Sunday, May 10, 2015

उड़ती चिड़िया और मैं

उड़ती चिड़िया को ओझल होते देखा...
पलक झपकने का मौका नहीं देती
और जा पहुँचती है शून्य में
शून्य छोड़कर
....
उदास मन लेकर
अनंत में ताकती रह गई मैं ....
एक आस लिए कि ..
वापस लौटेगी

और वो
वापस लौटी
फुदकते हुए
चहकते हुए
जैसे
ले आई हो
अनंत से ऊर्जा
समेट कर
मेरे  लिए ....

मन कहता है उससे
साथ ले चलना मुझे
भी एक दिन ..
हंसती है वो
कहती है -
वापस  न आ पाओगी
और अबकी
मैं हँस पड़ती हूँ......

कहती हूँ-
तैयार हूँ...
जबाब मिला
जब मेरा मन होगा!!!!
...
और फुर्र....
-अर्चना

4 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

:)

देवेन्द्र पाण्डेय said...

:)

प्रतिभा सक्सेना said...

वाह,
बात की बात में पकड़ लिया चिड़िया को - शब्दों में ही सही !

dj said...

सुंदर कल्पना।