Sunday, July 12, 2009

कविता जो यूं ही बन गई ------------------

मुझे पता था , तुम न बचोगी
"शब्दों " के इस चक्रव्यूह में ,
फंस कर ही तुम रह जाओगी
" अक्षरो " के इस जंगल में |

" प्रश्न " तुम्हे कहीं जाने न देगा
जब तक तुम उत्तर न लिखोगी ,
"विस्मय " तो सबको तब होगा
जब तुम अपने " कोष्ठक " खोलोगी |

नन्ही " बिंदी " भी खुशबू दे देगी
जब " चंद " को तुम अपना " न " दोगी ,
"व्यंजन " भी " स्वर " से मिल खुश होंगे
जब " चंद्रबिन्दु " संग तुम हँस दोगी |

"अल्पविराम " ले "भाव " भी आ जाएंगे
"मात्रा " संग जब " वाक्य " रचोगी ,
"पूर्णविराम " भी खड़ा हो झूमेगा
जब "अवतरण " में तुम उसे दिखोगी |

बात तो है कुछ ख़ास ही तुममे
मेरे संग सब भी जान ही लेंगे ,
"कविता जो न बन पाई " तो क्या
लेखनी को तो मान ही लेंगे |

मेहनत का फल मीठा होता
लिखोगी , तभी जानोगी ,
"सरस्वती " दादी थी तुम्हारी
बात तो ये मेरी मानोगी |

पकडो शब्दों को ,लिखती जाओ
बोलो ? लिखने से क्या अब तुम बचोगी ,
कहती हूँ मै बहन तुम्हारी --
" डेश "(- रचना ) संग इतिहास रचोगी |



9 comments:

निर्मला कपिला said...

वाह रचना जी ये व्याकरण तो बहुत पसण्द आया बधाई

ओम आर्य said...

व्याकरणके साथ भावनाये भी जोड दी ,बहुत खुब

mehek said...

bahut hi anuthi aur achhi lagi rachana,badhai

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब। दोनों बहनें खूब कविता बना रही हैं। अब आगे इंतजार है रचनाजी की कविता का। :)

Archana Chaoji said...

@ धन्यवाद निर्मला जी ,मगर मै रचना नही,अर्चना हूं।
ओम जी,महक जी व अनूप जी धन्यवाद हौसला अफ़्जाई के लिए!!!

Anonymous said...

अरे वाह ! ये अंदाज तो खूब भाया !

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर सीख दी और यूँ कहूँ कि डांट लगाई... :)

डा० अमर कुमार said...


सुथरी भवानाओं को व्यक्त करती यह रचना !

गिरीश बिल्लोरे said...

Yahee to mai bhee.......
vah kya bat hai