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Sunday, March 10, 2013

आनन्द ---२

 आनन्द --- १
....तब से लेकर अब तक आनन्द से सम्पर्क बना हुआ है ... सुख दु:ख के पल साझा करते हैं आपस में मैं और आनन्द ...जब उसे पता चला कि मेरे पैर में फ़्रेक्चर हुआ है ,तब उसने मेरे लिये तीन किताबें और एक बी. पी.मॉनिटर गिफ़्ट में भेज दिया था...अब जब कभी तबियत पूछता है, तो उसे बी.पी. चेक करके उसी समय बताना होता है ... :-)
किताबें पढ़ना जाने कब से छोड़ दिया था ...हर किताब का कोइ न कोई पन्ना खुद की जिंदगी से जुड़ा सा लगता है ..और किताब तो हाथ में ही रह जाती है जिंदगी बन्द आँखों से बह चलती है ,लेकिन जब किताबें मिली जिनमें एक थी हरिशंकर परसाई जी की -"विकलांग श्रद्धा का दौर" जिसमें छोटे -छोटे व्यंग्य़ हैं रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े ,तो उसे पॉडकास्टिंग करने के लिये उपयोग किया और रेडियो प्लेबेक पर भेजे , दूसरी थी प्रेमचंद की -"सेवासदन", बहुत सारी बैठकें दे कर पूरा कर ही लिया और पेंसिल लेकर अंडरलाईन करते-करते पिताजी को याद करती रही , कभी लिख पाई तो अंडर लाईन वाली लाईने सहेज लूंगी यहीं ,और तीसरी किताब है  मैत्रेयी पुष्पा जी की - "इदन्नमम",जिसे अब तक कई बार खोला पर बार-बार रख दिया है(बहुत मोटी लगती है-ज्यादा पन्ने हैं) ...पर पढूँगी जरूर आनंद को बताना है को कि मैंने पढ़ा है ....
कई बार वो फोन पर भी  बात करता रहा है लेकिन एस .टी. डी. से ,मोबाईल उसे पैसे और समय की बरबादी लगता है ,और अपनी मर्जी से बात करता है ,जब मुझे कुछ कहना हो तो मेल करो ...इस बात पर उसे कहती हूं- पक्का बिहारी गुंडा है ...तो जबाब होता है- वो तो मैं हूँ ही....
बस थोडा -थोडा सीखती रही हूं..इस बार मोबाईल का उपयोग बहुत जरूरी होने पर ही .....
आगे और भी है....मिलते रहेंगे  आनन्द से

