Tuesday, April 28, 2015

नन्हे-नन्हे मोती यूँ न खो




हर हाल में हम सुखों को बाँटें,
करें दुखों का मिलकर दमन।
जीवन जिसने दिया है हमको,
उस विधाता को हमारा नमन।


सुखों का मौसम,दुखों का मौसम,
आए, आकर जाए।
हर एक के, मन के आँगन में,
सपनों को बिखराए।


सुख आते तो, खिलती पाँखें,
खुशी-खुशी सब मुस्काते।
चेहरे सबके खिले-खिले से,
मिलजुलकर सब हँसते-गाते।


दुख आते तो सब घबराते,
सही काम न एक, कर पाते।
गीली होती, सबकी आँखें,
डर कर सब रोते-चिल्लाते।


होना है जो, होकर रहता,
नहीं किसी के टाले टलता।
हिम्मत से जो दुख: से लड़ते
जीत उसी की,सभी ये कहते।


हर हाल में हम सुखों को बाँटें,
करें दुखों का मिलकर दमन।
जीवन जिसने दिया है हमको,
उस विधाता को हमारा नमन।
-अर्चना

Thursday, April 23, 2015

आराधना "मुक्ति" की कहानी - शर्त

आज सुनिए आराधना "मुक्ति" के ब्लॉग ईचक दाना बीचक दाना  से उनकी लिखी एक कहानी शर्त




प्लेअर पोस्ट नहीं कर पा रही थी ...आदरणीय अनुराग  जी की मदद से ये हो पाया ..उन्होंने एडिटिंग भी की है ....
आभारी हूँ उनकी ....
सुनकर बताईयेगा कैसी लगी ... कहानी को कहानी की तरह सुनाने का पहला प्रयास है ये मेरा ....

Saturday, April 18, 2015

अभिनय - कठपुतली का

कल सुबह-सुबह  फोन आया ,फोन बदल लेने से नम्बर सेव नहीं था ....नया नम्बर लगा ...फ़िर आदत से लाचार खुद फोन लगाया .... नमस्ते नितेश बोल रहा हूँ,....आवाज आई..नितेश उपाध्याय..
-हाँ,हाँ पहचान लिया , नमस्ते ,बोलिए
- मैडम , एक हेल्प चाहिए थी
-जी, कहिए
-वो क्या है कि हम एक टेलि फिल्म शूट कर रहे हैं ,उसमे एक बच्चे की केयर करने वाली महिला का जो रोल करने वाली थीं वे सुबह मुम्बई निकल गई हैं . ...प्लीज आप करें
-मैं, मैंने तो कबःई कुछ नहीं किया ..
-कोई बात नहीं, वो आप मुझ पर छोड़ दीजिए..., आपको लेकर जाउँगा और शाम को घर छोड़ भी दूँगा
-अरे! मगर कब करना है? और क्या करना होगा ?
(संक्षेप में बताया ) आप कब फ़्री होंगी...तीन बजे तक फ़्री हो जाएंगी ?...प्रश्न के साथ
मैंने कहा हाँ दो बजे घर पहुँचती हूँ ...
-ठीक है, मैं आपको फोन करता हूँ .....दो तीन सूती साड़ी होगी आपके पास?
-जी है
-ठीक , वो रख लीजियेगा  ...
-ठीक
बस! रख दिया फोन ....
...
और इस तरह ३ बजे से --७ बजे तक कल शूट किए कुछ दॄष्य...... साड़ी गुजराती स्टाईल में पहली बार पहनी और सिर पर पल्लू भी पहली बार ही लिया ..:-)

मेरे जीवन का एक अद्भुत अनुभव .... बिना कुछ जाने ....बस जो निर्देश मिलते गए ...करती गई ...पता नहीं कैसे किया ...निर्देश्क नें कैसे झेला ...:-)
...और रिजल्ट क्या होगा ...पर  मजेदार बात ये रही कि -केमरा मेन साहब को सब संतोष पुकार रहे थे ... फ़ेसबुक फ़्रेंड से मुलाकात हुई ....

खैर! मन में बस यही था कि जब नितेश  को मुझ पर इतना विश्वास है, तो उसका विश्वास टूटना नहीं चाहिए .... और पूरी टीम का कार्य रूकना नहीं चाहिए .....किसी का समय बर्बाद नहीं होना चाहिए ..
कभी सोचा न था .... कि जीवन में ऐसा अनुभव भी मिलेगा ...
तो इस अविस्मरणीय अनुभव के लिए रंगकर्मी टीम "अनवरत"का हार्दिक आभार ! ..
खुद मैंने नहीं देखे कोई दॄष्य.... तो इन्तजार....इन्तजार ....



पैरों की जूती

यहाँ ऐसे -ऐसे लोग हैं 
जो ये मानते हैं -
उनके पैरों की जूती भी
नहीं हैं आप ...
खुद पर विश्वास रखो
मिलेगा वही
जो चाहते हो
बस! 
स्वार्थ न हो 
निस्वार्थ रहो सदा
करते चलो अपने काम
बेझिझक
बेहिसाब
फिर वे ही लोग 
आपकी जूती में 
पैर डालने की कोशिश 
करते नज़र आएंगे
आगे बढ़ने का रास्ता
उस तक पहुँचने का रास्ता
सिर्फ़ आपको ही पता है 
और विश्वास रखो 
चलते रहोगे तो
नंगे पैर भी
जा पहुँचोगे 
वहीं ...सबसे पहले
जहाँ पहुँचने को
बेताब हैं सब 
जो बिना नाप के जूतों में 
पैर डाले घिस रहे हैं 
अपने शरीर
- अर्चना ( बस यूँ ही आज का दिन गुजरते-गुजरते)

Wednesday, April 15, 2015

देखो...देखो !!! वो आ रही है ....

११/०४/२०१५.... और कुछ इस तरह उतर कर आई हमारी "मायरा" अपने जन्मदिन की पार्टी में ..