1-
"रूको,तुम्हारे जूते में अब भी मेरा पैर नहीं आता ..... हाथ में ले लेने दो .....
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चलना तो है ही पीछे-पीछे ...शुरू से ही पीछे जो रह गई हूं..... :-("
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. ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी ...:-(
2-
चलो खींच दो न अब वो ऊपर से अटकी चुनरी....... उचक-उचक थक चुकी ....
दूसरे रंग मैच भी तो नहीं करते इस चणिया चोली से .....
फ़िर कहोगे - ऐसे ही बैठी हो तब से ...?... :-P
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. ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी ...:-(
3-
जानबूझ कर इतना ऊपर चढे बैठे हो ....
पहले तो कह्ते थे - समन्दर की गहराई में देखो ... कितने रंग छुपे हैं , और अब न जाने क्यों ,बादलों के पीछे छुपा इन्द्र धनुष ही भाने लगा है तुम्हें ......
जानते हो! कि मुझे मुड़कर देखने की आदत है ... सो लगे चिढाने .... ... आखिर धूप चश्में पर तरस भी तो नहीं खाती .......
ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी ...
4-
आज संडे तो नहीं है पर छुट्टी जरूर है .... और पहली चाय की बारी तुम्हारी है .....
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. ये कभी भूलते क्यों नहीं तुम ..... और मुझे खाना बनाने में देर हो जाती है ....
उफ़्फ़! ...
ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी ...
5-
...ये खिड़की बन्द नहीं हो रही ... रात भर आवाज करेगी ....
-तुमने कारपेंटर को बुलाया नहीं ?
-नहीं, लगा था कर लूंगी बन्द ...पर नहीं पता था , जो काम मैंने किये नहीं वो मुझसे वाकई नहीं होंगे .....
... अब रात भर चांद दिखते रहेगा झिर्री से ....
ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी ...
6-
बाथरूम के नल से टपकते पानी की बूंद रह-रह कर डरा देती है रात को .... कपड़ा ढूंसना चाहा तो वो पेंचकस नहीं मिला , हरे हत्थे वाला ...
पता नहीं कहां रख दिया मैंने ...उसका डिब्बा तो कब से इधर -उधर हो गया ...
एक अकेला वो बचा था ... वो भी ....:-(
और ये काम भी तो तुम्हारा ही था न ....
गिनूंगी बूंदे ...
ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी ...
7-
याद है ! एक बार तुम्हारे दोस्त ने कहा था-
-
भाभी जी आपने बदल दिया हमारे दोस्त को , एक बार आप बोल देंगी तभी शुरू करेगा फ़िर ..
- अबे यार चुप !... कहकर चुप करा दिया था तुमने उसे
- क्या बन्द किया मैंने ? मैं तो कुछ भी नहीं कहती ...
-हाँ , तभी तो.... आपको पता है ये नॉन्वेज खाता भी था और बनाता भी था ....
-नहीं तो.....
-क्यों बताया नहीं तूने? ... फ़िर वो तो चला गया ...
और मैं बहुत गुस्सा हुई थी , .... बात नहीं की थी तुमसे, चुपचाप खाना बनाया और मुझे भूख नहीं कहकर सोने चल दी थी.....
तब तुमने बताया था कि अपनी सगाई तय होने के समय तुम्हें पता चला था कि मेरा परिवार शुद्ध शाकाहारी है , और उस दिन से तुमने खाना छोड़ दिया था ...वरना शादी नहीं हो पाती अपनी ...
.....
.... तब मैं सोचती थी क्या फ़र्क पड़ जाता शादी नहीं होती तो ......
...
..
.. अब समझी ....... हां बहुत फ़र्क पड़ता ..... :-(
ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी ...
8-
-- इनसे मिलो ये हैं बनर्जी ,साथ ही रहते थे हम पहले एक रूम में
-नमस्ते
-नमस्ते भाभी जी , सुना है आपने लॉ किया है?
- जी
-तो प्रेक्टिस नहीं करेंगी आप ?
- जी, अभी तो एक्ज़ाम ही दी है , और यहाँ आ गई... आगे सोचेंगे जैसा भी होगा
- आप तो फ़िलहाल यहीं कंपनी की स्कूल में अप्लाई कर दीजिये, हिन्दी भी अच्छी है आपकी..
- जी नहीं, मुझे टीचर नहीं बनना..
-क्यों?
- किसी के अन्डर में काम करना पसन्द नहीं,मतलब वही पुराना सा तय सिलेबस सिखाओ ,
जो खुद से सिखाना चाहूं वो सिखा पाउं तो हो सकता है... कभी बन भी जाउं .... :-)
ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी ...
9-
एक बात फ़िर याद हो आई आज,
जब तुमने कहा था-
-सुनों याद है न कल बिटिया के एडमिशन के लिए जाना है
-हाँ याद है, पर मम्मी-पापा को क्या पूछेंगे , मैं तो हिन्दी में ही जबाब दूंगी अंग्रेजी में देना हो तो आप बोलना
-लेकिन अगर इसी बात पर एडमिशन नहीं हुआ तो ?
- ऐसा हो सकता है?
-हाँ हो सकता है,
- तब देखी जाएगी ,मैं बात कर लूंगी पर आप न बोलना फ़िर
- ओके
.....
.....
और इसके बाद आठ दिन का समय मांग लिया था मैंने प्रिसिपल मैडम से ... और पूरे हफ़्ते मेरे अंग्रेजी में बोले बिना आपने मेरी बात का जबाब नहीं दिया था ...खूब हँसे थे उस पूरे हफ़्ते हम
और आठ दिन बाद बिटिया का एडमिशन हो गया था .....
...
...
लेकिन उसके बाद कभी अंग्रेजी बोली नही गई मुझसे .....
ऐसे ही किसी टुकड़ा कहानी से - जो न जाने कब पूरी होगी ...
7 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-09-2017) को
"कहीं कुछ रह तो नहीं गया" (चर्चा अंक 2726)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
I told my husband, please go for walk with me, he said "I am not ready with house clothes. I just took my shawl and went myself. Do clothes or dress really matter ? Really good post!
अद्भुत पोस्ट ! अधूरी टुकड़ा टुकड़ा कहानियों ने कितनी खूबसूरत कहानियों के अनगिनती आयाम खोल दिए ! बहुत सुन्दर !
दीदी, आपके ब्लॉग से बहुत कुछ पढ़ा है मैंने। बस, कमेंट करने की हिम्मत नहीं कर पाती हूँ। अच्छा हुआ दी, जो आप टीचर नहीं बनीं !
बहुत सुन्दर हृदय से निकले शब्द
वाह!!!!
ये ऐसे ही टुकड़ा जीवन की मीठी यादों से.....
लाजवाब....
बहुत बढ़िया.
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