Thursday, February 28, 2013

आनन्द---1

आनन्द....
हाँ यही नाम है उसका..वो मिला मुझे नेट की दुनिया में कदम रखते ही...मई २००९ से भी पहले ...
हाँ जब से नेट के बारे में जाना पहले जी मेल ,फ़िर ब्लॉग,फ़िर ऑर्कुट और अब फ़ेसबुक ...सबके बारे में जाना और समझा...जी मेल और ब्लॉग तो बहुत काम में लेती हूँ खुद के लिए ..और फ़ेसबुक खबरों के लिए...
लेकिन जो छूट गया वो है ऑर्कुट ....आजकल नहीं के बराबर आना -जाना होता है वहाँ...
तो मैं बता रही थी आनन्द के बारे में ...२५-२८ साल का ऐसा लड़का जिसके बारे में पहले नहीं जानती थी...
ऑर्कुट पर एक सोशल ग्रुप देखा तो रहा नहीं गया मुझसे ...उसकी गतिविधियाँ देखने के लिए पढ़ती रहती थी उस पर आए मेसेज.....
और एक दिन आनन्द का एक मेसेज पढ़ा--- बंगलौर में एक नेत्रहीन छात्र पैसे के अभाव में फ़ीस जमा नहीं कर पा रहा है उसे मदद कीजिये ....नम्बर पर ...बात कर सकते हैं ...कुछ पैसे कम पड़ रहे हैं आपकी मदद समय पर मिल जाए तो वह इसी वर्ष परीक्षा दे सकेगा परीक्षा का .....वगैरह....
और मन किया कि बस कुछ करना है ....तभी छोटा भाई ट्रांस्फ़र होकर बॉम्बे से बंगलौर गया था ,तुरंत उसे फोन लगाया और सारी बात बताई...फोन नम्बर भी दे दिया, कहा- जो बन पड़े करना...
दूसरे दिन भाई का फोन आया कि उसने बात कर ली है और आज ऑफ़िस में उसे बुलाया है ,उसके साथी के साथ आएगा,मैं बात करके उसे दे दूंगा पैसे ....
बहुत खुश हो गई थी मैं ...सोचा एक तो नेक काम होगा शायद ....
खुशी-खुशी दूसरे दिन भाई से पूछा -पता लगा कि वो आया था , उसके साथ एक मित्र को लेकर,और भाई ने रूपये दे दिये ...ये कह कर कि और कोई मदद चाहिये हो तो बताना...वो खुशी-खुशी लौट गया था ।हमने भी सोच लिया था कि उसने फ़ार्म भर दिया होगा और हमने एक नेक काम कर लिया....
लेकिन कुछ दिन बाद ही एक और मेसेज देखा आनन्द का....इस बार सबसे क्षमा याचना करते हुए लिखा था कि- उससे भूल हुई, उसके  बताए हुए बच्चे को मदद नहीं पहुँची, उसके साथी ने उसे धोखा दिया और उस बच्चे के लिए इकट्ठे किये पैसे ले गया.....और जिन लोगों ने मेरे कहने पर, भरोसा करके उस बच्चे को मदद दी मैं उन सबसे क्षमा मांगता हूँ...
मैंने ये पढ़कर आनन्द को बताया कि उसे तो मेरे भाई ने भी मेरे कहने पर मदद की थी ...उसे बहुत बुरा लगा ये जानकर ,और आनन्द नें मुझसे माफ़ी मांगी ।
मैंने आनन्द को कहा कि कोई बात नहीं तुम क्यों माफ़ी मांगोगे ,तुम्हारी कोई गलती नहीं है ,तुमने अपना फ़र्ज निभाया ,अब अगर उसे मदद नहीं मिली तो इसमें हमारी कोई गलती नहीं है ,आनन्द का कहना था ऐसी ही बातों  के कारण कोई मदद करने को आगे नहीं आता और सारी कोशिश बेकार चली जाती है ,मैंने उसे समझाया कि इन बातों के होने से हम मदद करना तो नहीं छोड़ सकते! ये ही सोच लो कि जो पैसे ले गया वो उस नेत्रहीन बच्चे से भी ज्यादा जरूरतमंद होगा...हमारा दिया किसी तक तो पहुँचा ही है ।
बात खतम हो गई ये कह कर कि इस बारे में अब बात नहीं करेंगे...
लेकिन मुझे एक बेटा मिलना था सो मिल गया...:-)
कुछ दिनों बाद पता चला  कि मेरे सहकर्मी नवीन सर की तबियत खराब हो गई है, और वे किसी ऐसे हॉस्पीटल की तलाश कर रहे हैं, जहाँ उनका ईलाज हो सके ...गुजरात में है ...ये सुनकर मुझे आनन्द की याद आई मैंने चेट पर  ये सारी बात बताई और उसने कुछ अस्पतालों की जानकारी मुझे दी ये  कहा कि जाँच करवाने के लिए कुछ दिन रूकना होगा ,सुनकर उसने जो कहा वो मैं कभी नहीं भूल सकती - "ज्यादा कुछ तो कर नहीं पाउंगा लेकिन वे चाहें तो मेरे  घर रूक सकते हैं ,एक कमरे का घर है मेरा....मेरे साथ मेरा छोटा भाई रहता है बस हम दो ..."
और जिस हक से उसने कहा था वो मेरे मन को छू गया ..कोई किसी अनजान व्यक्ति के लिए इतने भरोसे से कह रहा है,जिसे वो जानता तक नहीं ,ये बात जीवन में मुझे औरों पर भरोसा करना सीखा गई ....
आज बस इतना ही ..जारी रहेगा संस्मरण जब तब ...आनन्द के साथ ...