मैंने कल अपनी शादी की पच्चीसवी वर्षगाठ मनाई , हमें बिछड़े हुए चौदह साल बीत गए ,पर मै तुम्हे अब तक भूल नहीं पाई,तुम नहीं दे सकते थे ,ये बात तो मैंने मानी ,पर जो दे सकते थे ,उन्होंने मुझे क्यों नहीं दी बधाई ?ये बात मै समझ नहीं पाई,वैसे मै अकेली नहीं थी ,मैंने दिन भर तुम्हे अपने साथ पाया ,मगर न तो मेरे और न तुम्हारें ही परिवार से ,किसी का भी बधाई का एक फ़ोन आया ,मुझे अपनी शादी का हर एक वो लम्हा याद आया ,जब पहली बार मैंने तुम्हे देखा था ,या वो जब हमने रस्मो का सिलसिला निभाया था ,खैर !!!! तुम्हे याद करके ही ,दिन का हर एक पल गया ,और सूरज रोज की तरह आया ,रोज की तरह ही ढल गया ,मुझे नहीं पता यादो का ये सिलसिला कब तक और ,कितने साल जारी रहेगा ....
इतना जरूर कह सकती हूँ कि---जब भी यादे आएँगी ,वो पल बिताना मुझ पर भारी रहेगा .......................
(26/11/09 कों लिखी थी )
इतना जरूर कह सकती हूँ कि---जब भी यादे आएँगी ,वो पल बिताना मुझ पर भारी रहेगा .......................
(26/11/09 कों लिखी थी )
9 comments:
ओह!
चलिये हमारी तरफ़ से बधाई तो स्वीकार करे, लेकिन आप की कविता ने बहुत उदास कर दिया....
यादों का यह कारवां बहुत दूर तक साथ चलता रहे...सुनहरी यादों में बहुत संबल होता है.
Behad Marmik rachana ....aapaki kavita me aapke dil ka dard saaf jhalak raha hai ...ishwar se prarthana hai aapke dil ko rahat mile.
Shubhkaamnaae
जब भी यादे आएँगी,
वो पल बिताना मुझ पर भारी रहेगा ...
शायद लोग इसी बात से डरते हैं कि बधाई देकर कहीं अनजाने में आपका दिल न दुखा बैठें.
देर से ही सही, हार्दिक बधाई!
बहूत ही मर्मिक शब्दो को बूना हे कवित मे.दिल कि बात पन्नो पर उतर आई.उन्हे भूलाना आसन नहि हे.पर वक्त के साथ चल्ना तो पडेगा.इश्वर तुम्हे शक्ति दे.
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