Tuesday, May 8, 2012

जानती हूँ........

अब तक मुझसे
मेरा सब लेते रहे हो
मेरे हिस्से की धूप ले ली तुमने
मेरे हिस्से की छांह भी मांग ली
भटकती रही मैं ,और
तुमने पनाह भी मांग ली....
अब मेरी बारी आई है
जो लिया है तुमने
जानती हूँ
लौटा नहीं पाओगे
एक मन ही बचा था तुम्हारे पास
उसे भी किसी ने छीन लिया तुमसे
सुना है अब वो भी मर चुका
अमानत की तरह नहीं रख पाए तुम उसे अपने पास
चलो दिया तुम्हें सब कुछ...
शरीर का क्या है
आज मरा ..कल दो दिन !!!

5 comments:

Ramakant Singh said...

DEVOTION AND DEDICATION ALWAYS COME
THESE WAY. ALWAYS IT HAPPENS AND IT WILL BE SO I FEEL IT IT DESTINY.
MAY BE YOU HAVE UPPER HAND TILL LIFE
BEAUTIFUL FEELINGS...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

प्रेम का अर्थ है समर्पण, बस देना... एक पेड़ को देखो.. छाया, फल-फूल,शीतल बयार, यहाँ तक कि अपना शरीर तक दे डालता है, फिर भी इंतज़ार करता है कि कोई आये और उसकी ठूंठ डालियों पर झूला डाले..
बहुत सुन्दर और सचमुच तुम्हारे मन की!!!

वाणी गीत said...

मन के बिना तन की क्या बिसात !
बेहतरीन !

प्रवीण पाण्डेय said...

छीनने और समर्पण में अन्तर है।

Satish Saxena said...

कष्टदायक है यह ...
आपको शुभकामनायें अर्चना जी !