Sunday, October 9, 2011

आखिर क्यों?..

आखिर क्यों

क्यों....
आखिर क्यों ?........

सवाल इतने सारे 
कौन सा पूछूँ पहले  
इसी सोच में हूँ ....

क्यों होता है ऐसा?
क्यों नहीं होता वैसा?
क्यों करते हैं ऐसा?
क्यों नहीं करते वैसा?
ऐसा करने से क्या होगा?
वैसा कर लिया तो क्या हो जाएगा?
नहीं आ पाता है समझ कुछ?
क्या मिलेगा उसे ऐसा करने से?
मैं क्या करूँ?
क्यों करूँ?
....
ये वो सवाल हैं,
जो दिन भर मथते हैं मुझे,
और
अनायास ही ऊँगली चली जाती है

होंठों पर..

कह उठती हूँ मैं...
चुप!!!!!

आखिर क्यों?

--अर्चना

12 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

जावेद अख्तर साहब ने एक बार लिखा था "तुम होती तो ऐसा होता/तुम होतीं तो वैसा होता" और आज तुमने भी इतने सारे सवाल बिखेर दिए.. ये आदमी का दिमाग होता ही ऐसा है!! मगर चुप कह देने या होठों पर उंगली रखने से सवाल रुकते कहाँ हैं.. वे तो दिमाग में हथौड़ों की तरह प्रहार करते हैं!! क्योंकि चुप्पी पर भी तो सवाल उठाते हैं:
बस ये चुप सी लगी है,
नहीं उदास नहीं!

M VERMA said...

सवाल दर सवाल पर जवाब कहाँ ?

रश्मि प्रभा... said...

.ये वो सवाल हैं,जो दिन भर मथते हैं मुझे,औरअनायास ही ऊँगली चली जाती है
होंठों पर..
कह उठती हूँ मैं...चुप!!... yahi hota hai

प्रवीण पाण्डेय said...

उत्तर यदि प्रश्न बढ़ा जायें तो कठिन हो जाता है।

Girish Kumar Billore said...

ये है ज़िंदगी

मनोज कुमार said...

कभी-कभी हर सवाल से कतरा कर अलग हो जाना ही मैं उचित समझता हूं।

केवल राम said...

पहले सवाल और फिर जबाब की चाह.....लेकिन जरुरी नहीं कि हर सवाल का जब मिल जाये ...फिर भी आगे बढ़ना जरुरी है .......!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

ऊँगली चली जाती है
होंठों पर..
कह उठती हूँ मैं...चुप!!

काश! ऐसा करने से सवालात ठहर जाते....
अच्छी अभिव्यक्ति...
सादर...

सदा said...

कह उठती हूँ मैं...चुप!!
बिल्‍कुल ऐसा ही होता है ... ।

vandana gupta said...

्हर सवाल का जवाब नही होता ना शायद इसलिये

अरुण चन्द्र रॉय said...

यही द्वन्द यही प्रश्न तो जीवन है..

अनुपमा पाठक said...

प्रश्नों की श्रृंखला से जूझते हम...