Friday, March 31, 2017

सृष्टि की रचना और चित्र वैचित्र्य

दो रचनाएं पढ़ी फेसबुक पर पहली वाणी गीत जी की सृष्टि की रचना ...और दूसरी आशीष राय जी की चित्र वैचित्र्य ...
और सहज टिप्पणियां हुई -

ईश्वर ने जब रचा होगा ये संसार
मन रहा होगा उसका निर्विकार
साकार किये जब उसने स्त्री और पुरुष
आया न होगा कोई विषम विचार
न मुग्ध हुआ ,न खिन्न हुआ,पर
किया उसने सुन्दरतम विस्तार...

रचकर ये संसार सिखाया
उसने हमको कर्म
न कोई है - अपना पराया
समझा न कोई मर्म
वाणी का आशीष न देकर
अगर वह रह जाता जो मौन
चित्र वैचित्र्य इतना सुन्दर
हमको दिखलाता फिर कौन ?....

Sunday, March 26, 2017

दिल होता है कितना सुन्दर

वो सुंदरता का मुरीद था,
होता भी क्यूँ न!
मेरा दिल था- उसकी आँखों में ...

दिल होता है,कितना सुन्दर
ये जाना था उसने मुझसे -बातों में ...

कभी जो की भी- बताने की कोशिश
खो गया वो तभी -महकी साँसों में ...

काश!सपने सच हो जाया करते  सदा
जो देखे जाते रहे हैं -शीतल चाँदनी रातों मे...

और मुझे कभी 'था' न कहना पड़ता
उसके लिए इस तरह...
जो तकदीर लिखना होता -अपने हाथों में ...
-अर्चना

बाल कविता

मास्टरजी ने बच्चों को बुलाया
कक्षा में ये फरमान सुनाया
कल सबको विद्यालय अनिवार्य है आना
साथ में अपने एक हास्य कविता भी लाना
सुन कर मास्टरजी का ये फरमान
बबलू बाबा हो गए हैरान
चिंता से उनका सर भन्नाया
घर जा माँ को मास्टरजी का फरमान सुनाया
बोले - माँ कल जरूर से स्कूल जाना है
और साथ में हास्य कविता को भी ले जाना है
अब हो गई माँ परेशान
जानकर ये बहुत हुई हैरान!
कविता तो मिली ढेर सारी
सूरज ,फूलों,जानवरों वाली
कहीं बन्दर था कहीं था भालू
कहीं कद्दू और कहीं था आलू
तुकबंदी थी,भाष्य नहीं था
कविता मिली पर हास्य नहीं था,
तब माँ ने किया तकनीकी इस्तेमाल
फेसबुक पर स्टेटस ठेला और मंगवाया लिंकित ज्ञान
अब दोनों बैठे टकटकी लगाए
टिपण्णी ताकते,कि कोई कविता-
कविता में  हास्य लेकर आए
तभी मिला ये अद्भुत ज्ञान कि

अपनों संग जब समय बिताओ
हास्य से खुद सराबोर हो जाओ
अब बबलू से फूटी हास्य की झड़ी है
और हास्य कविता बबलू के मुंहबाएँ खड़ी है ...







Saturday, March 25, 2017

मन के पंछी कहीं दूर चल

तुम आशा विश्वास हमारे
तुम धरती आकाश हमारे...गीत बजने लगा है विविध भारती पर ....
है तो प्रार्थना ही पर मैं चली गई अतीत में ,मन भारी हो गया,सूरज की लाली दिखाई देने लगी है अब ..अरे!ये क्या सूरज से पहले तुम उग आए आसमान में!
-मैं जानता था,इस गीत के बजते ही तुम्हारे हृदय की सितार के तार झनझना उठेंगे और मैं चल पड़ा  उन्हें सुनने ...ये क्या? तुम्हारी आँखों में नमी तो नहीं ,मन का बोझ महसूस हो गया था मुझे ...

- ह्म्म्म!मैंने कोशिश की ...पर....
पर आजकल आँसू बहुत जल्दी आने लगे हैं ....
आपके इतना कहने पर भी...

-मन हल्का हो जाता है.. रो लिया करो... मत रोको आँसुओं को...
-आते हैं और रूक जाते हैं ...
लगता है खूब जोर से चिल्लाउं ... और एक दर्द में सब खतम ... सच्ची
थक गई हूं ...
.डर है ...आगे क्या होगा का
-तो चिल्लाओ.. अकेले में ख़ूब ज़ोर से.. यह थेरेपी का हिस्सा है... जो घुटकर रोते हैं वो बहुत तकलीफ़ पाते हैं.. चीख़कर रोने से मन हलका होता है..
-मगर मुझे ये सौभाग्य अभी तक नहीं मिला कि ये थेरेपी आजमाऊँ ....पहली और आखरी बार तभी ली थी ,जब तुम बादलों के पार.....
....
ओह!!!।ये क्या? रे!सूरज !आंसू पोछकर हथेलियाँ  सरकाई नहीं कि नेपथ्य में धकेल दिया उन्हें ?
बस आवाज ही सुनाई दी -मायरा कैसी है?
..........
............
गीत खत्म हुआ, अगला गीत ....पंछी बनूँ उड़ती फिरूं मस्त गगन में ...
आज मैं आजाद हूँ .......

