Monday, March 24, 2025

बढ़ा हुआ हाथ


कल शाम अपनी नातिन दित्सा को लेकर पास वाली कॉलोनी के बगीचे में गई थी. ये थोड़ा बड़ा बगीचा है. वहीं चार झूले और फिसलपट्टी लगी है l घूमने के लिए चारों तरफ जगह बनाई गई है, बच्चे खेलते रहते है बीच में और उनके गार्जियन घूमते हुए उन पर नजर रख सकते है l
वहीं रेती, गिट्टी भी पड़ी है, तो बच्चे उससे ही खेलना ज्यादा पसंद कर रहे थे, दित्सा भी साथ खेलने लगी, मैं पास लगी बेंच पर बैठ गई, तभी मेरे पास  करीब दो साल का एक बच्चा अपने हाथों में पानी की खाली बोतल पकड़े हुए आया और मेरे हाथ की पानी की बोतल की तरफ इशारा करते हुए तोतली बोली में पानी मांगने लगा. मैंने अपनी बोतल से पानी उसकी बोतल में भरकर दिया, उसने तुरंत पूरा पानी पिया और बोतल नीचे पटक दी फिर खेलने लगा l
तभी वहां से एक महिला गुज़री उसने बोतल उठाई और बेंच पर रख दी, मुझे लगा बच्चा उनके साथ है, तो मैंने बताया कि अभी उसने मांगकर पानी पिया है बोतल खाली थी, महिला ने हंसते हुए पूछा छोटे ने?
मेरे प्रश्नात्मक भाव से हाँ कहने पर बोली- उसकी बोतल नहीं है मेरे बेटे की है, नई देखकर उससे पानी पीना था उसको l
आज विनोद कुमार शुक्ल जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने पर सोशल मीडिया पर उनकी कई कविताओं का पाठ सुनने मिला उनमें से एक कविता जो रवीश कुमार ने पढ़ी  वो थी-

हताशा 

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था

हताशा को जानता था
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया

मैंने हाथ बढ़ाया
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ

मुझे वह नहीं जानता था
मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था

हम दोनों साथ चले
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे

साथ चलने को जानते थे।

-विनोद कुमार शुक्ल 

और ये घटना याद आई...

Monday, March 3, 2025

नाटक- नई भोर

कभी कभी जो हो जाता है वो अनूठा हो जाता है, ये नाटक भी ऐसा ही एक काम हुआ जो मेरी किस्सा ठेल की टीम ने कर दिखाया l
पूरी टीम  बधाई की हकदार है l

https://youtu.be/mLbFx6wohsI?si=U1_oiU8VNgu_CUW4