सुबह बस स्टॉप पर खड़ी थी -स्कूल बस का इंतज़ार करते ...
सब कुछ रोज की तरह ही था ,कंपनी की स्टॉफ बस के लिए दौड़ लगाते लोग स्कूल बसों के लिए बच्चे ,सुबह घूमने और कुत्ते घुमाने वाले लोग भी वही..
और तभी उस पर नज़र पडी थी मेरी ,मेरे सामने से रोज गुजरती है वो - एक महिला करीब 28-30 वर्ष उम्र होगी ,अपनी गोदी में एक बच्चे को उठाए ,जिसे कमर पर बैठाये हुए रहती है , बेटा है शायद उसका ,दूसरे हाथ में पुराना सा छाता दबाए तेजी-तेजी से चलते हुए काम पर जाती है ,ये तो पता नहीं क्या काम करती है ,..और कहाँ जाती है .
पर उसकी छोटी बेटी उसके पीछे ,उसका आंचल पकड़ ......उससे भी तेज चलती है ,लगभग दौड़ती है.....
सोचा एक फोटो लूं .....मोबाईल निकाला ....हिम्मत नहीं हुई ........
कुछ याद आ गया था -
ऐसी ही दौड़ कभी मैं भी लगाया करती थी ......
.किरदार बदल जाते हैं हालात नहीं .....
6 comments:
किरदार बदल जाते हैं हालात नहीं - सही कहा आपने।
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 3/08/2014 को "ये कैसी हवा है" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1694 पर.
बेटा कमर पर और बिटी को दौड़ाए रहती थी पैदल..!! कैसा भेदभाव है!!
ऐसा अभी तक नहीं कहा किसी ने..!
धन्यवाद उस माँ के शब्दचित्र के लिये!!
very nice
सच कहा
हिम्मत नहीं हुई, जानकर अच्छा लगा।
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