अनवरत लिखी जा रही प्रवाहमान कहानी का टुकड़ा ...

Tuesday, March 21, 2017

उधार लेने वाले..


आज बहुत दिनों बाद हम बहनें साथ बैठ गप्पे लगा रही हैं,बात बात में बात चल पड़ी है कुछ लोगों की ,जिन्होंने हमसे उधार लिया मगर चुकाया नहीं,यहाँ तक कि खुद से तो वापस दिया या देने की बात भी नहीं करते बल्कि हमारे वापस माँगने पर भी ये उत्तर दिया या देते हैं कि -अभी नहीं हो पा रहा,परेशानी चल रही है बहुत...
खूब हँस रहे हैं हम ऐसे लोगों को याद करके, भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि उन लोगों को परेशानी से बाहर निकाले ...
एक सीख भी याद आ रही है -भूखे मरते मर जाना,पर कभी मांग कर नहीं खाना ।
ये माँगने की आदत एक बार लगी तो आदमी बेशरम हो जाता है,कई लोग अपनी जरूरतों की प्राथमिकता ही तय नहीं कर पाते, वरना भगवान ने किसी को कोई कमी नहीं रखी,अपने पास जितनी बड़ी चादर हो ,पैर उतने ही फैलाने चाहिए...
कई लोग तो ऐसे हैं,जिन पर दया आई और मुश्किल वक्त में उन्हें पैसे से मदद की लेकिन अच्छे वक्त में वे ही भूल चुके कि उधार लौटाना भी है।
हर रात सोने से पहले याद कीजिये किसी का कुछ उधार चुकाना तो नहीं है,अगर मन ना में जबाब दे तभी चैन से सोइये वरना अपना एक हितैषी खो देंगे आप ...👍

Thursday, March 9, 2017

उड़ो कि सारा गगन तुम्हारा है ...

महिलाओं को आगे लाने की बात हो तो घर से शुरुआत करनी चाहिए ,सबसे जरूरी है उनकी शिक्षा व रुचि ...
जैसा कि सब जानते हैं परिवार में जितने लोग होते हैं आपसी सूझबूझ और तालमेल के साथ रहें तो प्रेम बना रहता है,तालमेल का यहाँ मतलब है अपनी -अपनी जिम्मेदारी और समय संयोजन के साथ आपसी सहयोग होना।
जिस तरह से पीढ़ी दर पीढ़ी सामाजिक परिवर्तन होते हैं  उन्हें स्वीकार करना और परिवार में सामंजस्य बनाए रखना जितना बुजुर्गों के लिए जरूरी है, उतना ही नई पीढ़ी के लिए भी अपने संस्कारों और सीख को अगली पीढ़ी तक उसी रूप में पहुंचाना जरूरी है ।

व्यक्ति अपने अनुभवों से ही सीखता है,और अगर हम ये कहते हैं(जो कि सुनते आए हैं) कि - बड़ों की बात सुनना चाहिए तो उसका सीधा अर्थ यही होता है कि उनके अनुभवों का लाभ लेना चाहिए।
अब महिलाओं की बात करते हैं -परिवार में महिलाएं ही वो नींव होती हैं जो भारतीय परंपरा के अनुसार संस्कारों का वहन कर उन्हें एक परिवार से दूसरे परिवार और एक समाज से दूसरे समाज तक विस्तार देती हैं,

हो सकता है ,अगर आप बेटी के अभिभावक हैं तो ये आपकी जिम्मेदारी बनी रहती है कि आपके परिवार की सारी अच्छाइयों का ही प्रसार हो और शायद महिलाओं में अनुशासन के पालन का गुण इसी का नतीजा हो ...मगर ये आपकी जिम्मेदारी है कि आपके घर में संस्कारों की खेती होती रहे तो जो बेटे घर में रहें वे उसे सींचते रहें ....

समय बदलता है महिलाएं उन क्षेत्रों में भी अपना रास्ता खोज खुद आगे बढ़ने लगी हैं,जिनमें जाने से वे वंचित रही हैं ,यानि रोक तो कोई नहीं है,कहीं नहीं है ...

