कल लौट रही थी बड़ोदा से ,रात भर का सफर था ,करीब 3 बजे ,मध्यरात्रि में 10 मिनिट का ब्रेक दिया गया यात्रियों को ...
जब मैं वापस बस में चढ़ी तो केबिन में बैठी मुस्लिम महिला अपने दाहिने पैर की सलवार घुटने और जाँघ की जगह से पकड़ कर अधनंगे पैर को छुपाने की कोशिश कर रही थी ,
हालाँकि मेरी नज़र नहीं पड़ी थी,तभी वो बोली -कुत्ते ने पकड़ लिया , सारी सलवार फाड़ दी,
मैंने घबराते हुए पूछा - अभी?क्योंकि वे भी नीचे उतरी थी ।
वे बोली- नहीं सूरत में ही बस में चढ़ने से पहले कुत्ता लपक लिया ,वो तो अच्छा हुआ काट नहीं पाया ,सिर्फ सलवार फटी, पर ऐसी फटी कि शर्म आ रही है ,नीचे भी नहीं उतरती पर टॉयलेट जाना भी मजबूरी थी तकलीफ हो रही थी,गठान बांधकर किसी तरह हो आई
मैंने उन्हें कहा -मेरे पास सेफ्टी पिन है आप उसे लगा लीजिये और बड़ी-बड़ी 2 पिनें दी
पिन लगाते हुए वे बोली - "माफ़ कर दीजियेगा अब आप और मैं कभी शायद ही मिलें,मैं आपको वापस न कर पाऊँगी।"
और उनकी यह कृतज्ञता मेरे लिए अनुकरणीय हो गई ।
न मैंने उनका नाम जाना न उन्होंने मेरा ,लेकिन स्त्री का दर्द ही स्त्री जान जाए और बाँट ले ,ये क्या कम है ?
हाँ ,ये तो अंत में पता चला कि वे सूरत से कपड़ों की खरीदारी कर लौटी थी बेचने के लिए ,जब कपड़ों के गट्ठर बस से उतरवाते देखा यानि अकेले सफर करती रही हैं और हर कठिनाई का सामना करने को तैयार ।
3 comments:
सुन्दर प्रसंग . अर्चना जैसा ही ..
yah samvedansheelata hi stri ka naisargik gun hai ..
हमेशा की तरह एक और बेहतरीन लेख ..... ऐसे ही लिखते रहिये और मार्गदर्शन करते रहिये ..... शेयर करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। :) :)
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