शायद जिन्दगी भर उस बच्चे को भुला न पाऊंगी।

Thursday, February 19, 2009

क्या पढ़े ???

आजकल मैंने अखबार पढ़ना बंद कर दिया है |बहुत से कारण है अखबार पढ़ने के मसलन---
. पढ़ने लायक पेज एक या आधा ही होता है |
.मरने या मारने की ख़बर पहले प्रष्ठ पर पढ़ कर मन व्यथित हो जाता है|
.दुर्घटनाओ के फोटो दिन भर आखों के सामने से हटते नही |
.एक पेज पढ़ने के लिए - पेज कम से कम महीने (रद्दी बेचने तक)संभालकर रखने पड़ते है|
.जिस ख़बर की पूरी-पूरी जानकारी चाहिए होती है वो ठंडे बस्ते में चली जाती है |
.विज्ञापनों के भी हाल ऐसे होते है की अगर बच्चो के सामने पढ़े तो उनके पूछे कुछ सवालो के जबाब नही दे पाते|
(शीर्षक लिखने वाली थी मगर लिखने में भी अच्छा नही लग रहा है ,ख़ुद ही पढ़ लीजियेगा )
.कोई नेता या पार्टी वादा कर रही होती है, तो कोई दूसरो को उनके किए वादों की याद दिलाती है|
.सुबह पेपर चाय के साथ पढने का टाइम नही रहता,और शाम तक ख़बर बासी हो जाती है|
.खेलप्रष्ठ का मजा दूरदर्शन ने कम कर दिया है| (लाइव टेलीकास्ट के कारण)
१०.यहाँ लिखने में मजा आने लगा है |

Tuesday, February 17, 2009

ये नेता

आजकल इंदौर में .बी .रोड की चौडाई बढ़ाने काम काम चल रहा है ,सड़क के एक छोटे से हिस्से को जिसतरह घुमा -फिरा कर बनाया गया है ,उसकी पीड़ा से उभरी है ये कविता -------
समझ में नही आता जो लोग जोर से चिल्लाते है,
वो नेता क्यों बन जाते है?,
या फ़िर जो सब कुछ खा कर पचा लेते है,
वो, नेता बन जाते है?,
विरोध के स्वर हमेशा क्यों दबा दिए जाते है?,
ये नेता लोग अपनी करनी पर क्यों नही पछताते है?,
इन्हे अपनी गलती पर शर्म क्यों नही आती है?,
क्या हया इनके घर कभी नही जाती है?,
क्या ये अपने बच्चों के सवालो के जबाब दे पाते है?--
कि पापा जब सीधा रास्ता कम दूरी का होता है तो,
आप लोग सड़के टेड़ी-मेढ़ी क्यों बनवाते है?,
जिस पर आप तो अपने लाव-लश्कर के साथ सरपट निकल जाते है ,
और बेचारे सीधे-सादे लोग जाम में फंस जाते है,
मोडो पर उलझ कर ही रह जाते है |
मेरे हिसाब से हर नेता को एक मजदूर के परिवार कि देख-रेख का जिम्मा सौप देना चाहिए ,
और उसने मजदूर के बच्चों को लायक डॉक्टर ,या इंजिनियर नही बनाया तो ------
नेता को मजदूर बना देना चाहिए |


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Wednesday, February 11, 2009

