Friday, September 26, 2014

अनवरत प्रवाहमान कहानी का अठारहवाँ टुकड़ा


18
कभी -कभी कोई दिन बहुत दुखी कर ही जाता है , कितना भी चाहो खुश रहना उदासी अपनी जगह बना ही लेती है .....
तुम्हारा मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर उसकी लकीरों को देखना कभी भूल नहीं पाती हूं ...जब-जब भी सफ़ाई के दौरान पुरानी पड़ी किताबों से हस्तरेखा वाली किताब जिस पर तुम्हारा नाम पहले पन्ने पर लिखा है, निकलती है, फ़िर अपनी हथेलियां देख लेती हूं, जाने क्या पढते थे इनमें और कुछ पूछती थी तो चुप हो जाया करते थे... टाल देते थे बस यूं ही कहते हुए


..... लेकिन एक बात हमेशा कहते - ये तुम्हारी लाईन इतनी कटी हुई है..और  नई लाईन फ़िर से शुरू हुई बिलकुल अलग से ....
..मुझे तब कुछ समझ नहीं आता ...लेकिन अब देखने पर लगता है दोनों लाईनों के बीच खाई भी तो कितनी गहरी है ...... जाने क्या लिखा होता है हाथों की लकीरों में और माथे पे ...सबकी ...:-(
 ...
मेरे डेस्क्टॉप पर  पॉडकास्ट चालू है - पद्म सिंह जी की लिखी रचना का ---

तुम बदले संबोधन बदले
बदले रूप जवानी रे
मन में लेकिन प्यास वाही
नयनों में निर्झर पानी रे
..





"अनवरत प्रवाहमान कहानी का एक टुकड़ा"

फ़ेसबुक से कतरे ...

चाँद अब रहता है देर तक सुबह होने के बाद भी
कहीं सूरज की तबियत तो खराब नहीं जाड़े में ....

या कि चाँद पर लोगों के जमीन ले लेने से
चाँद को जगह लेनी पड़ी सूरज से भाड़े मे...
-अर्चना


सोचा था,
आज मैं
चुप ही रहूंगी
कुछ न कहूंगी
पर तुम हो न!
बस! सुनने का
ठेका लिए बैठे हो
कभी तो दो शब्द बोलो
कि मैं सुनूँ "प्रेम"....

-अर्चना

नवरात्रि




माँ ने सिखाया 
प्रेम करो सबसे
मिलके रहो ..

देखने तुम्हें
हर वर्ष आउंगी
खुश रहना
... 

आत्मसम्मान
  विश्वास और आस्था
नवरात्रि में 
 
  नई उमंग... 
नीरस जीवन में 
भर देती माँ...

जय माता की
कह देने भर से
धुलेंगे पाप....

जय माँ अम्बे
अधर्म का नाश हो
तेरी कॄपा से..

Tuesday, September 23, 2014

अनजान चेहरा

ये बाबा मिले थे पिछले साल वैष्णो देवी की पहाड़ी चढ़ते समय.... जब थोड़ा सुस्ताने के लिए मैं वत्सल और पल्लवी रूके एक शेड में तो ये आकर कहने लगे पैर की मालिश करवा लीजिए ...दर्द कम हो जायेगा ..इनकी उम्र और इनके काम को देखकर दर्द तो वैसे ही दूर हो गया था.....वे जब गुहार लगा रहे थे तब वत्सल ने फोटो निकालने का पूछा ...खडॆ होकर पोज़ दिया .... वे सोच रहे थे काम मिल जायेगा .... तब ये भाव थे चेहरे पर ...
 फ़िर इन्हें पचास रूपये देकर कहा कि एक फोटो और लेना है ...मालिश नहीं करवानी ..... तो ये भाव आये इनके चेहरे पर ....
 आज न जाने कहाँ होंगे ....दुबारा मुलाकात भी होगी या नहीं, नहीं मालूम,.... लेकिन इस उम्र में इतनी ऊंचाई पर दिल जीत ले गए ये हमारा ....
दो पल ही सही इनके चेहरे पर मुस्कान लाने में सफ़ल हुआ वत्सल ...अच्छा लगा ...
काश कि इनका नाम भी जान लिया होता .....

Monday, September 22, 2014

जीवन-मृत्यु

जीवन -मृत्यु  

किसी अपने के 
सदा के लिए चले जाने पर
वक्त ठहर जाता है
पर .... 
ठहरना वक्त का 
कभी अच्छा नहीं होता 
खो जाता है इसमें 
एक नन्हा सा बचपन 
बचा लो उसे 
अनचाहे दर्द से
कि साँसों का चलना ही तो
जिन्दगी नहीं  ......

Thursday, September 18, 2014

कलाकारी

न जाने कितनी चीजें सीखी लड़की होने के कारण ...
ये दो फ्रेम शादी के बाद मेरे साथ ही ससुराल आई थी ....मैं तो इधर-उधर होती रही ...मगर ये आज भी उसी जगह टंगी हैं जहाँ नवम्बर 1984 में मैंने टांगी थी ......
.
.
जब भी  यहाँ आती हूँ .... बहुत कुछ याद दिलाती हैं .......

