मैं टूटी शाख़ से
उड़ती रही दर-ब-दर
गोया कि कोई पत्ती हूँ किसी पेड़ की..
शाख़ हो या दामन
जब भी छूटा करता है,
बिख़र जाता है सब-कुछ
और दर्द होता है........
सूखने को मुझको न छोड़ो
यूँ पत्ती की तरह
मिलोगे मुझसे तो हरी हो जाउंगी...
( बस ..मन हुआ और गा लिया.........) Sorry..
उड़ती रही दर-ब-दर
गोया कि कोई पत्ती हूँ किसी पेड़ की..
शाख़ हो या दामन
जब भी छूटा करता है,
बिख़र जाता है सब-कुछ
और दर्द होता है........
सूखने को मुझको न छोड़ो
यूँ पत्ती की तरह
मिलोगे मुझसे तो हरी हो जाउंगी...
( बस ..मन हुआ और गा लिया.........) Sorry..
13 comments:
पत्ती तो एक बार सूखने पर नष्ट ही हो जाती है , मगर इंसान फिर- फिर हरा !
bahut sundar
why to say sorry ???
बहुत बढ़िया,
हमें गिर गिर कर उठने का वरदान मिला है।
बिल्कुल सही किया ..
बहुत खूब ... क्या बात कही है ..
क्या बात है...वाह!!
जरुर हरी होना है...
पत्ती और इंसान में अंतर तो रहता ही है। आपकी कविता अच्छी लगी।
लगता है ये सॉरी किसी खास इन्सान के लिए है और कविता भी .....
उम्मीद है बात उन तक पहुँच गयी होगी ......:))
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
वाह !!! क्या बात है अंतिम पंक्तियों में गजब का लिखा है आपने...बेहतरीन भाव संयोजन से सुसजित भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
सॉरी का क्या तुक हुआ? ये समझाया जाए।
और गीत! हमेशा ही की भांति, I find myself poor.
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