खेल-खेल में

इन दिनों वातावरण में परीक्षा की खुशबू आने लगी है|हर तरफ़ बोर्ड परीक्षाओ के चर्चे चालू हो गए है| बच्चो को अगले महीने होने वाली परीक्षा का डर सताने लगा है |माता-पिता बच्चो के सोने,जागने,उठने ,बैठने ,खाने- पीने से लेकर आने -जाने तक नजर रखने में लग गए है|सभी स्कूलों में "fairwell" हो रहा है|इसी माहौल कोध्यान में रखते हुए ,स्कूलीजीवन पूरा करके कॉलेज में प्रवेश करने वाले सभी विद्यार्थियों को, एक स्पोर्ट टीचरकी ओर से, अनेक शुभकामनाओ और आशीर्वाद सहित समर्पित ये कविता -------
"खेल -खेल में"
आओ तुम्हें बताऊं बात एक आज,
खोलूं अपने दिल का एक राज,
मेरा मन कभी पढाई मे नहीं लगता था,
हमेशा कक्षा की खिडकी से बाहर ही भागता था,
बहुत डरती थी मै पढाई करने से,
और हमेशा बचती थी कक्षा में खडे होकर पढने से,
मुझे हमेशा खेल बहुत भाए है,
लगता था जैसे ये मेरी ही माँ के "जाए" है,
कसकर हमेशा खेलों का पकडा था हाथ,
फ़िर भी जाने कब? किस मेले मे, छूट गया था साथ,
कभी जब अपने बारे में सोचती हूं ,तो पाती हूं,
कि घर में सबसे बडी हूं, और सबसे ज्यादा पढी हूं,
शायद खेल और पढाई की दोस्ती थी,
और खेल ने ही छुपकर पढाई की उंगली पकड रखी थी,
पढाई मुझे बिना बताए मेरे साथ चलती रही,
और खेल को सामने देख मै खुश होती रही,
मै नहीं जानती थी कि जिन्दगी में कभी ऐसा मोड आएगा,
जहाँ पढाई आगे और खेल पीछे हो जाएगा,
पर बच्चों- हमेशा से ऐसा ही होता आया है,
पढाई ने हमेशा ही खेल को हराया है,
मगर अब समय रहते तुम इस बात को जान लेना,
खेल की "ऊँगली" और पढाई का "हाथ" थाम लेना,
तुम्हारे अन्दर भी बहुत "कुछ" है,
जो तुमने अब तक नहीं पाया है,
शायद ईश्वर ने उसे बहुत ही अन्दर छुपाया है,
तुम्हें यहाँ से आगे जाकर भी उसे ढूंढना है,
बहुत दूर तक चलना है,
दादा की लाठी लेना है,
दादी का हाथ पकड़ना है,
पिता के कंधे का बोझ हल्का करना है,
माँ के सपनों को पूरा करना है,
जीवन की नदिया मे बहकर सागर से जाकर मिलना है,
दुनियाँ के आसमान में रोशनी बनकर चमकना है,
अपना नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों पर लिखना है,
यहाँ तक तो सबका साथ था--
अब तुम्हें अकेले ही आगे बढ़ना है,
चाँद पर तो सब जा चुके ,
तुम्हें सूरज के घोडों पर चढना है।

Tuesday, February 10, 2009

सबकी माँ

दो---
पिछली पोस्ट मे मैनें कई तरह की माताओं के चेहरों का जिक्र किया था जो मेरी आखॊं के सामने आते चले गये
थे (क्योकि मैने उनके साथ समय बिताया है) अगर सब के बारे में दादी की तरह लिखूं तो एक किताब ही छ्पजाये मगर अभी हिम्म्त नहीं हो रही है। यहां सिर्फ़ थोडा-थोडा-----
एक माँ, जिसके १७ साल के एकलौते बेटे को नशे की आदत ने जकड़ लिया।३०साल से उसकी आदत छुड़ानें केलिए प्रयासरत है।अब तक बेटे और उसके परिवार का साथ निभा रही है ।अब शायद एक ही इछ्छा मन में लिये है कि उसकी पोती की शादी करने के बाद ही उसकी आखें बन्द हॊं।
एक माँ, जिसकी विवाहिता बेटी की करंट लगने से १३ साल पहले असमय मौत हो गई थी ,जिसका एक साल का दुधमुहां बच्चा अब ९वीं कक्षा में पढ़ रहा है|
एक माँ , जिसके एकलौते बेटे का सड़क दुर्घटना मे दिमाग क्षतिग्रस्त हो गया और वो - माह से अस्पताल में अपने१६वर्षीय बेटे की याददाश्त वापस लाने की असफल कोशिश कर थी इसी बीच उसके पति को पीलियाहो गया, पति को किसी दूसरे अस्पताल में रखा गया था|- दिन तक दिखाई नही देने पर पूछ ही लिया किआज इसकी माँ नही आई जबाब मिला वो घर पर ही है उसे दोनों जगह जाना पड़ रहा है आज रो रही है कि मैकहीं नही जाउंगी दोनों को मर जाने दो।ये घटना सन् १९९३ की है |
और भी है मगर, और नही, बस अभी ,और नही, बाकी फ़िर कभी सही !!!
उक्त सभी माताओ को सादर नमन !!!!!!!!!!!