Tuesday, September 16, 2014

पोर-पोर पीर बोई ...

सुनिए एक विरह गीत ...गिरिश बिल्लोरे "मुकुल" जी का लिखा हुआ,जिसे आप पढ़ सकते हैं- उनके ब्लॉग इश्क-प्रीत-लव  पर

Monday, September 15, 2014

सुप्रभात







सितारों की दुनिया से
हमको लौटा लाया सूरज
अंधेरी सुनसान रात को
फ़िर भगा आया सूरज

देखो किरन कैसे 
जगमगाई है
नन्ही सी चिरैया भी 
चह्चहाई है
ओस का बोझ 
नन्ही दूब ढो नहीं पा रही
और कीचड़ से सने अपने पैर 
धो नहीं पा रही


कहीं-कहीं बादल 
अब भी कड़क रहे हैं
सूरज के डर से 
दूर ही बरस रहे हैं....
अपनी- अपनी रोटी तलाशने को
फ़िर भी मजदूरों को जगा आया सूरज
सपनों की दुनिया से 
हमको लौटा लाया सूरज !

ग्यारहवाँ टुकड़ा, उस कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी

11-
स्पीकर पर धीमी आवाज में प्रवीण पांडे जी की रचना -"अरूण मंत्र गाता निशा गीत गाती , संध्या बिखेरे छटा लालिमा की" .. सुन रही हूं, डिवशेअर पर चला रहा है ....खुद ही रिकार्ड किया था दो अलग- अलग तरह से तो बारी-बारी प्ले हो रहा है...
1)




2)



मैं दोनों में अन्तर खोज रही हूं, महसूस भी कर रही हूं, और इतनी रात गए सांझ की लालिमा भी पलके झपकते ही दिख रही है.... 




कुछ देर पहले मायरा के लिए बुने जा रहे स्वेटर की सलाईयों को थामें हुए थी... फ़ेसबुक पर स्टेटस दिख रहा है सुज्ञ जी का -

संध्या चिंतन........

उदार वृति विकास के लिए......

*भूल जाओ!!*

1. अशांति के संस्मरण
2. दूसरों के साथ संघर्ष
3. परस्पर कटुता
4. अपना अपमान
5. वैर-वैमनस्य

नित्य संध्या, अंतर्मन को धोना आवश्यक है!! -

कंप्यूटर टेबल पर सलाईयाँ पटक दी है ,एक फोटो लिया मोबाईल से ऐसे ही टाईम पास , दिमाग में चिंतन शुरू हो चुका है ,...
भूल जाओ ... अशांति के संस्मरण एक -एक कर याद आ रहे हैं, और संघर्ष दूसरों से ज्यादा खुद से किये याद आने लगे हैं अब .....आखरी के दो प्वाईंट धुल चुके हैं शायद ....

उंगलियां खटर पटर करने लगी फ़िर से ...टेबल पर सलाईयां अब भी पड़ी हुई हैं...



आज तक मेरी आदत गई नहीं एक साथ कई - कई काम करने की , मुझे लगता है इससे मैं सारे काम एक साथ खतम कर लेती हूं, कोई आगे और पीछे नहीं होता ...परस्पर कटुता ...गायब !

ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी .....

Friday, September 12, 2014

"नदी प्यासी थी" - अब न रहेगी...

पिछले दिनों फ़िर एक नाटक देखने का मौका मिला धर्मवीर भारती जी को श्रद्धांजली स्वरूप ...
प्रस्तुति थी अनवरत टीम की और नाटक था-
 धर्मवीर भारती का- "नदी प्यासी थी"... निर्देशन किया था नितेश उपाध्याय ने ..
इनके निर्देशित किये अब तक तीन नाटक देखे तीनों बढ़िया मगर इससे और बेहतर करने की संभावना है उनमें ...
"नदी प्यासी थी".
जीवन से निराश एक ऐसे व्यक्ति राजेश की कहानी जो लेखक है ....अपना जीवन समाप्त करना चाहता है..लेकिन अन्त में एक अनजान बच्चे का जीवन बचाने की कोशिश में खुद जीने की आस जगा बैठता है......जिन्दगी की खूबसूरती का उसे एहसास होता है और वो लौट आता है अपनी जिन्दगी में
राजेश( शशांक चौरसिया) नामक पात्र के संवाद लम्बे थे मगर अदायगी अच्छी रही...
साथ ही चल रही थी एक पढ़े लिखे डॉक्टर की प्रेम कहानी ..जो अन्त में जीवन से निराश हो जाता है......सिर्फ़ एक गलतफ़हमी की वजह से .. डॉक्टर का अभिनय करने वाले पात्र पियूष भालसे ने वाहवाही बटोरी .... एक दब्बू किस्म के शर्मीले किरदार का अभिनय करके ......और दीक्षा सेंगर ने पद्मा का किरदार बखूबी निभाया आवाज थोड़ी और जोर से आती तो और अच्छा लगता ( ये मेरी अपनी राय है)
 दोस्त के रूप में नितेश उपाध्याय ने और उनकी पत्नि के रूप में  नयन रघुवन्शी ने आकर्षित किया ...
पार्श्व में चलने वाले गीत कलीम चन्चल ने बखूबी गाए और लिखे भी उन्हीं ने थे खासकर शुरूआती गज़ल बहुत अच्छी लगी ....
बहुत कम समय के अभ्यास के बाद भी एक बेहतर प्रस्तुति , हर कलाकार ने अपना १००% देने की कोशिश की  ....
                                                             पियूष भालसे  और दीक्षा सेंगर
                                                                       नितेश और नयन
                                                       राजेश के किरदार में शशांक चौरसिया
वाकई बांधे रखा संवादों और कलाकारॊं ने ..और अन्त में मेरी आंखों में नमी भी महसूस हुई ... जब कोई अपना असमय जाता है ,परिवार पर पहाड़ टूट पड़ता है .... काश कि जीवन के सौन्दर्य को सबकी नजरें देख पाए ...
बधाई अनवरत टीम को
अपने नाम को साबित करते हुए एक माह में एक नाटक का वादा पूरा किया ...साथ ही इस टीम से जुड़े वे सभी सहयोगी भी बधाई के पात्र हैं जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर सहयोग किया और अपनी ऊर्जा दिखाई .....
मुझे खुशी हुई कि मैं इतने अच्छे लोगों से जुड पाई .. और मेरी शुभकामनाएं कि अनवरत का कार्य अनवरत चलता रहे ....

