Sunday, March 26, 2017

दिल होता है कितना सुन्दर

वो सुंदरता का मुरीद था,
होता भी क्यूँ न!
मेरा दिल था- उसकी आँखों में ...

दिल होता है,कितना सुन्दर
ये जाना था उसने मुझसे -बातों में ...

कभी जो की भी- बताने की कोशिश
खो गया वो तभी -महकी साँसों में ...

काश!सपने सच हो जाया करते  सदा
जो देखे जाते रहे हैं -शीतल चाँदनी रातों मे...

और मुझे कभी 'था' न कहना पड़ता
उसके लिए इस तरह...
जो तकदीर लिखना होता -अपने हाथों में ...
-अर्चना

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-03-2017) को

"राम-रहमान के लिए तो छोड़ दो मंदिर-मस्जिद" (चर्चा अंक-2611)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Anita said...

सुंदर भावपूर्ण रचना..

Jimmy said...

Thankss for writing this