Tuesday, April 23, 2013

एक व्यंग्य रचना -व्यंग्यलोक से ....

आज प्रमोद ताम्बट जी के ब्लॉग से एक व्यंग्य रचना -- मेरे गहरे साहित्यप्रेमी दोस्त और मैं

जब पॉडकास्ट बनाने के लिए कहानियों की खोज में थी तो फ़ेसबुक पर स्टेटस लिखा ---

"मैं कुछ अच्छी कहानियों की खोज में हूं, जिनका पॉडकास्ट बना सकूं, १० से १५ मिनट की ...
अगर लिंक खोजती हूं और अनुमति लेने के लिए इन्तजार करती हूं तो बहुत समय लग जाता है ... अगर आप (जो कहानियां लिखते हैं)अनुमति दे दें तो ... ब्लॉग से कहानियां मैं खुद खोज लूंगी ... :-)
"


पता नहीं था बहुत फ़ायदा होने वाला है ,प्रमोद जी ने मेसेज में बताया कि हम तो व्यंग्य लिखते हैं ,और तब मिला उनका ब्लॉग ----व्यंग्यलोक ....

एक प्रयास किया पॉडकास्ट बनाने का और भेज दिया अनुमति के लिए हमेशा की तरह ,ये थोड़ी न पता था कि वे थियेटर से भी जुड़े हैं.... :-)
उन्होंने समय देकर सुना ,और कहा- "बहुत बढ़िया है, कर्णप्रिय स्‍वर एवं स्‍पष्‍ट उच्‍चारण । मैं थियेटर से हूँ इसलिए कहना चाहूँगा कि थोड़ा Voice Modulation और होता तो आनंद आ जाता।"अब अपने पल्ले तो कुछ पड़ा नहीं तो सीधे पूछा-
Voice Modulation =?
आवाज और जोर से रखनी थी क्या ?:-)

और फ़िर उन्होंने उतनी ही आत्मियता से बताया -- "नहीं, इसका मतलब है, आवाज़ का उतार-चढ़ाव, ड्रामा वगैरह। कन्‍वर्सेशन तो प्‍लेन नहीं हो सकता ना।......... देखिए जब सुनने वाले आपके सामने न हों तो रिडिंग में एक बात महत्‍वपूर्ण होती है कि कहां श्रोता का लाफ्‍टर आऐगा, उस पंच को पहचानना और उसे सही Modulation के साथ पढ़ना। श्रोता के रिएक्‍शन के लिए पॉज़ देना। सबसे बड़ी बात खुद ही रचना का आनंद लेना, आनंद लेते हुए पढ़ना। इससे पॉडकास्‍ट और ज्‍यादा श्रवणीय हो सकता है।"

 तो बस! फ़िर क्या था दिमाग के घोडे़ दौडा़ए और फ़िर एक बार किया रिकार्ड ,फ़िर भेज दिया ...
अबकि बार जबाब मिला -- सुन रहा हूँ। स्‍टार्ट में ही भारी परिवर्तन दिख रहा है। बधाई हो।

 और बस इस तरह तैयार हुआ ये पॉडकास्ट आप सबके लिए ....



आदरणीय़ प्रमोद जी का आभार इस सुझाव व सहयोग के लिए ....

Sunday, April 21, 2013

अल्लाह जानता है…

पिछले कुछ दिनों से मन स्थिर नहीं है ..कुछ पन्ने पलटे कुछ ड्राफ़्ट में कुछ पंक्तियां मिली ऐसे ही कुछ पलों की साथी.... और ये गीत/गज़ल..... और ये आवाजें ...

शिद्दत से चाहा, फ़िर भी हम चूके
वक्त और मन, किसके रोके रूके... 

वक्त फ़िर जाने क्यों खुद को दोहराता है
मन भला कब वापस लौट कर आता है...


वक्त पर किसी का जोर नहीं चलता
वरना मेरे कहे से वक्त कुछ और ठहरता..

