" पुलिया पर दुनिया " के लेखक ,ब्लॉगर और फेसबुकिया साथी अनूप शुक्ल जी का एक स्टेटस सुनिए यहाँ -
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लो आ गयी उनकी याद
पर वो नहीं आये।
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लो आ गयी उनकी याद
पर वो नहीं आये।
गाना धीमे बज रहा है। पूछा तो चाय वाले ने बताया-'मौसम की गड़बड़ी है।रेडियो स्टेशन से ही धीमे बज रहा है।'
आसमान में सूरज भाई ऐसे दिख रहे हैं मानो अपने चारो तरफ रुई लपेटे अधलेटे हैं।लगता है उनके यहाँ कोई दर्जी नहीं है।होता तो रुई समेट के ठीक ठाक रजाई सिल देता।
सूरज भाई बादलों की रुई के बाहर मुंह निकाले किरणों को ड्यूटी बजाने का निर्देश दे रहे थे।किरणों ने जब देखा कि सूरज खुद अलसाये हुए हैं तो वे भी आराम-आराम से अपना काम अंजाम दे रही हैं। कोहरा, जो कल किरणों को देखते ही फूट लिया था, आज बेशर्मीं से टिका हुआ था।कहीं कहीं तो किरणों को छेड़ भी दे रहा था। किरणें भी बचबच कर टहल रहीं थीं। झाड़ी, घने पेड़ के नीचे जाने की बजाय खुल्ले में कई किरणों के साथ सावधानी से टहल रहीं थीं।
धरती के कुछ हिस्से सूरज की इस किरण और ऊष्मा सप्लाई से नाराज होकर सूरज की तरफ मुट्ठी उठाकर शेर पढ़ रहे थे:
वो माये काबा से जाकर कर दो
कि अपनी किरणों को चुन के रख लें
मैं अपने पहलू के जर्रे जरे को
खुद चमकना सिखा रहा हूँ।
कि अपनी किरणों को चुन के रख लें
मैं अपने पहलू के जर्रे जरे को
खुद चमकना सिखा रहा हूँ।
सूरज भाई इस शेर को सुनकर बमक गए और बादलों का सुरक्षा कवच तोड़ कर बाहर निकल आये।चेहरा तमतमाया हुआ था।इधर उधर माइक की तलाश की लेकिन शुक्र है कि मिला नहीं होगा वर्ना चमकना छोडकर भाइयों बहनों करने लगते। सूरज अरबों बरसों से अपना काम करता आ रहा है इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि वहाँ लफ़्फ़ाजी के लिए माइक और रेडियो नहीं है।
गाना बजने लगा:
'तुमने क्या समझा हमने क्या गाया
जिंदगी धूप तुम घना साया।'
जिंदगी धूप तुम घना साया।'
जाड़े के मौसम में यह गाना बेमेल है।जाड़े में घूप की जरुरत होती है साये की नहीं।लेकिन जैसा हो रहा है वैसा की गाना भी बजेगा। चोरों से निजात दिलाने के लिए गुंडे सर्मथन मांग रहे हैं।
तू न मिली हम जोगी बन जायेंगे
तू न मिली तो।
तू न मिली तो।
गाना लगता है किसी बूढ़े राजनेता का बयान है।वह सत्ता से कह रहा है अगर मुलाक़ात नहीं हुई तो समझ लो। जोगी ही बनकर बदला लेंगे। तुझे अपने इशारे पर नचाएंगे।सत्ता हलकान है-'इधर सठियाया राजनेता उधर ढोंगी जोगी।वह जाए तो जाए कहाँ।'
'ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा
तेरा गम कब तलक मुझे तोड़ेगा।'
तेरा गम कब तलक मुझे तोड़ेगा।'
इस सवाल का जबाब भला मिला है किसी को।हमने सूरज भाई से चाय की चुस्की लेते हुए पूछा।
अरे छोड़ो यार लाल, हरा,केसरिया सब झांसा देने के तरीके हैं। अपना काम करो मस्त रहो। अभी तो एक चाय और पिलाओ। जाड़ा जबर है।
हम सूरज भाई को चाय पीते हुए देख रहे हैं।बीच बीच में मुंह से भाप टाइप निकालते हुए वे जताते जा रहे थे कि जाडा पड़ने लगा।
सुबह हो गयी। सुहानी भी है।
Post by अनूप शुक्ल.
2 comments:
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
वाह आज फ़िर सुना। बेहतरीन रिकार्डिंग कर डाली आपने तो मेरे स्टेटस की। :)
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