Friday, January 23, 2009

खुशी के दो पल

उम्र के इस मोड़ पर मै जीना चाहती हूँ ,
कुछ पल अपनी जिंदगी के संवारना हूँ ,
वक्त को यादो में संजोना चाहती हूँ ,
और यादो के मोती एक माला में पीरोना चाहती हूँ ,
अब तक का सफर मैंने ऐसे किया ,
मै किसी में , और कोई मुझमे जीया ,
शेष बचे अपनो को नही खोना चाहती हू,
थोडी देर बस अपने बारे में सोचना चाहती हू ,
क्योकी मरने वाले के साथ तो मरा नही जाता है ,
कोई अपने को कर्ज तो कोई फर्ज से दबा हुआ पाता है ,
कर्ज तो फ़िर भी कभी छोड़ा जा सकता है ,
मगर फर्ज से भी कोई कभी हाथ खींच पाता है?
चलो छोड़ दे दुःख की सारी बाते,
सुख को पकड़कर आपस में बांटे,
आँखों में चमक और सबके होठों पर मुस्कान ले आयें
किसे पता ? आज आँखे खुली है शायद कल बंद हो
जाए।


1 comment:

Girish Kumar Billore said...

एक सुस्पष्ट रेखाचित्र