कभी जो मिला वक्त मुझसे तो पूछूंगी
क्यों न करूं मैं अपने मन की

जब खुद मन की करता है -
क्या वो मर्जी है किसी "जन" की...

अपना आकाश होगा, तो अपनी जमीं भी होगी
जिसमें अपने हिस्से की थोड़ी सी नमीं भी होगी...

संघर्ष करते रहना ही जिन्दगी है
गम को दिल में छुपा कर हँसना ही बन्दगी है


ढँक देने से दुख कम तो नहीं होते
पर खुशी बाँट देने से ही बढ़ती है .




Friday, April 19, 2013

वीनू - तुम बहुत याद आओगे !

 ये है वीनू ..... 
मैसूर मे वत्सल के घर वाली  गली का आम कुत्ता 

एक दिन बाहर से कूं -कूं की आवाज आने पर वत्सल ने बाहर जा कर देखा (आम तौर पर उसका आने का समय दस- साढ़े दस बजे का रहता है ) ये ही आवाज कर रहे थे वत्सल ने ब्रेड ले जाकर दी ,पहली ब्रेड को मुंह मे दबाकर वो भागते हुए गली के दूसरे छोर पर गया और ब्रेड रखकर वापस आया ,वत्सल ने दूसरी दी ये महाशय  दूसरी भी ले गए और फिर रखकर वापस आए तीसरी दी तो बैठ कर खा ली ,चौथी दी तो उठकर चल दिये ...

तीन -चार दिन तक यही क्रम चलता रहा वत्सल भी याद से रोज ब्रेड लाने लगा ,कभी जब ब्रेड भूल गया तो कार्नफ़्लेक्स देने पर यहीं खा लेता,रोटी दी - जो चीज वो मुंह मे दबा कर ले जा सकता ,जरूर लेकर जाता  वत्सल ने जाकर देखा की आखिर ब्रेड लेकर कहाँ जाता है तो पाया एक कुतिया थी ,जिसके लिए ब्रेड लेकर जाता था और दोनों उसे देकर आता था ,तीसरी वो खुद खाता था ,और हमेशा बस तीन ब्रेड...एक भी ज्यादा नहीं ....धीरे -धीरे रोज वत्सल के ऑफिस से आने का इंतजार करता था ...



अगर वत्सल और देर से आता तो गाड़ीदेखते ही उसके साथ दौड़ा चला आता ....




एकदम  साफ सुथरा रहता ----



अभी होली पर वत्सल घर गया तो ,वापस आने पर वीनू नहीं मिला :-(
पता नहीं चला कि कहां गया .... वत्सल बहुत याद करता है ... 

अभी मैं यहां हूं वत्सल के साथ बाहर जाते समय मैंने महसूस किया है की उसकी निगाह वीनू को ही खोजती है -नाम भी वत्सल ने ही दिया था ...
आज अपने फोटो फेसबुक पर अपलोड करते हुए ये फोटो मुझे दिखाए और वीनू के बारे मे बताया .... 

सच में !मिली तो नहीं उससे पर आभासी दुनिया के रिश्ते ऐसे ही तो बनाते हैं हम ....
तो मैंने आपसे मिलवाया --

काश! वीनू जहां भी हो अच्छा हो.... 

Thursday, April 18, 2013

जो न समझे नज़र की भाषा को...

नीरज गोस्वामी जी (इनके बारे मे जानिए यहाँ भी )की एक गजल को आवाज देने की कोशिश की थी -

बहुत समय पहले "मिसफिट सीधीबात" के लिए पोस्ट भी किया था,अब वहाँ divshare की लिंक काम नहीं कर रही तो यहाँ साझा कर रही हूँ ,

सुनना चाहें अगर ---




Wednesday, April 17, 2013

वत्सल के केमरे की नजर से - 4


एक कहानी नन्हें पंछियों की जुबानी ....

