कागज बनता है बांस से ,
पानी का मोल है प्यास से ,
चुभन होती है -फांस से ,
उम्मीद बंधती है -आस से ,
जीवन चलता है- साँस से ,
जीवन में रस घुलता है -हास से ,
कुछ रिश्ते होते है -ख़ास से ,
खुशी होती है- अपनों के पास से,
और सम्बन्ध कायम रहते है - विश्वास से ।
न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Sunday, December 21, 2008
Saturday, December 20, 2008
टुकडों में बँटी मैं
बचपन में मैं बँटी हुई थी- शायद दादा- दादी,माँ ,पिता और रिश्तेदारों में।
किशोरावस्था में बँटी हुई थी -दादा- दादी, माँ , पिता और दोस्तों ,खेलो में।
जब यौवन में रखा कदम ,उम्र के इस मोड़ पर भी पाया बँटी हुई -माँ- पिता और सपनों में।
पत्नी बनी और बँटी- २ माँ ,२ पिता और तुममे
माँ बनी तो फ़िर बँटी- तुममे और बच्चों में।
बच्चे बड़े हुए तो मेरे ही टुकड़े हुए।
मुझे पता है अब फ़िर बँटूंगी- दादी- नानी बनकर।
फ़िर एक दिन मेरे सारे टुकड़े इकठ्ठे होंगे।
और " मैं एक हो जाऊँगी अंत में।"
किशोरावस्था में बँटी हुई थी -दादा- दादी, माँ , पिता और दोस्तों ,खेलो में।
जब यौवन में रखा कदम ,उम्र के इस मोड़ पर भी पाया बँटी हुई -माँ- पिता और सपनों में।
पत्नी बनी और बँटी- २ माँ ,२ पिता और तुममे
माँ बनी तो फ़िर बँटी- तुममे और बच्चों में।
बच्चे बड़े हुए तो मेरे ही टुकड़े हुए।
मुझे पता है अब फ़िर बँटूंगी- दादी- नानी बनकर।
फ़िर एक दिन मेरे सारे टुकड़े इकठ्ठे होंगे।
और " मैं एक हो जाऊँगी अंत में।"
-अर्चना
Wednesday, December 17, 2008
सीख
ऐसी कोई लाइने नही है मेरे पास ,
जिनमे हो कुछ अलग या कुछ खास,
पता नही लोग ऐसा क्या लिख देते है,
जिसे पढ़कर सब उन्हें कवि कहते है,
आज तक नया कुछ नही पढने में आया है
जो माता -पिता ने बताया वही सबने दोहराया है,
शायद इसलिए,क्योकि जब वे कहते है,
तब समय रहते हम उन्हें नही सुनते है,
उनके "जाने" के बाद,परिस्तिथियों से लड़कर ,
या डरकर ,हम उन्हें याद करके ,
अपना सिर धुनते है।
मैंने भी उन्हें सुना और उनसे सीखा है ,
और अपने अनुभवों को आधार बना कर फ़िर वही लिखाहै ---
१.सदा सच बोलो।
२.सबका आदर करो।
३.बिना पूछे किसी की चीज को मत छुओ।
४.किसी को दुःख मत दो।
५.समय पर अपना काम करो।
६.रोज किसी एक व्यक्ति की मदद करो।
७.अपने हर अच्छे कार्य के लिए ईश्वर को धन्यवाद् दो और बुरे के लिए माफ़ी मांगो।
जिनमे हो कुछ अलग या कुछ खास,
पता नही लोग ऐसा क्या लिख देते है,
जिसे पढ़कर सब उन्हें कवि कहते है,
आज तक नया कुछ नही पढने में आया है
जो माता -पिता ने बताया वही सबने दोहराया है,
शायद इसलिए,क्योकि जब वे कहते है,
तब समय रहते हम उन्हें नही सुनते है,
उनके "जाने" के बाद,परिस्तिथियों से लड़कर ,
या डरकर ,हम उन्हें याद करके ,
अपना सिर धुनते है।
मैंने भी उन्हें सुना और उनसे सीखा है ,
और अपने अनुभवों को आधार बना कर फ़िर वही लिखाहै ---
१.सदा सच बोलो।
२.सबका आदर करो।
३.बिना पूछे किसी की चीज को मत छुओ।
४.किसी को दुःख मत दो।
५.समय पर अपना काम करो।
६.रोज किसी एक व्यक्ति की मदद करो।
७.अपने हर अच्छे कार्य के लिए ईश्वर को धन्यवाद् दो और बुरे के लिए माफ़ी मांगो।
Thursday, December 11, 2008
आह्वान!!
आओ सुनहरे सपनों को बुनें ,
अच्छाई और सच्चाई को चुनें ,
बुजुर्गों के अनुभवों को भुनें ,
अभावों में अपना सर न धुनें ,
मुश्किलों से लडें उत्साह में दूनें ,
अपने दिल की सुनें ,
फ़िर कोई न कह सके - देर कर दी तूने ,
चलो मेरे साथ आसमान छूने ।
अच्छाई और सच्चाई को चुनें ,
बुजुर्गों के अनुभवों को भुनें ,
अभावों में अपना सर न धुनें ,
मुश्किलों से लडें उत्साह में दूनें ,
अपने दिल की सुनें ,
फ़िर कोई न कह सके - देर कर दी तूने ,
चलो मेरे साथ आसमान छूने ।
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