Friday, February 6, 2009

सबकी माँ

आज maatashri.blogspot .com पर "माँ " पढ़ा| हर एक की भावनाएँ पढ़कर रोंगटे खड़े हो गए| कई प्रकारकी माताओं के चेहरे आँखों के सामने आते चले गए -------
एक
------सबसे पहले उस "माँ " का जो मेरी दादी थी ,कहते है हमारे दादा के घर में पीढियों से कोई औरतजिंदा नहीं बचती थी इसलिए कोई हमारे दादा के लीए अपनी लड़की देने को राजी नही होता था |दादी का रंगथोड़ा काला था और ऊपर से चेचक के दाग भी चेहरे पर थे तो हमारी दादी के गरीब पिता, जिनके बच्चे थे, नेअपनी बड़ी लड़की की शादी उनसे कर दी थी|उस समय घर में दादा के पिताजी तथा उनके दादाजी सहीत बिनाऔरतों का लोगों का परिवार था|दादी उस समय में चौथी तक पढ़ी थी|वे उस परिवार में बची भी और बच्चों की माँ बनी | अपने सभी बच्चों को उन्होंने ऊँचाइयों तक पहुँचाया | (बेटे बैंक मेनेजर ,वकील,- इंजीनीयर बने तो लड़कियाँ क्रमश-६टी,१०वी, एम्. एस. सी.तक पढी | मेरे पिता अपनी माँ को बहुत प्यारकरते थे ,आज वो नही है मगर मै उनकी और से उनकी माँ को नमन करना चाहती हू | उनमे गजब की हिम्मतथी वो हर नए काम को करना चाहती थी ,पढ़ने का उन्हें बहुत शौक था |हर विषय की जानकारी रखती थी |मेराखेलने का शौक उनकी आड़ पिता की शह पर ही पनपा |उनकी वजह से ही मेरे पिताजी ने मुझेमोटर-साइकिल चलाना (१९७४ में ) सीखाया था |वे कहती थी की सीखी हुयी कोई भी चीज कभी बेकार नही जाती |टी.वी .पर वे प्रवचन के साथ समाचार सुनती (हिन्दी,अंग्रेजी )दोनों भाषाओ में और हर समाचारपर अपनी बेबाक टिपण्णी भी देती |मैंने उन्हें अमिताभ,राजेश खन्ना की फिल्मे उतने ही शौक से देखते हुएदेखा है जितने शौक से वो टी. वी.पर रामायण या महाभारत देखती थी वे गावसकर औरश्रीकांत के खेल कीदीवानी थी तो उतने ही चाव से कपिल और सचिन को भी पसंद करती थी आपातकाल का मसला हो याजम्मूकश्मीर का ,घर बैठे हल सुझाया करती थी |पूजा के बाद हमेशा से घंटे उन्हें पोथी (संस्कृत में)पढ़नेमें लग जाते थे|रोज गीता का पाठ और कई स्तोत्र, मुखाग्र करती थी |कोई साथ पढ़े या पढ़े वे हर सालरामनवमी पर रामायण की समाप्ति (९दिन में नवान्हपारायण पढ़कर )करती थी| मै उनके आखरी समय मेंउनके पास ही थी अपनी शर्तों पर ही जीती थी वो और अपनी शर्तों पर ही अन्तिम साँस ली उनहोंने | उनकीयाद में एक कविता ----------
पहचानो कौन?
खाने खिलाने की शौकीन ,
प्रभु में लीन,
गुणों की खान ,
घर की शान ,
बीमारी में पास बैठती ,
सिर,हाथ, पैर दबाती ,
सोते समय कहानी सुनाती ,
जब हम ठीक हो जाते तो ,
कमर ,गर्दन ,पीठ पर चलवाती ,
कभी भी नहीं डांटती ,
पर,गेंहू बीनवाना,रोटी बेलवाना,
"गोबरपुन्जा" जैसे काम करवाती
छोटे- बड़े ,अमीर-गरीब ,
किसी में कोई भेद नहीं रखती
खेल हो या राजनीती,
फ़िल्म हो या आपबीती,
सबमे दिलचस्पी ,
आलस को करती दूर से नमस्कार ,
अतीथियो का सत्कार ,
ना माने कोई चमत्कार ,
कर्म में विश्वास ,
कूटकूट कर भरा आत्मविश्वास ,
बहुए उनसे घबराती,
बच्चों को दुलारती ,
स्कूल जाने से मना करने पर ,
कपड़े उतरवा कर ,
घर से बाहर खड़ा कर देती,
खाना अगर बाँट के खाओ ,
तो पशुओ को खिला देती,
माँगने वाला कभी गया खाली ,
"दारीवाळो", और "मुआजो ",
उनकी प्रिय थी गाली,
उनका समझाने का तरीका था विचीत्र,
वर्णन करूं तो मन देखे सचित्र |
आओ हम सब करे याद ,
नवाए शीश,झुकाए माथ,
मगर किसे ?,
नाम तो बताया नहीं ?,
परिचय तो करवाया नहीं ?
ये थी हमारी
दादी,
और नाम था
"सरस्वती ",
आओ समय के साथ पीछे जायें ,
उनकी कही कुछ बातें दोहराए ----
.सीकेलु कदी बेकार नी जातु|(सीखी हुई बात कभी बेकार नहीं जाती) |
.भगवान जो करज,अच्छा ना लेण करज। ( भगवान जो करता है, अच्छे के लिए करता है)।
.काम करवाती, हाथ नी घिसाई जाएगा|(काम करने से हाथ नहीं घीसेंगे )।
.काम सू करज त्याँ? सब हुई जायगा |( काम को क्या करना ,सब हो जाएगा)।
.काव??????,इन्न चाय दी दी?( क्यो?????। इनको चाय दी)?
.चाय पीदी की नई ?( आपने चाय पी या नही) ?
.ज़मी लिदा?ज़मी जाजो| (खाना खाया? खा के जाना )|
.वळी आवजो |(और आना )।

