Saturday, May 26, 2012

नगरी-नगरी ...द्वारे -द्वारे ...

जब भावनाओं के सागर में डूबूं उतरूँ
शब्दों के जंगल में गोते लगाऊँ
अपनी कहानी खुद को सुनाऊँ

क्यों नैन सोचे नीर बहाऊँ
दिल बोले अब कहाँ जाउँ
मन कहे कहाँ ढूंढू,किसे बताऊँ?

क्या सब छोड़ उड़ जाऊँ?
किसे खोऊँ?,किसे पाऊँ?

-अर्चना 

14 comments:

Smart Indian said...

सुन्दर अभिव्यक्ति!

Anjani Kumar said...

शायद इसी को आत्ममंथन कहते हैं
सुन्दर

India Darpan said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


हैल्थ इज वैल्थ
पर पधारेँ।

Shanti Garg said...

बहुत ही बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग

विचार बोध
पर आपका हार्दिक स्वागत है।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

:) sabko rakho apne saath...
kyunki sab chahte tumhara saath:)

M VERMA said...

वाह ! सुन्दर

सम्वेदना के स्वर said...

गीत गाने वाले कंठ से जब इतनी गहरी अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से प्रस्फुटित होती है तब लगता है कि कहाँ छिपाए रखा था ये सब!!
बहुत सुन्दर!!

प्रवीण पाण्डेय said...

सबको सब कुछ पाना है,
जीवन यहीं निभाना है।

Ramakant Singh said...

beautiful expression of emotions.
lost and found.......

शिवम् मिश्रा said...

बहुत सुंदर ...

इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - माँ की सलाह याद रखना या फिर यह ब्लॉग बुलेटिन पढ़ लेना

Onkar said...

sundar panktiyan

Asha Joglekar said...

सुंदर भाव । सुंदर रचना ।

Anamikaghatak said...

shabd sanyojan ati sundar...badhiya

SKT said...

सवालों के जंगल का नाम ही जीवन है...बढ़िया अभिव्यक्ति!