2 दिसंबर 1996
इन सत्ताईस सालों में एक पल भी ये दिन और समय भूल नहीं पाई ....
हादसों के घाव भरते नहीं कभी ....
कितने ही मित्र बने ,अपने मिले, सबका एक ही सवाल आपके हसबेंड?
बहुत भारी मन से अनगिनत बार बताना पड़ता है ....नहीं रहे।
फिर सवालों का सिलसिला चल पड़ता है और जवाब में वही क्या क्यों कैसे और अब फिर बात आती है अंत में आपने जॉब नहीं लिया और इसके जवाब में जब नहीं बताया तो चल पड़ती है अनवरत कहानी .....जिसमें अंतिम विदा की ये रात सबसे कठिन गुजरती है। .....
अनवरत कहानी का कभी न भूलने वाला हिस्सा...