Tuesday, January 27, 2009

अनुत्तरीत प्रश्न

तू एक कली थी , कांटे सी चुभी क्यों ?
माला की एक लड़ी थी , टूट के बिखरी क्यों ?
बीच में ही रुक गई , आगे न बढ़ी क्यों ?
पूछती कुछ सवाल , हमसे ही डरी क्यों ?
भीड़ में भी थी यूं , अकेले ही खड़ी क्यों ?
क्या थी हमसे शिकायत ? , जो तू कभी कह न सकी ,
कौनसा था गम तुझे ?, कि तू सह न सकी ,
तेरा वो धीरे से मुस्कराना आज भी याद आता है ,
दर्द तुने ऐसा दिया है कि सहा नहीं जाता है ,
तेरी तारीफ में जो कुछ भी कहें, वो होता है कम ,
और तुझे याद करके है , आज भी आँखे हैं हमारी नम ,
तू थी इतनी शांत ,सौम्य , और गंभीर ,
तेरी बोलती आँखों पर हमारी ही , नजर न पड़ी क्यों ? 

कितना अच्छा होता, जो हम भी तेरे साथ चल पड़ते ,हमारे ही पैरो में है बंधन की कड़ी क्यों??????????????

7 comments:

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

कितना अच्छा होता, जो हम भी तेरे साथ चल पड़ते ,
हमारे ही पैरो में है बंधन की कड़ी क्यों??????????????
बहुत अच्छा लिखा है आपने. सुंदर भाव.
एक अनुरोध- कृपया टाइप करते समय मात्राओं की अशुद्धियों पर ध्यान दें. वह भी लेखन का एक पक्ष है.

Anonymous said...

Bhavnaao ko uchit shabdo ke sath blog me laya hai.

___________________________"VISHAL"

सागर नाहर said...

सदियां बीत गई, यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहा!
और प्रश्न का उत्तर पाने की कोई आस दिखती भी नहीं।

आपका हार्दिक स्वागत है अर्चनाजी, खूब लिखें, बढ़िया लिखें।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक

अभिषेक मिश्र said...

Vajib sawal uthaye hain aapne. Swagat.

Archana Chaoji said...

प्रताप जी धन्य्वाद, आपके अनुरोध को ध्यान मे रखूगी. वैसे कम्प्यूटर मे ही छोटी इ की मात्रा गलत आ रही है और बहुत कुछ सीखना है।
विशाल जी तथा अभिशेक जी धन्यवाद।
सागर जी धन्यवाद आपका भी।

प्रकाश गोविंद said...

bahut bhavatmak lekhan hai !
sundar rachna

aage bhi aisi hi post ki aasha hai

दिगम्बर नासवा said...

भावुक अभिव्यक्ति है..........सुंदर रचना