न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे,
न ही किसी कविता के,
और न किसी कहानी या लेख को मै जानती,
बस जब भी और जो भी दिल मे आता है,
लिख देती हूँ "मेरे मन की"
Friday, February 20, 2015
स्व-चिंतन
इतने रंग है भरे -जीवन में
सब एक -दूसरे से सटे -जीवन में
कब किस रंग का गुब्बारा फूटे
कब कौन किससे रूठे
सबके लिए बैठे मेले में
स्व चिंतन है अकेले में......
- अर्चना
1 comment:
nice one.. :)
http://www.kaunquest.com
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