Tuesday, September 9, 2014

पहन फ़कीरों जैसे कपड़े .... "मेरे गीत"

बहुत समय पहले की बात है , मैंने एक ब्लॉग पर एक अधूरी सी लाईन पढ़ी थी - वह शक्ति हमें दो दयानिधे......
और मुझे प्रार्थना याद आ गई जो हम घर में मिलकर रोज गाते थे , कठिन समय में जब ईश्वर से धैर्य मांगना होता था तब .... मैंने गाई और " मिसफ़िट सीधी बात" पर पोस्ट भी की .. ये है प्रार्थना ---
वह शक्ति हमें दो दया निधान......



फ़िर ये गीत

दर्द दिया है तुमने मुझको.........



 .. और फ़िर ये .... इसकी लिंक खोजने पर अभी नहीं मिल सकी ......  लेकिन मुझे ये पसन्द है ...

 बड़ी भयानक शक्ल छिपाए रचते...

 



 आप में से कितनों ने पहले सुना, नहीं पता .....कितनों ने नहीं सुना ,वो भी नहीं पता ....और कितनोंने सुनकर अनसुना कर दिया वो तो बिलकुल भी नहीं पता ....
पर आज सतीश जी से बिना पूछे अपने ब्लॉग पर सहेज लिए .....

Monday, September 8, 2014

जब कर ली अपने मन की

शिक्षक दिवस के अवसर पर नईदुनिया और बी सी एम ग्रुप द्वारा कलकत्ता के बैंड -
"ध्वनि .. .म्यूज़िक फ़्रॉम द हार्ट " की प्रस्तुति रखी गई थी इन्दौर के शिक्षकों के लिए ... बहुत आनन्द लिया  नए-पुराने गीतों के साथ ,
......कुछ समय के लिए खुद को खुद से मिलवाने के लिए .... सालों बाद सीटी बजाई .... निलेश ( अपने दामाद जी, मायरा के पापा) ने भी साथ दिया  ......खूब  मजा आया .....
गीतों का चयन बहुत पसंद आया और दर्शकों को बाँधे रखने की उनकी कला भी पसंद आई....

अन्त में जब सबसे फ़ीड्बेक मांगा गया तो रोक न सकी खुद को स्टेज पर जाने से ...... मुझसे पहले जितनी शिक्षिकाएं आई कुछ ने अंग्रेजी में तारीफ़ की ,कुछ गीतों की दो-दो पंक्तियां गुनगुनाकर चली गई ......
निलेश को लगा था मैं भी गीत ही सुनाउंगी , सोच भी लिया था मैंने एक पल को पर अपन तो वही करते हैं--  "मेरे मन की" तो यही बात स्टेज से कही कि - मैं अर्चना चावजी ....... परफ़ोर्मेंस बहुत पसन्द आया और मैंने सालों बाद सीटी बजाई ... और फ़िर तो पब्लिक डिमांड पर स्टेज से भी सीटी बजा ली ....हालांकि उतनी अच्छी बजी नहीं हंसी आने के कारण ...पर ...नेक्स्ट टाईम ....पक्का!!!


 


 और ये भी आश्चर्य की बात रही कि ब्लॉगर कविता वर्मा जी जो कि हॉल छोड़ कर बाहर निकल चुकी थी मेरा नाम सुनकर पलट कर वापस आई और हम खूब गले मिली ..... उन्के श्रीमान जी को नेपथ्य में रखकर हालांकि बात कुछ नहीं की पर फोटो जरूर ली ....



दूसरे दिन यही खबर अखबार में आई लेकिन नाम की गफ़लत के साथ - अचर्ना चौधरी.... हिन्दी के अखबार  में गलत नाम आना- वो भी नईदुनिया में ... अखर गया ...!