जीना तो है उसी का जिसने ये राज जाना -है काम आदमी का औरों के काम आना ...........


मैसूर के कारंजी लेक में वत्सल के साथ घूमते हुए जब एक बैंच पर बैठी तो सामने ये पंछी बैठा दिखा किसी के इंतजार में , और फिर जो देखा वही कैद किया वत्सल ने केमरे के साथ ... प्रस्तुत है आँखों देखा हाल ..... आगे लिखने की जरूरत भी कहाँ है ?.......






               

















.. 

कितना कुछ है प्रकृति में सीखने को ....

Friday, April 12, 2013

खाली दिमाग शैतान का घर !

इन दिनों वत्सल के पास मैसूर आई हुई हूँ ... कहते है खाली दिमाग शैतान का घर होता है  :-) --- खुद को काम में इतना झौंक दो की दिमाग कभी खाली ही न रहे , साथ ही दादी की सुनाई एक कहानी याद आ रही है --
एक दयालू सेठजी थे ,कोई बाला-बच्चा नहीं था सेठानी के साथ मिलकर दाना-पुण्य का काम किया करते ,एक दिन उन्हें एक सपना आया ,सपने में भगवान मिले ,वे बहुत खुश थे सेठजी के दान-पुण्य के  कामकाज से ,बोले -वर मांगो ,सेठजी ने सोचा जब मुझसे मेरे काम नहीं होंगे तो कौन करेगा तो बोले एक ऐसा नौकर  दें दें जो मेरे सारे काम कर दिया करे मैं न रहूँ तो सेठानी के भी ,तथास्तु बोलकर भगवान तो विदा हो गए ,आँख खुली तो सपना सच हो गया था एक भूत /जिन्न/नौकर  हाजिर था सेठजी की सेवा में,सेठजी तो सपना भूल चुके थे, पूछा कौन हैं आप? क्या चाहते हैं? जिन्न बोला मुझे आपने मांगा है भगवान से -काम करवाने के लिए तो बस आप मुझे काम बताएं करना क्या है? मैं एक पल भी खाली नहीं रह सकता ,वरना मुझे कुछ खाने को देना होगा ,सेठ जी ने सोचा कितना करेगा आखिर थकेगा भी तो ... और बिस्तर उठाना, घर की सफाई करना, पानी लाना , काम बताए ... जिन्न जी ने चुटकी बजाई और काम खतम.... अब सेठजी एक काम बताते और दूसरा बताने को याद कराते .....सेठानी को भी पता चला ,कुछ काम  जो वो करती थी उसने भी बता दिये ... दुकान जाते समय साथ ले गए सेठजी, पर वहाँ भी वही हाल ......दिन भर में जब काम न हो तो खाना !!!! बेचारे सेठजी एक दिन में ही तंग आ गए सोचा कहाँ की परेशानी मोल ले ली, ...... अब सेठानी को आया गुस्सा उसने उपाय सोचा जिन्न से कहा एक सीढ़ी लाओ .... उसे छत के नीचे लगाओ ,उसपर से ऊपर चढ़ो और जब ऊपर पहुँच जाओ तो नीचे उतरो ,जब नीचे उतर जाओ तो फिर ऊपर चढ़ना जब तक की ऊपर से नीचे की और नीचे से ऊपर की सीढ़ी दिखना बंद न हो .......
और इस  तरह छुटकारा पाया ......खाली समय के नौकर से ....
तो अब बात ये कि खाली मैं  भी रह नहीं सकती इन दिनों वत्सल के पास मैसूर आई हुई हूँ- तो खाली समय में कुछ चित्र और उसके कमरे की दीवारों को ड्रा करने का प्रयास किया ... और ऐसे ही फेसबुक से दूर रहने का इंतजाम भी :-)
 कुछ प्रयास मेरे .... आप भी आनद लें ----







और ये फेसबुक से एक फोटो देखकर बनाया -- 



Wednesday, April 10, 2013

खुशबू

"काव्यालय" ग्रुप के मित्र ने इसे पढ़कर  कमेन्ट में लिखा - "समर्पण-अर्चना "... शीर्षक पसंद आया --आभार उनका 


 "समर्पण-अर्चना ".

