Thursday, May 19, 2022

अनवरत चलने वाली कहानी के चरम से एक टुकड़ा






ईश्वर ने आपको गुण दिए, वो समय-समय पर उनकी परीक्षा लेता है।ये समय परीक्षा देने का है-धैर्य,संयम,दया,क्षमा,बुद्धि,बल,संतोष,और सहनशक्ति जैसे गुणों के पेपर हो रहे हों जैसे, 😂 में उड़ाना ,मतलब 2 नंबर कटे, समझिए ...

मनन,चिंतन के आनंद से उपजा ज्ञान (कोई बोधि वृक्ष मिला होता तो ...)
कम लिखे को ज्यादा समझियेगा 😂😂😂

-अनवरत चलने वाली कहानी के चरम से एक टुकड़ा
-अर्चना
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"अनमना मन"

अनमनी सी बैठी हूं,
चाहती हूं खूब खिलखिलाकर हंसना
कोशिश भी करती हूं हंसने की
पर आंखें बंद होने पर  वो चेहरे दिखते हैं
जिन्हें मेरे साथ खिलखिलाना चाहिए था
अपनी राह में साथ छोड़ बहुत आगे निकल गए वे
और मैं चाहकर भी हंस नहीं पा रही

चाहती हूं इस बारिश के बाद 
इंद्रधनुष को देखूं
पर आसमान में काले बादल ही छंट नहीं रहे
सातों रंग अलग न होकर सफेद ही सफेद शेष है
हर तरफ गड़गड़ाहट के बीच चीत्कार गूंजती है
बाहर से न भीग कर भी अंदर तक भीगा है मन
और मैं ताक रही अनमनी सी...

8 comments:

कविता रावत said...

बाहर से न भीग कर भी अंदर तक भीगा है मन
और मैं ताक रही अनमनी सी...

Meena sharma said...

आंखें बंद होने पर वो चेहरे दिखते हैं
जिन्हें मेरे साथ खिलखिलाना चाहिए था
अपनी राह में साथ छोड़ बहुत आगे निकल गए वे...
कुछ आगे निकल जाते हैं, कुछ राह बदल लेते हैं!!!
और अकेले खिलखिलाने में हमें डर लगता है कहीं ना कहीं.... या यूँ कहें कि मजा नहीं आता। कुछ अहसास कइयों के साझे होते हैं ना अर्चना दी ?

नूपुरं noopuram said...

भीगना भी ज़रूरी है ..
आशा का अंकुर फूट सके,
इसलिए ।

इस अनमनेपन की अनुभूति की संवेदना साझी है ।
आपने फिर से अनुभव करा दी है ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जिन्हें मेरे साथ खिलखिलाना चाहिए था
अपनी राह में साथ छोड़ बहुत आगे निकल गए वे

आपके अनमने मन ने बहुत कुछ कह दिया । बहुत समय बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ ।।

प्रतिभा सक्सेना said...

ऐसी अनुभूति भारीपन बन कर मन पर छा जाती है,जो सामने है वहभी अवास्तविक लगने लगता है ,बहुत कठिन क्षण होते हैं ये .

Vikash Yadav said...

बहुत ही अच्छी प्रसूति

Instagram bio said...

बहुत ही अच्छी प्रसूति

Thank you

santosh said...

Bahut khub!