Thursday, September 8, 2016

फर्क

करीब दो साल पहले फेसबुक के एक ग्रुप में एक वीकेंड टास्क दिया गया था - चार शब्दों - सपने, मूँछ, घोड़ा,और फूल को शामिल करते हुए एक हास्य कविता लिखना था। ...
तभी ये बनी थी -


फर्क - हास्य कविता 
तब
सपने में देखा एक राजकुमार
मूँछें थी काली और घोड़े पे सवार
आंखों ही आँखों में उससे हो गया प्यार
फ़िर पहनाया उसने मुझको फूलों का हार...
और अब
अबे! ओ मूँछों वाले
देखी है अपनी मूँछ
मुझे तो लगती है
ये घोड़े की पूँछ
कह भी मत बैठना
"यू आर सो कूल"
सपने में भी लाया फूल
तो चाटेगा यहाँ धूल ...
-अर्चना

3 comments:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अच्छा है... बेचारे राजकुमार की दुर्दशा पर हँसी आ रही है!!

Onkar said...

वाह, बहुत बढ़िया

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बढ़िया है इस बार.