Sunday, April 11, 2010

इसे दोहराने की जरूरत लगती है ...इस पर अमल करने की कोशिश करें........एक भजन जो हम गाते है...

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(मैने व रचना ने गाया है )



"भला किसी का कर न सको तो , बुरा किसी का मत करना,
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम , काँटे बनकर मत रहना ।

बन न सको भगवान अगर तुम , कम से कम इंसान बनो,
नही कभी शैतान बनो तुम , नही कभी हैवान बनो,
सदाचार अपना सको तो पापों मे पग धरना ,
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम , काँटे बनकर मत रहना ।
भला किसी का कर न सको तो ............

सत्य वचन न बोल सको तो, झूठ कभी भी मत बोलो,
मौन रहो तो भी अच्छा है , कम से कम विष मत घोलो,
बोल यदि पहले तुम तोलो, फ़िर मुँह को खोला करना ,
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम , काँटे बनकर मत रहना ।
भला किसी का कर न सको तो ............

घर न किसी का बसा सको तो , झोपडियाँ न ढहा देना,
मरहम -पट्टी कर न सको तो , क्षार-नमक न लगा देना,
दीपक बनकर जल सको तो , अँधियारा भी मत करना,
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम , काँटे बनकर मत रहना ।
भला किसी का कर न सको तो ............
"

9 comments:

दिलीप said...

sahi kaha....kabhi pyaase ko paani pilaya nahi..baad amrit pilaane se kya faayda...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com

M VERMA said...

दोहराने से कहीं ज्यादा अमल में लाने की है

Archana Chaoji said...

@ M.VERMA जी ...आप बिल्कुल सही कह रहे हैं,अमल करना जरूरी है । सुधार कर दिया है....

उन्मुक्त said...

अरे रचना जी आज कल कहां हैं। आशा है अच्छी होंगी।

Udan Tashtari said...

आभार इसे प्रस्तुत करने का.

Udan Tashtari said...

इसे तो हमने रचना और निशि की आवाज में सामने सामने सुना था नासिक में. :)

मैथिली गुप्त said...

बहुत अच्छा गाया है,
लेकिन रचना बजाज जी को कहियेगा कि वे लिखें, उनकी कमी महसूस होती है

कुलवंत हैप्पी said...

उसकी जगह इस पंक्ति को गुनगुनाकर देखें...शायद मैं गलत हूँ।

अगर पुष्प नहीं हो सकते तुम, फिर काँटे भी मत बनना

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया बहुत पसंद आया यह इसको सुनवाने के लिए शुक्रिया