पिछले दिनों फ़ादर्स डे की चर्चा चल रही थी, पिता के बारे में अनेकों पोस्ट पढने को मिली---मेरे पिता ऐसे है/थे, या वैसे है/थे, सबको बहुत याद आए पिताजी---मुझे भी ।----अपने पिता के बारे में भी दिमाग में चलता रहा---कैसे थे ??? क्या लिख सकती हूं ?--- वगैरा-वगैरा। किसी को याद करना बुरा नही है , मगर ये भी सच है की किसी-किसी को भूल ही कब पाते हैं! ! ! ----- बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे मेरे पिताजी---बहुत कुछ सीखा हमने उनसे---उनके रहते तो समझ ही नही आया कि हम कितना कुछ उनसे सीख रहे है, लेकिन अब हर मोड पर उनकी सीख काम आती है ---एक -एक कर बताने की कोशीश करूंगी---आज एक बात याद आ रही है----
चलो वा ! ! !
ये हमारी बोली का एक शब्द है, इसका मतलब है कि --चलो ठीक है ,यानि जो हो चुका उसे भूल जाओ, और अब क्या करना है वो सोचो ।
वे हर छोटी-बडी घटना को एक ही तराजू में तोलते थे, वे कहते थे दुख से बडा कौनसा शब्द है??? यानि किसी को उंगली में ठोकर लगती है और उससे पूछो कि दुख रहा है ? तो वो कहता है-- हाँ दुख रहा है----और किसी का पैर भी कट जाए और उसको पूछो कि दुख रहा है ? तो उसके पास भी यही जबाब होता है कि हाँ दुख रहा है।
जिस प्रकार मुस्कुराना और हँसना दो क्रियाएं है---रोना सिर्फ़ एक ! ! ! आँख भर आना भी रोना है, सुबकना भी रोना है, और दहाड मार कर रोना भी रोना ही है ।
अत: जब भी हमारे जीवन में कोई घटना घटती है तो हमे सकारत्मक रूप से ही सोचना चाहिए कि चलो वा ! ! ! अब हो गया ना , अब क्या कर सकते हैं वो करो ।
वे कहते थे हादसे होना मनुष्य जीवन की समान्य घटना है, उन्हे कभी भी मैने या शायद हम सब भाई- बहनों ने विचलित होते नही देखा ।
शायद इसी सीख के कारण जब भी कोई अनहोनी घटती है तो मेरे कानों में एक वही शब्द गूंजता है----चलो वा ! ! ! हsमs हुई गयू नी ! ! !(अब हो गया ना )! ! !
(विशेष:--- पिछली पोस्ट में आपने मेरा गाना सुना क्या ? ? ? उसमें सीटी भी मैनें ही बजाई है ---किसी से मत कहना ! ! !)
4 comments:
अच्छी प्रेरणा, अब आगे का सोचो..
बिल्कुल सही फरमाया है आपने अर्चना जी
एकदम दुरुस्त।
उन्हें कभी भी विचलित होते नहीं देखा--- ये एक बुद्धिमान और सुलझे हुए इंसान के गुण हैं जो आपके काकासाहब में थे, हमारे भी उन्हें
श्रद्धा सुमन अर्पित
- विजय
Mata Pita sach mein wo seekh de jate hain jo waqt bewaqt kaam aati rahti hain.
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