ये जो बादलों के टुकड़े हैं,उन्हें पकड़ना है
न जाने कितनी दूर से समेटना है
कुछ इतने भारी कि जगह से न डिगते
कुछ इतने हलके कि जगह पर न टिकते
रह रह कर जब वो उनको निरखती
कुछ इतने भारी कि जगह से न डिगते
कुछ इतने हलके कि जगह पर न टिकते
रह रह कर जब वो उनको निरखती
सोचती,रूकती, फ़िर दौड पड़ती
तभी उसकी अपनी कुछ बूँदें बरसती
जब कभी वो हँसती,किसी को भिगोती
नहीं कोई किस्सा न कोई कहानी
हकीकत है ये,मेरी खुद की जुबानी
काश इन बादलों को जल्द ही मना लूं
जल्द ही अपने आगोश में छुपा लूं
साथ लूं सबको और रुक जाउं
साथ ही बरसूं और सुकूं पाउं....
तभी उसकी अपनी कुछ बूँदें बरसती
जब कभी वो हँसती,किसी को भिगोती
नहीं कोई किस्सा न कोई कहानी
हकीकत है ये,मेरी खुद की जुबानी
काश इन बादलों को जल्द ही मना लूं
जल्द ही अपने आगोश में छुपा लूं
साथ लूं सबको और रुक जाउं
साथ ही बरसूं और सुकूं पाउं....