Monday, February 25, 2013

पुरानी पेटी...

वो पुरानी "पेटी"
करके जिस पर बचा वार्निश
नया बना दिया था माँ ने
जिसमें माँ रखती थी अपनी साड़ी
खुशी-खुशी सजा ली थी मैंने
कि अब मेरा अपना भी कुछ होगा
इस घर में
जमाती थी कपड़े नये-पुराने
रखती थी तह करके रूमाल
कुछ लिफ़ाफ़े और एक पेन
छोड़ा जब माँ का घर
रह गई- उसी जगह मेरे कमरे में
मेरी सखी -मेरी "पेटी"
बिना कुछ बोले
अब भी उसकी जेब में
मेरे कुछ लिफ़ाफ़े हैं
मगर पेन की स्याही सूख चुकी...
आज फिर खोले बैठी हूँ  पुराना संदूक
और पुरानी यादें बिखर गई है बाहर
फिर जमाने की कोशिश में
खूशबू से महक उठा है मन भी
मुझसे बन्द भी नहीं हो रहा अब
हेल्प मी .....
-अर्चना

7 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

पुरानी स्मृतियों को देखकर यादों को समेटना मुश्किल हो जाता है,,,,

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yashoda Agrawal said...

महकनें दो यादों को
बहुत अच्छाई है इसमें
कम से कम आज के
दुख तो भूल जाते हैं
कुछ पल के लिये

प्रवीण पाण्डेय said...

पुरानी पेटी की यादें अब भी ताजा हैं।

Rajendra kumar said...

स्मृतियों को संजोये सुन्दर प्रस्तुति.

mukti said...

हर बच्चे की, खासकर छोटी बच्चियों की बड़ी ख्वाहिश होती है कि घर में एक कोना उनका अपना हो, जहाँ वे अपनी ज़रूरत की चीज़ें संभालकर सकें. इस ख्वाहिश को बड़े मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है.

Madan Mohan Saxena said...

बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको

Shashi said...

You are lucky to find a trunk with old memories . After 36 years when I go to my parents house ,I cannot find even my picture in any corner of their house except one which my father keeps in his almira which he is given in one corner of his room . A big house which he made is the residence of my brother and bhabi and their son , he tries adjust with them . I donot interfere but my heart sinks watching their living space just one room ,one TV and one bed that is all my father enjoys living a simple retired life .