Sunday, March 27, 2011

चंद लाईनें.....और एक गज़ल

चंद लाईनें....

रचते-रचते ही रचता है संसार
बसते-बसते ही बसता है घर-बार

नहीं होता हर एक की किस्मत में प्यार
कुछ का नसीब ही होता है इन्तजार

ये इन्तजार की घड़ियाँ 
न जाने कब खतम होगी
वो दिन कब आयेगा 
जब आँख न नम होगी

नम आँखों से जो अविरल बहता है नीर....
छलनी होता है दिल और चुभते हैं तीर

तीरों  की चुभन 
अब बर्दाश्त नहीं होती
जाने क्यों अब जिन्दगी से
मुलाकात नहीं होती

ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्

जीने में पल अब बचे है सिर्फ़ चार
बहुत खोया
अब और कुछ खोना नहीं चाहती हूँ---

कुछ यादों को ओढ़ 
कुछ देर सोना चाहती हूँ
कुछ देर को ही सही
कुछ और होना चाहती हूँ...

-बस्स्स!!!!!!!

एक गज़ल----

 तुमको देखा तो....

19 comments:

Avinash Chandra said...

ख़ूबसूरत...
बहुत ख़ूबसूरत
और ग़ज़ल पर कुछ कहूँ ... :)

Udan Tashtari said...

वाह!! बहुत भावपूर्ण रचना....


गज़ल बहुत सुन्दर है...

वाणी गीत said...

बढ़िया !

daanish said...

प्यार और इंतज़ार की शिद्दत को
बहुत अच्छी शब्दों में बाँधने का प्रयास किया है
सफल प्रयास !
अच्छी नज़्म है ... !!

प्रवीण पाण्डेय said...

अपनी कविता को भी गायें, हम सबके साथ न्याय होगा।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छा प्रयास है!
अब नियमित लिखिए!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.blogspot.com/

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अर्चना,
अगर ये तुम्हारे मन की अभिव्यक्ति है, तो इसे क्यों मुखर होने से बचाए रखा है.. हमें ऐसी और भी रचनाओं की उम्मीद है...
रही बात गज़ल की तो ये तो बड़ी ख़ूबसूरत है...

संजय भास्‍कर said...

गज़ल ख़ूबसूरत है...

रश्मि प्रभा... said...

ये इन्तजार की घड़ियाँ न जाने कब खतम होगी
वो दिन कब आयेगा जब आँख न नम होगी
waah

शोभना चौरे said...

वो सुबह कभी तो आयेगी ....
सुन्दर गजल |

संजय @ मो सम कौन... said...

चंद लाईनें बहुत अच्छी लिखी हैं और ये गज़ल तो शानदार है ही ’वक्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया’

बाल भवन जबलपुर said...

बहुत उत्तम

हरीश सिंह said...

achchhi lagi kavita..
हमें तो आज शर्म महसूस हुयी ..भारत की जीत की ख़ुशी उड़ गयी ... आपकी नहीं उडी तो आईये उड़ा देते है.
डंके की चोट पर

केवल राम said...

नहीं होता हर एक की किस्मत में प्यार
कुछ का नसीब ही होता है इन्तजार

कितनी सच्चाई है इन पंक्तियों में ..बहुत गहराई से सोचना है आपका आभार

राजीव तनेजा said...

सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना

DIL SE said...

तुमने तो मेरी आँखे नम कर दी.बहूत सुन्दर अभिव्यक्ती

Rajeysha said...

जि‍न्‍दगी से मुलाकात करना सीखो

कांटो से बात करना सीखो
कि‍सी से कहने सुनने से क्‍या होगा

ये सब अपने साथ करना सीखो

Akash Mishra said...

अच्छी गजल |
कुछ मेरा भी-
जमीं में इक पलंग खोदकर रखा है ,
अभी उनके भी सितम जारी हैं ,
अभी तक मैं भी नहीं टूटा ,
उस रोज जब हौंसले कमजोर हो चलेंगे ,
मुस्कुराता हुआ उस पलंग तक जाऊँगा ,
और सफ़ेद चादर ओढकर
एक गहरी नींद सो जाऊंगा |

सादर