Monday, November 4, 2019

वो छोटा लड़का

मुझे उसका नाम याद नहीं आ रहा पर उसकी याद बहुत आ रही है ........जब शादी होकर गई तो वो दौड़कर घर की चाबी लेकर आया था कोई 14-15 साल का लड़का था ..

.लालमाटिया कोयला केम्प में चार बजे पत्थर कोयले की सिगड़ी जलने रखता और आधे घंटे बाद लाईन से एक-एक के घर में पहुंचाता ......

एक ही सिगड़ी पर 5-6घर का शाम का खाना बारी बारी सब बना लेते .....सभी वर्ग के घर थे .....साहब-मजदूर..... अमीर-गरीब,          शाकाहारी -मांसाहारी .......

हाँ लेकिन पहले शाकाहारियों के घर सिगड़ी जाती,फिर मांसाहारियों के घर......

और इसके बदले वो किसी एक घर में खाना खाता............

मुझे पत्थर कोयला जलाना नहीं आता सुनकर बहुत हँसा था......

अनवरत कहानी का एक टुकड़ा ....

9 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 05 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

lyrics kitaab said...

चाहूँ मैं या ना गीत

Onkar said...

बहुत बढ़िया

Prashant Baghel said...

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Mausiqi Lyrics said...

आपको लिखते रहना चाहिए, मुझपे भरोसा कीजिए
हिंदी लिरिक्स

Mr. Translator said...

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Chiragsharma said...

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rao said...

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Tara kumari said...

बहुत khoob