मैं बनूँ खुशबू पारिजात की
महकी-महकी खुली पात की
साँसों में तेरी समाई रहूँ
ख्वाबों में तेरे छाई रहूँ

आज मैं बनूँ खूशबू चमेली की
महकूं अध-खुली कली से ही
थकान को तुम्हारी सारी मिटाउं
जीवन में एक नई ताजगी लाउं...

गुलाबों से होंठ मेरे जो छू लो
रंगत तुम्हारी निखर जाएगी
कभी जब खोलोगे डायरी के पन्ने
मेरी ही खुशबू तुम्हें आएगी...

केवड़े-सी कभी न महकना चाहूं
कि उसमें सदा ही नाग बसते हैं
चाहूं मैं सिर्फ़ कोयल-सी चहकना
कि सुरों में सदा ही ख्वाब सजते हैं...:

खुशबू में मेरी जो तुम खो गये तो
महकेगा आँगन तुम्हारा पिया..
और खूशबू जो मेरी ही तुम हो गए तो
चहकेगा आँगन तुम्हारा पिया... :-)

मिट्टी की सोंधी-सी खूशबू बनूँ मैं
पहली फ़ुहार में ही दिल जीत लूं मैं
तकती निगाहों को और न तरसाउं
हरियाली से सजकर कई रंग बरसाउं...
-अर्चना

Sunday, April 7, 2013

गुंजन शर्मा...एक कलाकार


मैं तो चाहती हूँ,हर वो बच्चा जो मेहनत करता है 
-बुलन्दी को छुए
-अपनी जिम्मेदारियाँ अच्छी तरह से निभाए

-हमेशा अपने काम में सफ़लता पाए
-खुद भी खुश रहे और सबको खुश रखे
-कभी गुस्सा न करे...अपना वक्त  जाया न करे
-अपना नाम  रोशन करे ताकि सबको उस पर फख्र हो...
-हर कोई कह सके कि हाँ मैं उसे जानता/जानती हूँ...


इसी स्नेहाशीष के साथ एक मुलाकात गुंजन शर्मा से....
जिसने बनाया है मेरा ये चित्र---

नाम?
-गुंजन शर्मा
शिक्षा?
-स्नातक
कहाँ रहते हो?
-जयपुर
एनिमेशन क्यों?
-अपने तरीके से,अपनी रचनात्मकता के साथ,नई दुनिया बनाना चाहता हूँ।
 आपने सीखा  कहाँ से?
-मेरे मार्गदर्शक से श्री अशोक प्रधान जी से...
 किससे प्रभावित हो?
-स्टीव जॉब,ए.पी.जे.अब्दुलकलाम,लांस आर्मस्ट्रांग,और भी बहुत हैं...
अब तक कोई ऐसा काम जिसे करके खुशी मिली हो?
-मैं ईश्वर में गहरी आस्था रखता हूँ,और मुझे सुबह की पूजा करने में सबसे ज्यादा खुशी मिलती है,उसके बाद मेरे काम से,मैं अपने काम से बहुत प्यार करता हूँ।
मुझे कैसे जानते हैं आप?
-आपके ब्लॉग के कारण
ब्लॉग भी पढ़ना पसंद करते हैं?
-थोड़ा-सा..
और कौनसा ब्लॉग आपको पसंद आता है?यानि किस विषय का?
-स्केचिंग और एनिमेशन के विषय वाले ब्लॉग...

आभार आपका मेरे स्कैच के लिए....
आपको आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ ...

गुंजन ने मुझे खोजा कैसे ये तो वो ही बता सकता है ,आप उससे यहाँ मिल सकते हैं