अब मैं अपनी पीढ़ी की ही बात कहूँ तो गोबर के उपले बनाने,भैंस का दूध दुहने,आँगन लीपने,अरहर-मूंग की दाल घर में बनाने और उनके शेष बचे चूरे से पापड़-अचार- कुरळई-वड़ी बनाकर सुखाने तक से लेकर साईकिल -मोटर साईकिल और कंप्यूटर चलाने तक सब करने लगे हैं हम और हर जगह घर के पुरुषों का समान सहयोग रहा ,सदा बढ़ावा ही मिला ...

हम जितने आगे बढ़े उतना पीछे भी रहे, लेकिन आज की पीढ़ी सिर्फ आगे बढ़ना चाहने लगी और अनुभवों की फिक्स डिपॉजिट का उपयोग करना छूट गया।

अब बताती हूँ मेरे अनुभव की बात - मैं खुद साईंस लेकर ग्रेजुएट हुई,लेकिन उस समय खेल में रूचि होने से फाईनल परिणाम अच्छा नहीं रहा और आगे रेग्युलर एडमिशन नहीं मिल पाया और लड़की होने और खेल सुविधाओं ,कोचिंग के अभाव में  ज्यादा आगे तक खेल भी नहीं पाई,खैर आगे लॉ किया,मगर सोच वही रही कि घर ही रहना है, और जब मुसीबत सर पर आई तो लड़ते-भिड़ते यहाँ तक पहुँच आ पहुंची,सार ये कि सब बिना प्लानिंग के .... लेकिन पूरे परिवार ने सबक लिया और अब घर में लड़कियां आत्मनिर्भर हैं ।

चलते चलते बता दूं कि मेरी बहू बिहार से है, और शादी के बाद पी एच डी पूरी करने के लिए चार साल होस्टल में रहना था तो ये बेटे और परिवार के सहयोग से  सम्भव हो पाया ...अब अपने जॉब में है ..
और बेटी जो पहले से ही जॉब कर रही थी,उसके ससुराल में कोई  महिला सदस्य जॉब नहीं करती थी  फिर भी शादी के बाद जॉब जारी रखा था और एक अनहोनी घटने पर जब सास - ससुर का साथ छूटा तो सारी जिम्मेदारी बेटी- दामाद पर आने पर उसने जॉब से छुट्टी ली और अब मायरा की देखभाल के साथ आगे की है पढ़ाई कर रही है ....
यानि सहयोग से सब सम्भव है, मगर आगे महिलाओं को आना होगा और महिलाएं ही आगे बढ़ाएगी तो महिलाओं के लिए कोई रोक नहीं उड़ने को विशाल गगन है ।

मुझे ख़ुशी है कि मेरा परिवार और मैं - हम ये कर पाए...

Thursday, March 2, 2017

मेरी सहयात्री

कल लौट रही थी बड़ोदा से ,रात भर का सफर था ,करीब 3 बजे ,मध्यरात्रि में 10 मिनिट का ब्रेक दिया गया यात्रियों को ...
जब मैं वापस बस में चढ़ी तो केबिन में बैठी मुस्लिम महिला अपने दाहिने पैर की सलवार घुटने और जाँघ की जगह से पकड़ कर अधनंगे पैर को छुपाने की कोशिश कर रही थी ,
हालाँकि मेरी नज़र नहीं पड़ी थी,तभी वो बोली -कुत्ते ने पकड़ लिया , सारी सलवार फाड़ दी,
मैंने घबराते हुए पूछा - अभी?क्योंकि वे भी नीचे उतरी थी ।
वे बोली- नहीं सूरत में ही बस में चढ़ने से पहले कुत्ता लपक लिया ,वो तो अच्छा हुआ काट नहीं पाया ,सिर्फ सलवार फटी, पर ऐसी फटी कि शर्म आ रही है ,नीचे भी नहीं उतरती पर टॉयलेट जाना भी मजबूरी थी तकलीफ हो रही थी,गठान बांधकर किसी तरह हो आई
मैंने उन्हें कहा -मेरे पास सेफ्टी पिन है आप उसे लगा लीजिये और बड़ी-बड़ी 2 पिनें दी
पिन लगाते हुए वे बोली - "माफ़ कर दीजियेगा अब आप और मैं कभी शायद ही मिलें,मैं आपको वापस न कर पाऊँगी।"
और उनकी यह कृतज्ञता मेरे लिए अनुकरणीय हो गई ।

न मैंने उनका नाम जाना न उन्होंने मेरा ,लेकिन स्त्री का दर्द ही स्त्री जान जाए और बाँट ले ,ये क्या कम है ?

हाँ ,ये तो अंत में पता चला कि वे सूरत से कपड़ों की खरीदारी कर लौटी थी बेचने के लिए ,जब कपड़ों के गट्ठर बस से उतरवाते देखा यानि अकेले सफर करती रही हैं और हर कठिनाई का सामना करने को तैयार ।