24 जुलाई दोपहर अचानक मेसेज मिला Nitesh Upadhyay जी का - आज प्ले है, 7:30 पर आप आएं ....
बारिश की छुट्टी पर इस तरह गिफ्ट मिलेगा अंदाजा नहीं था ....:P
किस्मत अच्छी थी और सितारे भी ....हल्की बौछारों ने मौसम को भी खुशगवार बना दिया था ,बस! चली गई.....गेट पर इतनी भीड़ और सबके हाथों में पास देख थोड़ी घबराहट हुई ,नज़रें किसी परिचित को खोजने लगी ,सबने पास कहाँ से लिए ये भी पता नहीं लग रहा था ,कोई न दिखने पर टैब निकाल नितेश जी को मेसेज लिखा - पास?
रिप्लाय पढ़ा भी नहीं कि हॉल के गेट से एक लम्बा चौड़ा युवक बाहर आया ,नज़रे मिलते ही उतनी ही लम्बी मुस्कान दी.....
झुक कर विनम्रता का परिचय दिया और कहा -बस 3 मिनट! देर से मेसेज देने के लिए सॉरी कहना भी नहीं भूला .....
मैं तो गदगद -कि पहचान लिया ....:-D
और बिलकुल 3 मिनट में एंट्री ---
नाटक का विषय बाढ़ से प्रभावित गाँव की कहानी और मुसीबत के समय तुच्छ जाती माने जाने वाले लोगों द्वारा की गई मदद की कहानी ,शीर्षक था -बाढ़ का पानी लेखक -शंकर शेष
I'm so lucky....सच में बहुत बढ़िया मंचन -सधाहुआ ...सारे पात्र बधाई के हकदार है ,सभी का पहला नाटक था,लगा नहीं ...सबसे ज्यादा आकर्षित किया विक्षिप्त के किरदार ने ,जो विक्षिप्त होकर भी समय -समय पर अपने भाव व्यक्त करता रहा ......पात्र -परिचय याद नहीं वर्ना कलाकार का नाम जरूर लिखती , Kalim Chanchal की कव्वाली ने वास्तविकता दर्शाई आदमी की....Nitesh का निर्देशन लाज़वाब .....विषय भी सटीक,और सामयिक ...इस नाटक का अगला मंचन भी देखना चाहूंगी ...सामाजिक कुरीती के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का सन्देश सफलता पूर्वक लोगों तक पहुंचाया है निर्देशक ने ...
खचाखच भरे हाल में दर्शक होना भी आनंद दायक लगा ....और जब नाटक समाप्ति पर कलीम के सामने गई ,- आप अर्चना चावजी .....(.पहली मुलाकात फेसबुक फ्रेंड से)
आनंदम आनंदम ......
"24 जुलाई अपना यादों का कोना ले जा चुकी थी शायद ...."
सबको फिर से बधाई और शुभकामनाएँ ...
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