Wednesday, June 5, 2013

पर्यावरण दिवस...

सुबह गज़ब का नजारा देखा
घूमने के समय अजब तमाशा देखा
गुलमोहर गुमसुम खड़ा था
दूब खिलखिला रही थी
बादल नंगे पाँव दौडे चले आ रहे थे
हवा उनको पीछे से दौड़ा रही थी
हम अपनी धुन में चले जा रहे थे
प्रकॄति संग में गुनगुना रही थी
गुलमोहर और दूब की छेड़छाड़ के बीच
गुलमोहर के लाल फूल झड़े जा रहे थे
ये देखकर उनकी माँ कभी उन्हें डरा
और कभी मना रही थी..
शायद स्कूल के लिए देर हो रही थी
और वो दोनों को नहाने के लिए बुला रही थी
सूरज दादा बदली की चादर ताने
झूठ-मूठ ही सोने का नाटक कर रहे थे
तभी चिडिया रानी ने चीं-चीं का शोर मचाया
देर हो जायेगी ऐसा बताया...
बादल नें दौड़कर उनको पकड़ लिया
उनकी धक्का-मुक्की में मुझको भी धर लिया..
नहलाना था उन दोनों को
साथ-साथ मुझे भी नहला दिया
भीगे बदन से घर लौटना पड़ा
पर सिहरन को समेटना बहुत अच्छा लगा
आते ही मौसम ने ली अँगड़ाई
और पर्यावरण दिवस पर दी सबको बधाई.....
-अर्चना
(०५-०६-२०१३,नासिक)

11 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

पर्यावरण दिवस को इस तरह कविता में अभिव्यक्त करना एक अनूठा प्रयोग लगा, बहुत ही खूबसूरत भाव और संदेश.

रामराम.

संजय भास्‍कर said...

खूबसूरत संदेश पर्यावरण दिवस पर

प्रवीण पाण्डेय said...

ईश्वर सबको प्रकृति का सौन्दर्य समझने की शक्ति दे।

शिवनाथ कुमार said...

बहुत खूब, बहुत ही सुन्दर
प्रकृति की खुबसूरती ही कुछ ऐसी होती है हर कुछ जीवंत सा रहता है सदा .....
साभार!

HARSHVARDHAN said...

पर्यावरण दिवस पर सुन्दर कविता प्रस्तुत करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।

घुइसरनाथ धाम - जहाँ मन्नत पूरी होने पर बाँधे जाते हैं घंटे।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

शब्दों की बूँदों की रिमझिम में शीतलता प्रदान करती सुंदर रचना.......

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत खूब...यही है कविता जो अपने आप फूटती है।

Sadhana Vaid said...

पर्यावरण दिवस पर बहुत सुंदर कविता सुनाई आपने ! मन भी बादल और सूरज की आँख मिचौली में रम गया ! बहुत सुंदर !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

सुन्दर, अति सुन्दर!!

Ramakant Singh said...

पर्यावरण दिवस पर जन जीवन को प्यारा सन्देश देती रचना बधाई

Anju (Anu) Chaudhary said...

भावों से भारी हुई लेखनी