Wednesday, February 4, 2009

मै , जब छोटी हो गई |

अब तक अपने बच्चों को उंगली पकड़ कर यहाँ तक लायी हू,अब उन्होंने मेरी उंगली पकड़ ली है |पढ़ने के लिए दोनों बच्चे घर से दूर चले गए है फ़ोन पर बातें होती रहती है, मगर जब बेटे से कहा की जब तुम लोग यहाँ छुट्टियों में आते हो तो ऐसा लगता है की अब बहुत हो गया, मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना रहता है मगर ज़रूरी बातो के अलावा कुछ कह ही नही पाती और तुम्हारे जाने का समय हो जाता है, तो उसने सुझाया- आप जो कहना चाहते हो उसे लिख दो, मगर कैसे ? पूछने पर उसने ये ब्लॉग बना दिया |जब भी फ़ोन लगाती ,पूछता-लिखा की नही मेरा जबाब होता लिखूंगी|
यहाँ तक की फ़ोन लगाने के पहले ही डर लगने लगा कि फ़िर पूछेगा तो???? बेटी कहती-हमें तो कुछ करने के लिये कैसे कहते हो, अब आप करो तो !!!!|आखिर एक दिन तय कर ही लिया की आज तो कुछ न कुछ लिख ही दूंगी चाहे पसंद आए या न आए| पर अब जब से कॉमेंट्स आने लगे (कभी-कभी ) तो डर लगता है कि वे सब आगे भी पढ़ने की उम्मीद से कॉमेंट्स करते है| कल ही बेटे से कहा है -तुने मुझे मुसीबत में डाल दिया है तो हंसने लगा ,तब तो उससे बोल दिया की हंस ले, हंस ले मगर अब समझ में आ रहा है की बच्चे, माँ की उंगली छुडा कर क्यो भागते है!!!!!!!!!!
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